ऑपरेशन ब्लू स्टार: सिखों के जेहन में बुरी याद के तौर पर दर्ज है जून का पहला हफ्ता
अमृतसर में स्वर्ण मंदिर का दृश्य. (पीटीआई)
जानिए कैसे हुआ था यह
दो जून को हर मंदिर साहिब परिसर में हज़ारों श्रद्धालुओं ने आना शुरु कर दिया था क्योंकि तीन जून को गुरु अर्जुन देव का शहीदी दिवस था. उधर जब प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश को संबोधित किया तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि सरकार स्थिति को काफी गंभीरता से देख रही है और भारत सरकार कोई भी कार्रवाई कर सकती है. पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लगा दी गई, फोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को पंजाब से बाहर कर दिया गया.तीन जून को भारतीय सेना ने अमृतसर पहुँचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया. शाम तक पूरे शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया. चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके. इन चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला कि पांच जून को बख्तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया. पांच जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली लड़ाई शुरु हुई.
भयंकर खून-खराबा हुआ. अकाल तख्त पूरी तरह तबाह हो गया. स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं. कई सदियों में पहली बार वहाँ से छह, सात और आठ जून को पाठ नहीं हो पाया. ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण सिख पुस्तकालय पूरा जल गया.भारत सरकार के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए. 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ्तार किया गया. लेकिन ये आंकड़े अभी भी विवादित माने जाते हैं.
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जून का पहला हफ्ता और उसमें भी पांच जून का दिन देश के सिखों के जहन में एक दुखद घटना के साथ नजर आता है. इन्ही दिनों में भारतीय सेना ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश करके आपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया था. इस आपरेशन को सफल बनाने के लिए कई लोगों और भारतीय सेना के जवानो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. यह आपरेशन इतना भयावह था कि स्वर्ण मंदिर का आधे से ज्यादा हिस्सा तहस-नहस हो गया था.
दरअसल देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देश के सबसे खुशहाल और कृषि प्रधान राज्य पंजाब को उग्रवाद के दंश से छुटकारा दिलाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने यह सख्त कदम उठाया.
उस वक्त खालिस्तान के सबसे प्रबल समर्थक जरनैल सिंह भिंडरावाले का खात्मा करने और सिखों की आस्था के सबसे पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर को उग्रवादियों से मुक्त करने के लिए यह अभियान चलाया था. समस्त सिख समुदाय ने इसे हरमंदिर साहिब की बेअदबी माना और इंदिरा गांधी को अपने इस कदम की कीमत अपने सिख बॉडीगॉर्ड के हाथों जान गंवाकर चुकानी पड़ी थी.