…और शुरू हुआ कांग्रेस में राहुल का युग, अब होगा असली टेस्ट

नई दिल्ली। राहुल गांधी अंततः कांग्रेस के नए अध्यक्ष चुन लिए गए हैं. देश की इस सबसे पुरानी पार्टी में औपचारिक रूप से राहुल युग शुरू हो चुका है. हालांकि ये भी सच है कि राहुल की ताजपोशी का वक्त कांग्रेस का सबसे बुरा वक्त भी है. लोकसभा चुनाव में 50 सीटों के नीचे तो कांग्रेस 2014 में ही आ गई थी लेकिन उसके बाद एक के बाद एक राज्यों से उसकी सत्ता भी चली गई जिसने कमजोर हुई पार्टी को और खस्ताहाल कर दिया. जाहिर है कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष के सिर पर कांटों का ताज है. उनके सामने खड़ी चुनौतियां वास्तव में उनकी असली परीक्षा लेंगी.

कांग्रेस को मजबूती देना

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को मजबूती देना है. 2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के हाथ से लगातार एक के बाद एक राज्यों की सत्ता निकलती गई. राहुल गांधी ऐसे वक्त पर कांग्रेस की कमान संभालने जा रहे हैं जब पार्टी सिमटकर सिर्फ छह राज्यों तक रह गई है. ऐसे में संगठन को दोबारा खड़ा करने की जिम्मेदारी राहुल के कंधों पर होगी. राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी पार्टी में नई जान डालने की है.

जमीन पर कांग्रेस को उतारना

कांग्रेस पार्टी को जमीन पर उतारना राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. कांग्रेस ने नेता तो हैं, लेकिन कार्यकर्ता नजर नहीं आते हैं. कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी दिक्कत बूथ लेबल पर पार्टी को खड़ा करने की है. मौजूदा दौर में कांग्रेस की हार की सबसे बड़ी वजह बूथ स्तर पर पार्टी का न होना. जबकि बीजेपी की जड़े बूथ स्तर तक मजबूत हैं. कांग्रेस को मजबूत करने के लिए बूथ स्तर पर बीजेपी की तर्ज में तैयार करना होगा.

नया दृष्टिकोण तैयार करना

सोशल मीडिया पर राहुल गांधी भले ही देर से ऐक्टिव हुए हैं, लेकिन अब उन्होंने मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. राहुल गांधी ने अपने भाषणों में ऐसे देसी शब्द इस्तेमाल करने शुरू किए हैं, जो आम लोगों और गली-गली तक उनकी पहुंच को बढ़ाते हैं. अपने नए अवतार से उन्होंने खासा प्रभावित किया है, लेकिन पार्टी को नई दिशा और दृष्टिकोण देना सबसे बड़ी चुनौती है.

विरासत से बाहर निकलना होगा

राहुल गांधी की अब तक की पहचान जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की विरासत के तौर पर है. राहुल अपने परनाना की विचारधारा के बोझ तले दबे हुए लगते हैं. जबकि मौजूदा दौर के वोटर्स की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए उन्हें इससे बाहर निकलना होगा. पीएम नरेंद्र मोदी को गरीबों के साथ सीधे संवाद के लिए जाना जाता है, ऐसे में राहुल गांधी को भी ऐसे ही रास्ते तलाशने होंगे.

मोदी लहर का सामना

राहुल गांधी का मुकाबला मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है, जो बीजेपी की जीत के मंत्र बन चुके हैं. मोदी लहर के सहारे बीजेपी ने एक के बाद एक राज्य में जीत का परचम लहराया है. असम जैसे कांग्रेस के मजबूत किले को भी धराशाही करके बीजेपी सत्ता पर विराजमान हुई है. राहुल के सामने सबसे बड़ी चुनौती मोदी लहर का मुकाबले अपनी हवा को बनाना है.

मजबूत विपक्ष की भूमिका

कांग्रेस के हाथों जिन वजहों से सत्ता गई और बीजेपी की सत्ता के दौर में कांग्रेस को लेकर जिस तरह मोदी सरकार बेफिक्र है उसकी वजह दो ही हैं. पहली, कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में कमजोर रही और बीजेपी विपक्ष में भूमिका में हमेशा मजबूत रही है. ऐसे में कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका में लौटना होगा और मोदी सरकार के खिलाफ सड़क से संसद तक संघर्ष करना राहुल के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.

सीनियर-जूनियर नेताओं के बीच संतुलन

राहुल गांधी के सामने एक चुनौती पार्टी के सीनियर और जूनियर नेताओं के बीच बेहतर तालमेल बैठाने की है. कई राज्यों में पार्टी के वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच राजनीतिक खींचतान जारी है. राजस्थान में अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट, एमपी में दिग्विजय सिंह बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिल्ली में शीला दीक्षित बनाम अजय माकन के बीच रिश्ते जगजाहिर हैं.

खुद की ‘नॉन सीरियस’ छवि से बाहर निकलना

राहुल गांधी को बीजेपी नॉन सीरियस लीडर के तौर पर पेश करती रही है. बीजेपी अध्यक्ष से लेकर पीएम मोदी तक राहुल को अपरिपक्व नेता बताते रहे हैं. ऐसे में राहुल के सामने इस छवि को तोड़ने के साथ ही विरोधियों को जवाब देने की चुनौती होगी.

विधानसभा चुनाव जीतना राहुल की चुनौती

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी के कंधों पर जिम्मेदारी का बोझ और भी बढ़ गया है. गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनाव पहली परीक्षा है. अगले साल देश के आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. जिनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक जैसे बड़े राज्य शामिल हैं. इन चुनावों में राहुल गांधी के नेतृत्व की परीक्षा होगी.

 

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