उन्नाव : जपो निरंतर एक जुबान हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान:- प्रताप नारायण मिश्र

माँ हिंदी के शिरमौर कवि/लेखक पंडित प्रताप नारायण मिश्र जी का जन्मोत्सव ( celebrations) कार्यक्रम आज उन्नाव जिले (Unnao district)के उन्नाव-लालगंज स्थित उनके जनस्थान बैजेगाँव (वर्तमान में बेथर) में श्रद्धा के साथ मनाया जाएगा।मिश्र  की सेवा ने हिंदी को शिखर तक ले जाने में अपना अमूल्य योगदान दिया।

हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए उन्होंने अनेक छन्द लिखकर देश की एकता में अपना अमूल्य योगदान दिया।मिश्र जी ने कानपुर में रहकर देश की अपनी लेखनी से देश की आजादी में भी अपना अमूल्य योगदान दिया है।मिश्र जी की याद में उनके गांव में एक स्मृति स्थल का निर्माण किया गया है जहाँ पर मिश्र जी की विशालकाय मूर्ति, पार्क,सहित मिश्र जी की स्मृतियों को रखा गया है।

कार्यक्रम के आयोजक/ट्रस्ट के मंत्री हरिसहाय मिश्र मदन ने बताया कि इस बार कोविड नियमो के तहत श्रधांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।कार्यक्रम में प्रमुख रूप से राजकुमार सिंह,विनय सिंह सर्वेश सिंह सहित अन्य संभ्रांत नागरिक मौजूद रहे।

पंडित प्रताप नारायण मिश्र जी का जीवन परिचय

पं. प्रतापनारायण मिश्र का जन्‍म 24 सितंबर सन् 1856 ई. में उन्‍नाव जिले के बैजेगाँव नाम गांव में हुआ था। इनके पिता संकटाप्रसाद एक ख्यिात जयोतिषी थे और इसी विद्या के माध्‍यम से वे कानपुर में आकर बसे थे। पिता ने प्रताप नारायण को भी ज्‍योतिष की शिक्षा देना चाहा, पर इनका (मन उसमें नही रम सका।

अंगेजी शिखा के लिए इन्‍होंने स्‍कूल में प्रवेश लिया, किन्‍तु उनका मन अध्‍ययन में भी नहीं लगा। यद्यपि इन्‍होंने मन लगाकर किसी भी भाषा का अध्‍ययन नहीं किया, तथापि इनहें हिन्‍दी , उर्दू, फारसी, संस्‍कृत और बँगला का अच्‍छा ज्ञान हो गया था। एक बार ईश्‍वरचन्‍द्र विद्यासागर इनसे मिलनेे अये तो इन्‍होंने उनके साथ पूरी बसतचीत बँगला भाषा में ही किया। वस्‍तुत: मिश्र जी ने स्‍वाध्‍याय एवं सुसंगति से जो ज्ञान एवं अनुभव प्राप्‍त किया, उसे गद्य, पद्य एवं निबन्‍ध आदि के माध्‍यम से समाज को अर्पित कर दिया। मात्र 38 वर्ष की अल्‍पायु में ही सन्1894ई. में कानपुर में इनका निधन हो गया।

पंडित प्रताप नारायण मिश्र का साहित्यक परिचय

मिश्र जी ने अपना साहित्यिक जीवन ख्‍याल एवं लावनियों से प्रारम्‍भ किया था, क्‍योकि आरम्‍भ में इनकी रुचि लोक-साहित्‍य का सृजन करने में थी। यहीं से ये साहित्यिक पथ के सतत प्रहरी बन गये। कुछ वर्षों के उपरान्‍त ही ये गद्य-लेखन के क्षेत्र में उतर आये। मिश्र जी भारतेन्‍द हरिश्‍चन्‍द्र के व्‍यक्तित्‍व से बहुत प्रभावित होने के कारण उनको अपना गुरु मानते थे।

 उनकी-जेैसी ही व्‍यावहारिक भाष-शैली अपनाकर मिश्र जी ने कई मोैलिक और अनूदित रचानाऍं लिखी

तथा ‘ब्राह्मण’ एवं ‘हिन्‍दुस्‍तान’ नामक पत्रों का सफलतापूर्वक सम्‍पादन किया। भारतेन्‍दु जी की ‘कवि-वचन-सुधा’ से प्रेरित होकर मिश्र जी ने कविताऍं भी लिखीं। इन्‍होंने कानपूर में एक ‘नाटक सभा’ की स्‍थापना भी की, जिसके माध्‍यम से पारसी थियेटर के समानान्‍तर हिन्‍दी का अपना रंगमंच खड़ा करना चाहते थे। ये स्‍वयं भारतेन्‍दु जी की तरह एक कुशल अभिनेता थे। बँगला के अनेक ग्रन्‍थों का हिन्‍दी में अनुवाद करके भी इन्‍होंने हिन्‍दी साहित्‍य की श्रीवृद्धि की। इनकी साहित्यिक विशेषता ही थी कि ‘दॉंत’, भौं, वृद्ध, धोखा, बात, मुच्‍छ- जैसे साधारण विषयों पर भी चमत्‍कार पूर्ण और असाधारण निबन्‍ध लिखे।

मिश्र जी की कृतियां

– मिश्र जी ने अपनी अल्‍पायु में ही लगभग 40 पुस्‍ताकों की रचना की। इनमें अनेक कविताएँ, नाटक, निबन्‍ध, आलोचनाऍं आ‍दि सम्मिलित है। इनकी ये कृतियॉं मौलिक एवं अनूदित दो प्रकार की है।

मिश्र जी द्वारा रचित निबन्‍ध
– संग्रह- प्रताप पीयूष, निबन्‍ध नवनीत, प्रताप समीक्षा,

नाटक- कलि प्रभाव, हठी हम्‍मीर, गौ-संकट

रूपक- कलि-कोैतुक , भारत-दुर्दशा

प्रहसन- ज्‍वारी-खुआरी, समझदार की मौत

काव्‍य- मन की लहर, श्रृंगार-विलास, लोकोक्ति-शतक, प्रेम-पुष्‍पावली, दंगल खण्‍ड, तृप्‍यन्‍ताम्, ब्राडला-स्‍वागत, मानस विनोद, शैव-सर्वस्‍व, प्रताप-लहरी

संग्रह- प्रताप-संग्रह, रसखान-शतक

सम्‍पादन- ब्राह्मण एवं हिन्‍दुस्‍तान
अनूदति- पंचामृत,चरिताष्‍टक, वचनावली, राजसिंह, राधारानी, कथामाला, संगीत शाकुन्‍तल आदि। इनके अतिरिक्‍त मिश्र जी ने लगभग 10 उपन्‍यासों, कहानी, जीवन-चरितों और नीति पुस्‍तकों का भी अनुवाद किया, जिनतें- राधारानी, अमरसिंह, इन्दिरा, देवी चौधरानी, राजसिंह,कथा बाल-संगीत आदि प्रमुख है।

मिश्र जी की भाषा-शेैली

– सर्वसाधारण के लिए अपनी रचनाओं को ग्राह्य बनाने के उद्देश्‍य से मिश्र जी ने सर्वसाधारण की बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया है। इसमें उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्‍दों का भी प्रयोग हुआ है। जेैसे- कला मुल्‍लाह, वर्ड ऑफ गॉड आदि। यत्र-तत्र कहावतों, मुहावरों एवं ग्रामीण शब्‍दों के प्रयोग से उनके वाक्‍य में रत्‍न की भॉंति ये शब्‍द जड़ जाते है। अत: भाषा प्रवाहयुक्‍त, सरल एवं मुहावरेदार है।

 

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