11 चीनी मिलें फर्जी कंपनियों के नाम मिट्टी के मोल बेंची गयी, फंस सकते हैं कई सफेदपोश दिग्गज

लखनऊ। ‘वक्त का हर शह गुलाम‘। लगता है कि बसपा सुप्रीमो मायावती पर यह बात अब चरितार्थ होने जा रही है। एक समय था, जब राजनेेता से लेकर नौकरशाह तक इनकी  एक कृपा के लिये तरसते थे। वहीं अब इनकी सरकार में बेंची गयी निगम की चीनी मिलों की बिक्री की हुइ्र जांच रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि सात चीनी मिलें फर्जी कंपनियों के नाम मिट्टी के मोल बेंची गयी थी। अब योगी सरकार में इसकी प्राथमिकी दर्ज करा दी गयी है। इसमें अनेक सफेदपोश दिग्गज भी फंस सकते हैं।

वैसे, अभी अरबों रुपये के स्मारक घोेेटाले की जांच का नतीजा आना बाकी है। सियासी लिहाज से देखें, तो बसपा के लगभग सारे दिग्गजों ने एक एक कर इनसे मुक्ति पा ली है। अब वे अपनी डफली पर अपना राग बजा रहे हैं। स्थानीय निकायों के चुनाव में दूसरे दलों के बागी ही बहिनजी की आॅखों के तारे बन गये हैं। किसी राजनेता के ‘सत्कर्मों के कारण उसकी इतनी जल्दी यह ‘सद्गति‘ हो सकती है, इसे किसी ने सोचा भी नहीं होगा।

पता चला है कि सन्यासी मुख्य मंत्री आदित्य नाथ के आदेश से उत्तर प्रदेश राज्य चीनी मिल निगम लिमिटेड के प्रधान प्रबंघक एक.के.मेहरा ने धोखाधडी करने के आरोप में इन फर्जी कंपनियों के निदेशकों के नाम गोमतीनगर थाना में प्राथमिकी दर्ज करा दी है। इस मामले की निष्पक्ष और सही जांच हुई, तो ऐसे कई सफेदपोश भी इसकी चपेट में आ सकते हैं, जिनके नाम की कभी तूती बोलती रही है। अब वे घिधिया रहे हैं। लेकिन, योगी कहाॅ पसीजने वाले? ऐसे में निवर्तमान मुख्य मंत्री अखिलेश यादव डंके की चोेट पर कह रहे है कि ‘उनकी सरकार तो पूरी तरह से पाकसाफ रही है, तो उनका यही कहना इन घोटालेबाजों की कोढ में खाज साबित हो रहा है।

वर्ष 2010-11 में उक्त निगम के अधीन दस चालू और ग्यारह बंद चीनी मिलें बेंची गयी थीं। इनमें देवरिया, बरेली, लक्ष्मीगंज और हरदोई की चीनी मिलों को खरीदने के लिये दिल्ली की नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेट कंपनी और रामकोला, छितौनी तथा बाराबंकी की चीनी मिलों को खरीदने के लिये गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड ने दावा पेश किया था। इन दोनों ही कंपनियों के निदेशकों ने वर्ष 2008-09 की बैलेंस सीट भी लगायी थी। इसके बाद मायावती सरकार द्वारा गठित समिति ने सलाहकारों की सिफारिशों के आधार पर उक्त दोनों कंपनियों को सभी सातों चीनी मिलें बेंच दी थी। इस मामले के उछाले जाने के बाद इसकी जांच नई दिल्ली स्थित ‘गंभीर कपट अन्वेषण विभाग‘ से करायी गयी, तो इसकी जांच रिपोर्ट में इन दोनों ही कंपनियों को फर्जी पाया गया है।

इस संबंध में यह भी पता चला है कि नम्रता मार्केटिंग कंपनी के निदेशकों ने किसी भी तरह की जानकारी होने से साफ इन्कार कर दिया है। उनका कहना है कि ये कंपनियां सिर्फ कागजी हैं और इसमें उनका किसी भी तरह का शेयर नही है। उन्होंने किसी भी दस्वावेज पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। इन दोनो की कंपनियों के दिल्ली में जो कार्यालय दिखाये गयै थे, वे निजी मकान पाये गये हैं।

 

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