सिंधु समझौताः अभी फैसला नहीं, मोदी ने ली हर जानकारी

पीएम ने सिंधु जल समझौते की समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की

modi-sindhuनई दिल्ली। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को पाकिस्तान के साथ सिंधु जल समझौते की समीक्षा के लिए बुलाई बैठक की अध्यक्षता की। इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, विदेश सचिव एस जयशंकर, जल संसाधन सचिव एवं प्रधानमंत्री कार्यालय के अन्य अधिकारी उपस्थित थे। हमारे सहयोगी चैनल टाइम्स नाउ की रिपोर्ट के मुताबिक पीएम ने बैठक में सिंधु जल समझौते के हर पहलू की जानकारी ली है।

हालांकि अबतक जल समझौते में किसी परिवर्तन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। टाइम्स नाउ के सूत्रों के मुताबिक पीएम ने समझौते के लीगल, पॉलिटिकल और सोशल तीनों पहलुओं की जानकारी ली। बताया जा रहा है कि भारत इस मामले में चीन फैक्टर को भी ध्यान में रखकर चल रहा है। सिंधु नदी चीन नियंत्रित इलाके से निकलती है। चीन के साथ भारत का कोई जल समझौता नहीं है। इस वजह से चीन फैक्टर को ध्यान में रखना पड़ रहा है।

उधर, कांग्रेस ने सिंधु जल समझौते के रिव्यू पर सवाल उठाए हैं। भारत में यह मांग लगातार बढ़ रही है कि आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत सिंधु नदी के पानी के बंटवारे से जुड़े इस समझौते को तोड़ दे। सिंधु जल समझौते पर सितंबर 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किये थे।
हालांकि बैठक में हुई चर्चा अभी सामने नहीं आई है। बताया जा रहा है कि इस बैठक में पीएम को सिंधु जल समझौते के प्रावधानों की ब्रीफिंग दी गई है। एक्सपर्ट्स सिंधु जल समझौते पर पुनर्विचार को लेकर अलग-अलग राय में बंटे हुए हैं।

इस समझौते के तहत छह नदियों ब्यास, रावी, सतलज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी को दोनों देशों के बीच बांटा गया था। पाकिस्तान की यह शिकायत रही है कि उसे पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा और इसके लिए वह एक दो बार अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए भी जा चुका है।

जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने पिछले सप्ताह कहा था कि 1960 में किये गये इस समझौते के बारे में सरकार का जो भी फैसला होगा उनका राज्य इसका पूरा समर्थन करेगा। सिंह ने कहा था, ‘इस संधि के कारण जम्मू-कश्मीर को बहुत नुकसान हुआ है।’ राज्य इन नदियों, विशेष रूप से जम्मू की चिनाब के पानी का कृषि या अन्य जरुरतों के लिए पूरा उपयोग नहीं कर पाता है।

सरकार की तरफ से विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप की टिप्पणी के बाद ही इस समझौते पर चर्चा शुरू हुई। विकास स्वरूप ने कहा था कि ऐसे समझौते में आपसी सहयोग और विश्वास अहम होता है। उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ बढ़े तनावों के बाद यह बयान सामने आया था।

इसके बाद माना जा रहा है कि भारत इस तरह के उपायों से पाकिस्तान पर मिलिटरी कार्रवाई के इतर दबाव बनाने की तैयारी कर रहा है। हालांकि यह कहना अभी मुश्किल है कि समझौता रद्द किया जाएगा।

पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का कहना है कि उन्हें नहीं लगता कि ऐसा वक्त आ गया कि समझौता तोड़ दिया जाए। उनके मुताबिक ऐसा करना कुछ ज्यादा ही कठिन और कड़ा कदम होगा। उनके मुताबिक ऐसे कदम से वर्ल्ड बैंक और दूसरे पक्षों के साथ लीगल समस्याएं खड़ी हो जाएंगी।

 

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