इन चुनौतियों से निपटना जरूरी

कहते हैं कि जब कोई महिला बच्चे को जन्म देती है तो वह इतनी पीड़ा से गुजरती कि उसे खुद के दोबारा जन्म का अहसास हो जाता है लेकिन क्या हम इन माताओं की असल स्थिति से वाकिफ है? क्या आप जानते है कि इन माओं को सुरक्षित मातृत्व मिल रहा है कि नहीं? क्या ये माताएं सरकारी योजनाओं का पूर्ण फायदा उठा पा रही है? आज राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के मौके पर हम इन सारे सवालों के जवाब ढूंढने की प्रयास करेंगे क्या आप जानते है कि हमारे राष्ट्र की ज्यादातर माएं सेहत संबंधी जानकारियों से भी वाकिफ नहीं है सबसे पहले जानते है सुरक्षित मातृत्व के बारे में, क्योकि बिना इसकी जानकारी के सारी तैयारियां बेकार है यदि किसी महिला की मृत्यु प्रसव के दौरान या गर्भपात के 42 दिनों बाद तक न हुई हो, तो इसी को कहते है सुरक्षित मातृत्व लेकिन राष्ट्रका ये दुर्भाग्य है कि हम अभी भी पूर्ण सुरक्षित मातृत्व के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएं है

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भारत संसार के उन 10 राष्ट्रों में शामिल है, जहाँ संसार की 58 प्रतिशत मातृ मृत्यु होती हैं 2014 में आई संयुक्त देश संघ की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2013 में संसार में 2.89 लाख स्त्रियों की मृत्यु प्रसव  शिशु जन्म के समय हुई इन कुल मौतों में 50 हजार मातृ मृत्यु अकेले हिंदुस्तान में ही हुई हैं विश्व सेहत संगठन, यूनिसेफ, विश्व बैक  संयुक्त देश के जनसंख्या विभाग की इंटर एजेंसी ग्रुप रिपोर्ट 2013 के अनुसार हिंदुस्तान को मातृ मृत्यु दर के मामले में 180 राष्ट्रों में 126वां जगह दिया गया है इस रिपोर्ट में माताओं की मौत के पीछे खून की कमी को मुख्य वजह बताई गयी है

प्रिंस्टन विश्वविद्यालय के रुडो विल्सन स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में बताया कि, ‘भारतीय महिलाएं जब गर्भवती होती हैं तो उनमें से 40 प्रतिशत से अधिक गर्भवती महिलाऐं सामान्य से कम वजन की होती हैं हिंदुस्तान में गर्भधारण के दौरान औसत स्त्रियों का वजन केवल सात किलोग्राम बढ़ता है जबकि सामान्यतया गर्भवती महिला का वजन इस दौरान 9 से 11 किलोग्राम तक बढ़ना चाहिए गर्भावस्था के दौरान वजन कम बढ़ने ना केवल गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए खतरे का सूचक है बल्कि मां के सेहत के लिए भी खतरा है ‘

ये आंकड़ें राष्ट्र में मातृ मृत्यु की स्थिति को भयावह बना देते है जैसा कि हम सभी जानते है राष्ट्र की लगभग 70 फीसदी आबादी गांव में निवास करती है लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि राष्ट्र की चिकित्सा व्यवस्था सिर्फ 30 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रोंमें ही उपलब्ध है गवर्नमेंट द्वारा मातृत्व सेहत को लेकर कई कानून  योजनाऐं बनायी गई हे, वर्ष 1961 में मातृत्व हक कानून, 1995 से राष्ट्रीय मातृत्व सहायता योजना, इसके बाद 2006 में जननी सुरक्षा योजना लागू हुई जिसमें यदि घर में प्रसव होता है तो 500 रूपए  यदि सेहत केंद्र में प्रसव होता है तो गांव में 1400 शहर में 1000 रूपए की सहायता महिला को दी जाती है इन सब प्रयासों के बावजूद राष्ट्र में मातृ मृत्यु दर कम होती नहीं दिखाई दे रही है

आजादी के 70 वर्ष बाद भी हम राष्ट्र की स्त्रियों को सुरक्षित डिलेवरी सुविधा भी उपलब्ध नहीं करा पा रहे है इसके पीछे के प्रमुख कारण यह भी है कि 21 वीं सदी में होने के बावजूद हमारे राष्ट्र में स्त्रियोंको दोयम दर्जे में ही तौला जाता है उनके साथ जाति, धर्म, लिंग, रंग के आधार पर भेदभाव  हिंसा अभी भी जारी है ये बहुत जरुरी है कि समाज  गवर्नमेंट मातृत्व हक की आवश्यकता  जिम्मेदारी को महसूस करें  इसे प्रमुखता से समझे

 

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