अविश्वास प्रस्ताव: विपक्ष के इस हंगामे की असली वजह कुछ और है

नई दिल्ली। बुधवार को लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई, लेकिन, फिर वही हंगामा, नारेबाजी, शोर-शराबा और कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित. अब लोकसभा की कार्यवाही 2 अप्रैल यानी सोमवार को फिर से शुरू होगी, क्योंकि अगले चार दिनों तक संसद में अवकाश है.

लोकसभा के भीतर लगातार हंगामे के कारण कोई काम नहीं हो पा रहा है. लेकिन, इस दौरान विपक्ष की तरफ से सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बात आगे बढ़ नहीं पा रही है. बुधवार को भी वही हुआ.

टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस की तरफ से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने के मामले को लेकर पहले से ही अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया गया है. अब इस कड़ी में कांग्रेस और लेफ्ट के भी साथ आने से विपक्ष का हमला और तेज हो गया है.

क्यों कांग्रेस लाई अविश्वास प्रस्ताव

दरअसल, कांग्रेस को लगा कि अविश्वास प्रस्ताव के  मुद्दे पर सियासी फायदा टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस को  मिल रहा है. खासतौर से विशेष राज्य के दर्जे की मांग को लेकर आंध्र प्रदेश में इन दोनों दलों ने फायदा उठाने की कोशिश की है. लेकिन, कांग्रेस इस मामले में पिछड़ती नजर आ रही थी.

अगर कांग्रेस, टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव को समर्थन भी देती तो उस हालात में उसका सियासी फायदा उसे नहीं मिल पाता. दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश की कांग्रेस की प्रदेश इकाई की तरफ से भी पार्टी आलाकमान पर इस मुद्दे को लेकर दबाव था.

कांग्रेस आलाकमान ने पूरे हालात पर चर्चा करने के बाद सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर अपनी सहमति दे दी. लेकिन, कांग्रेस भ्रष्टाचार के मामले में सरकार को घेरना चाहती है. पिछले चार साल की सरकार की नाकामियों को उजागर कर कांग्रेस उस मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहती है.

modi in loksabha

कांग्रेस को लगता है कि बैंक घोटाले से लेकर बाकी दूसरे मुद्दों पर सरकार को घेरा जा सकता है. उसे पता है कि अविश्वास प्रस्ताव गिरना तय है लेकिन, सदन में चर्चा कराकर अविश्वास प्रस्ताव के जरिए मोदी सरकार की चार साल की कमजोरियों को उजागर करने का मौका मिलेगा.

लेकिन, सदन में काम-काज नहीं होने पर इस मुद्दे पर बात आगे  नहीं बढ पा रही है. कांग्रेस अब सरकार पर आरोप लगा रही है. यह आरोप जान-बूझ कर संसद की कार्यवाही नहीं चलने देने को लेकर है.

लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी सरकार पर सदन में चर्चा नहीं कराने का आरोप लगा दिया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी अपने पिछले कर्नाटक दौरे के वक्त मोदी सरकार पर अविश्वास प्रस्ताव से भागने का आरोप लगाया था.

कांग्रेस इस मुद्दे को लेकर और आक्रामक लग रही है. उसके रणनीतिकारों को लग रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिए सरकार के चार साल पूरा होने के ठीक पहले चार साल के काम-काम का लेखा-जोखा और उस पर चर्चा हो सकती है. सरकार के खिलाफ एक  माहौल बनाया जा सकता है.

उधर, सरकार ने साफ कर दिया है कि हम हर मुद्दे पर चर्चा को तैयार हैं. अविश्वास प्रस्ताव को गिराने को लेकर सरकार के पास नंबर हैं. लेकिन, लोकसभा में अभी सांसदों की संख्या 539 है. इसमें सरकार को बहुमत के लिए 270 सांसदों के समर्थन की जरूरत है. फिलहाल बीजेपी के पास ही अकेले 274 सांसदों का समर्थन हासिल है.

सरकार को संख्या बल के हिसाब से कोई परेशानी नजर नहीं आ रही है. जब सदन में चर्चा होगी तो उस हालात में वो भी अपनी बात रख सकती है और नंबर गेम में फिर से विपक्ष को मात दे सकती है. लेकिन, अपने सभी सहयोगी दलों को साथ रखने में उसे मशक्कत करनी पड़ सकती है.

टीडीपी पहले से ही सरकार से अलग है. लेकिन, शिवसेना के तेवर उसे परेशान कर सकते हैं. शिवसेना अगर वोटिंग के दौरान सदन से बहिष्कार भी कर गई तो सरकार के लिए मुश्किल होगी और ऐसे में एनडीए की एजुटता को लेकर सवाल खड़ा हो सकता है.

अगले हफ्ते संसद के बजट सत्र का समापन होने वाला है. लेकिन, मौजूदा हालात में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की संभावना बेहद कम दिख रही है. सरकार और विपक्ष के बीच एक-दूसरे पर अविश्वास प्रस्ताव से भागने के आरोप लगते रहेंगे, लेकिन, संसद की कार्यवाही ठीक से चलने की संभावना बेहद कम नजर आ रही है.

 

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