हताश अखिलेश के बोल – हमारी लड़ाई कुछ अदृश्य ताकतों से, हम यूपी में नंबर वन थे, मगर अब कहां हैं पता नहीं

akhilesh-yadav-1-1लखनऊ। इटावा, यानी मुलायम कुनबे का गृहक्षेत्र। यहां गुरुवार को सीएम अखिलेश यादव पहुंचे तो पत्रकारों ने नई गठित प्रदेश कार्यकारिणी पर सवाल किया। पूछा-चाचा ने तो आपके सारे समर्थकों का पत्ता गोल कर दिया। सिर्फ अपने वफादारों को ही उपाध्यक्ष, सचिव से लेकर कार्यकारिणी सदस्य बनाया। इस पर अखिलेश ने बहुत हताशा भरा जवाब दिया। बोले-हमारी लड़ाई कुछ अदृश्य ताकतों से चल रही है। पहले हम यूपी में नंबर वन थे, मगर अब पता नहीं, कहां हैं। हताशा में दिए गए इस बयान में बहुत गहरा मर्म छिपा है। विपरीत हालात में भी पार्टी के लिहाज से हमेशा सकारात्मक बयान देने वाले अखिलश क्या पारिवारिक कलह से टूट रहे हैं, …….

सपाईयों की नजर में साधना गुप्ता यानी मुलायम की दूसरी पत्नी यादव कुनबे की कैकेयी हैं। वजह कि मुलायम कुनबे के भरत यानी प्रतीक यादव को राजनीति में स्थापित करने के लिए उनके खेले गए दांव ने ही परिवार में महाभारत करा दी।

बीते दिनों जब मुलायम कुनबे में कलह मची तो पर्दे के सामने कभी शिवपाल और अखिलेश के बीच लड़ाई तो कभी उनके बीच पीडब्ल्यूडी के करोडों के टेंडर्स को लेकर रार मचने की ही सामने आईं। मगर यह आधा सच था। शिवपाल का अखिलेश से मतभेद व मनभेद तो  2012  से ही चल रहा था, जब एक तो अखिलेश उनकी बजाए सीएम बन गए और दूसरे नेताजी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर अखिलेश को संगठन की भी कमान सौंप दी थी। मगर शिवपाल मौके की नजाकत को भांपकर तब से शांत रहे, सब गुबार दिल में ही छुपाए रहे।

जब इधर बीच साधना गुप्ता को बेटे प्रतीक यादव को राजनीति में स्थापित करने की चिंता हुई और वे मुलायम पर दबाव डालने की कोशिश करने लगीं, इससे पहले मुलायम सिंह यादव ने  प्रतीक यादव को अपरिपक्व बताकर काफी चर्चाओं के बाद भी आजमगढ़ से 2014 का चुनाव नहीं लड़ाने का फैसला लिया था, जिससे साधना गुप्ता को बेटे की राह मुश्किल लगने लगीं। उन्हें लगा कि मुलायम के रहते प्रतीक नहीं पार्टी में सेट हो पाएंगे तो कभी नहीं हो पाएंगे।

जब खुद मुलायम, साधना और अखिलेश के बीच रार मचनी शुरू हुई तो शिवपाल ने मौका ताड़ लिया और उन्होंने भी इसी बहाने गुबार निकालकर अपना हित साधना शुरू किया। शिवपाल ने जब अखिलेश के खिलाफ मोर्चा खोलना शुरू किया तो साधना गुप्ता का दबाव मुलायम पर और बढ़ गया। दरअसल साधना गुप्ता के करीबियों का कहना है कि वह चाहती हैं कि मुलायम के रहते उनके बेटे प्रतीक यादव  को राजनीतिक विरासत का बड़ा हिस्सा मिले। मतलब पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी, सरकार में हिस्सेदारी।

चूंकि प्रतीक यादव में फिलहाल सिर्फ शरीर संवारने के अलावा उनमें सियासी हाव-भाव और बोलने-चालने की शैली उस स्तर की नहीं विकसित हो पाई है, जिस स्तर की एक राजनीतिज्ञ में चाहिए, इस नाते अभी सपा मुखिया मुलायम उन्हें कोई बड़ी जिम्मेदारी देने से हिचक रहे हैं। यही वजह है कि जब 2014 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ से प्रतीक के लड़ने की चर्चा रही तो मुलायम ने नहीं लड़ाया। इससे परेशान साधना गुप्ता बेटे को सेट करने के लिए अखिलेश पर जो निशाना साधना शुरू किया, उसी से रार और गहरा गई।

 

साधना गुप्ता किसी मौके की तलाश में थी कि अखिलेश पर पर्दे के पीछे से हमला किया जाए। अखिलेश ने जब खनन मंत्री गायत्री प्रसाद को भ्रष्टाचार के मामले में सस्पेंड किया तो साधना गुप्ता ने मुलायम से खुलकर नाराजगी जाहिर की। प्रतीक के बिजनेस पार्टनर गायत्री का बेटा बताया जाता है। गायत्री प्रसाद ने चूंकि चरण छू-छूकर मुलायम से नजदीकियां बढ़ाईं तो कृपा हासिल हो गई थी।

मुलायम को भी अखिलेश का यह फैसला अच्छा नहीं लगा। मुलायम ने जहां सस्पेंड होने के अगले ही दिन कह दिया कि गायत्री को फिर से मंत्री बनाया जाएगा। वहीं अखिलेश मन मसोसकर रह गए। मुलायम के परिवार से जुड़े एक करीबी सूत्र का कहना है कि साधना गुप्ता का मानना है कि जब तक अखिलेश को राजनीतिक और मनौवैज्ञानिक स्तर पर पार्टी में कमजोर किए बिना बेटे प्रतीक को पार्टी में अहम पद पर सेट करना मुश्किल है।

हाल में हुए एक सर्वे में जब जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रियता आंकी गई तो अखिलेश अपने पिता मुलायम और चाचा शिवपाल पर भारी अंतर से भारी पड़े। 67 प्रतिशत लोगों ने मुलायम की जगह उन्हें यूपी के सीएम पद पर देखने की इच्छा जताई तो 78 प्रतिशत से ज्यादा जनता ने शिवपाल की तुलना में उन्हें कहीं ज्यादा लोकप्रिय बताया।

इस सर्वे का विश्लेषण करें तो अगर अखिलेश को अपने परिवार और पार्टी का भरपूर साथ मिले तो वह भाजपा और मोदी लहर की सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं। मगर जिस ढंग से साधना एक के बाद एक दांव खेलकर अखिलेश को चित करने में जुटीं हैं, उससे अखिलेश की सियासी राह में बाधा पड़ रही। यही वजह है कि पहली बार अखिलेश ने इटावा में हताशा भरा बयान दिया।

 

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