स्पेलिंग में एक गलती और पकड़ा गया किलर

नई दिल्ली। यह एक लगभग परफेक्ट मर्डर था। कातिल ने अपनी तरफ से सुराग छोड़ने की कोई गुंजाइश ही नहीं रखी थी, यहां तक कि जिसका कत्ल किया गया उसका शव भी कभी बरामद नहीं हुआ।
आरोपी राजविंदर सिंह ने पावर ऑफ अटॉर्नी के पेपर्स पर फर्जी हस्ताक्षर करने के दौरान मृतक का नाम Pushpa Verma की बजाय Puspha verma लिखा था।
बस इस एक सुराग के आधार पर ही हरियाणा पुलिस हरकत में आई और जिस तरह से राजविंदर प्रॉपर्टी को बेचने की जल्दी में था उसके मद्देनजर जल्दी ही उनका शक यकीन में भी तब्दील हो गया।
दस्तावेजों की जांच के बाद जस्टिस एफ. एम. इब्राहिम कलिफुल्ला और यू. यू. ललित ने आरोप पक्ष की दलीलों को स्वीकार कर लिया, और राजविंदर को पुष्पा वर्मा के अपहरण और हत्या का दोषी माना। कोर्ट ने कहा कि पुष्पा वर्मा जो कि हेड मिस्ट्रेस के पद से रिटायर थीं और मैरिज ब्यूरो चलाती थीं उनके द्वारा अपने नाम की स्पेलिंग में गड़बड़ी करना अस्वभाविक सा है।
परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर राजविंदर को दोषी ठहराते हुए कोर्ट ने कहा कि ‘यह लगभग असंभव सी बात है कि एक महिला जो कि हेड मिस्ट्रेस के पद से रिटायर हुई हो वह अपने हस्ताक्षर में अपना नाम गलत लिखे। इसके अलावा सिग्नचर का फ्लो भी अलग है। दस्तावेजों पर किए गए सिग्नचर को कोई भी देखकर कह सकता है कि यह पुष्पा वर्मा के नहीं हैं।’
वहीं कोर्ट ने आरोपी राजविंदर की उस अपील को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने यह दलील रखी थी कि वह पुष्पा वर्मा की मंजूरी से ही उनकी प्रॉपर्टी बेच रहा था, और उससे मिली रकम उन्हें ही दी जानी थी। हालांकि अपनी इस दलील के पक्ष में आरोपी कोई भी सबूत पेश नहीं कर सका।
आरोपी की याचिका को नकारते हुए कोर्ट ने कहा कि ‘इस बात के पीछे कोई वाजिब तर्क नहीं है कि एक महिला जिसकी दो बहनें और दो भतीजे जो कि वकील हैं उसी शहर में रहते हैं उन्हें पावर ऑफ अटॉर्नी देने की बजाय वह बिलकुल किसी अनजान व्यक्ति को सौंपे।’
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