सत्ता न मिलने की बेचैनी में इतने पागल हो गए उद्धव ठाकरे कि हिन्दू विरोधी ममता से हाथ मिला बैठे
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वीर छत्रपति शिवाजी महाराज के हाथों कई बार युद्ध में पराजित होने के बाद औरंगज़ेब ने उनकी बड़ती हुई ताक़त को रोकने के लिये शिवाजी को आगरा बुलाया। और 12 मई 1666 को औरंगज़ेब ने धोखे से शिवाजी को गिरफ़्तार कर लिया।और आज नरेन्द्र दामोदरदास मोदी की बड़ती हुई ताक़त को रोकने के लिये ख़ुद को शिवाजी के सैनिक बताने वाले उद्धव ठाकरे ख़ुद ही औरंगज़ेब की अनुयायी ममता बनर्जी से हाथ मिला रहे है। अगर इनका बस चले तो नरेंद्र मोदी को नुक़सान पहुँचाने के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं।
छत्रपति शिवाजी औरंगज़ेब की कट्टर इस्लामिक उन्माद के विरूद्ध जीवन भर संघर्ष करते रहे, जिसे आज भी ममता बनर्जी जैसे छद्म धर्मनिरपेक्ष पश्चिम बंगाल मे बिना रोक टोक फैला रहे है।ममता बनर्जी मुहर्रम के चलते दुर्गा जी के मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा देती है। पश्चिम बंगाल का मालदा हो, बशीरहाट हो या उत्तर 24 परगना ज़िला वहाँ के मुसलमान हिंदुओं के घरों को वैसे ही तोड़ फोड़, लूट आगज़नी करते हैं जैसे औरंगजेब के शाषनकाल में हिंदुओं के विरूद्ध होता था।
शिवसेना के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से गर्मजोशी भरी मुलाक़ात को देख़कर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे इतिहास ने आज फिर अपनेआप को दुहराया है।आज फिर एक मानसिंह महाराणा प्रताप को हराने के लिये अकबर की सेना मे शामिल हो गया, आज फिर एक जयचंद पृथ्वीराज चौहान को हराने के लिये मुहम्मद गोरी की मदद करने के लिये तैयार हो गया।
राजनीति राष्ट्र के विकास के विकल्पों की संख्या बड़ाने की नीति होती है। परंतु कड़वा सत्य ये है कि स्वतंत्रता के बाद भारतवर्ष के राजनीतिक दलों की दृष्टि में ‘राजनीति’ व्यक्तिगत तथा दलगत लाभों के लिए राज-सत्ता में स्थान प्राप्त करने की जोड़-तोड़ करने की नीति रह गई है।पहली बार भारतवर्ष को ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जिसने कहा “राजनीति राष्ट्र के विकास की नीति है” ना कि व्यक्तिगत रुप से सत्ता को भोगने का माध्यम, उदाहरण के तौर पर ‘ हफ़िंगटन पोस्ट’ (Huffington Post) के अनुसार श्रीमती सोनिया गांधी ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ(Elizabeth) और ओमान के सुल्तान से भी ज़्यादा अमीर है।
जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काले धन पर नकेल कसने के लिये पूराने नोटों का विमुद्रीकरण (Demonetization) किया है, अनियमित व्यापार (Unregulated business) को नियंत्रित करने के लिये वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Service Tax) को लागु किया है, तबसे ऐसा प्रतीत हो रहा है बाक़ी राजनीतिक दलों के काले धनों की रीढ़ का हड्डियाँ टूट गई है।राजनीतिक दलों पर विमुद्रीकरण (Demonetization) की चोट इतनी गहरी लगी है की सभी दलों ने अपनी विचारधारा और सिद्धांतवाद(Ideologies) को नदी में प्रवाह कर दिया है, और विपरीत विचारधारा के दलों से गले मिलने में उन्हें थोड़ी सी भी शर्म महसुस नही हो रही है।
अपने आप को एक कट्टर हिन्दू राष्ट्रवादी पार्टी कहने वाली शिवसेना के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को आज छद्म धर्मनिरपेक्ष ममता बनर्जी से हाथ मिलाने मे कोई परहेज़ नहीं हुआ। सोचनेवाली बात है विमुद्रीकरण (Demonetization) का दर्द कितना गहरा होगा?
उद्धव ठाकरे जी अपनी पार्टी का नाम शिवसेना से बदलकर औरंगज़ेब सेना रख दे, क्यूंकि जैसे आपके काम है वैसा नाम ही आपकी पार्टी को शोभा देगा।
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