करीम लाला, दाऊद जैसे माफिया जिस सरकार के मंत्री तय करते थे वो कांग्रेस की ही थी

पद्मपति शर्मा

शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि श्रीमती इन्दिरा गांधी माफिया करीम लाला से मिलने मुम्बई जाया करती थीं और उस समय मुम्बई मे माफिया इतने शक्तिशाली थे कि केवल मनपसंद पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति ही नहीं महाराष्ट्र सरकार के मंत्रिमंडल गठन तक मे भी उनकी चलती थी।

एक कार्यक्रम के दौरान राउत के इस बयान के बाद कांग्रेस तिलमिला गयी है। कभी शिवसेना मे रह चुके कांग्रेस के संजय निरुपम ने भाजपा प्रवक्ता से बयान वापस लेने की जब मांग कर दी तब संजय राऊत ने लीपा पोती मे विलम्ब नहीं किया। शिवसेना के मुख पत्र सामना के कार्यकारी संपादक संजय राऊत ने कहा कि श्रीमती गांधी का वह सम्मान करते हैं । दरअसल पठानों के मुद्दों पर हर नेता करीम लाला से मिलता रहता था।
संजय राउत के बयान से काग्रेस को सिर्फ श्रीमती गांधी से करीम लाला के संबंधो को लेकर ही मिर्ची नहीं लगी उसे तो तकलीफ राउत की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा से भी तकलीफ हुई।

राज्यसभा के सदस्य राउत से मीडिया समूह लोकमत की ओर से आयोजित पुरस्कार समारोह में साक्षात्कार के दौरान कुछ लोकप्रिय नेताओं के गुण बताने और उन्हें कुछ सलाह देने को जब कहा गया तब उन्होने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में कहा कि वह बहुत मेहनती व्यक्ति हैं। ‘‘मेरे पास उनको सलाह देने का अधिकार नहीं है। वह प्रधानमंत्री हैं।’’ इसके बाद राउत ने कहा, ‘‘लेकिन पत्रकार होने के नाते मैं कहूंगा कि उन्हें अपने साथ काम करने वालों के बीच क्या चल रहा है, इसकी खबर रखनी चाहिए।’’

सवाल यह है कि जिस पुराने डान करीम लाला का राउत ने जिक्र किया या वैश्विक आतंकी घोषित कराची में ठिकाना बनाने वाला माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम, उसका विश्वस्त साथी छोटा शकील और शरद शेट्टी जैसों की जब तूती बोलती थी और इन सभी का पुलिस-प्रशासन में ऐसा दखल कि बिना मर्जी एक पत्ता भी नहीं खडकता था तब महाराष्ट्र में सरकार किसकी थी ? जवाब एक ही है कि तब शिवसेना-‘भाजपा की नहीं कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी।
अयोध्या मे विवादास्पद ढांचा गिराए जाने के प्रतिशोध मे मुम्बई में हुए भयानक दंगों के सूत्रधार दाऊद पर यदि सरकार का वरद हस्त न होता तो वो देश से फरार नहीं हो पाता। याद कीजिए उस समय मुख्य मंत्री कौन था ? राजनीतिक गलियारों मे चर्चा का विषय यही हुआ करता था कि उक्त मुख्य मंत्री के चलते ही दाऊद के खिलाफ रा का आपरेशन दो बार नाकाम हो गया था। बताने वाले तो यहाँ तक दावा करते हैं कि उक्त राजनेता और उनके साथियों से डी कंपनी के गहरे रिश्ते हैं और पिछले दिनों दाऊद के खास आदमी के साथ भूसंपत्ति को लेकर एक भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री का नाम जो उछला था, वो उस राजनेता की पार्टी का ही है।

बताने की जरूरत नहीं कि काग्रेस से अलग होकर नयी पार्टी बना लेने वाले उक्त पूर्व मुख्यमंत्री का नाम राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर भी पिछले दिनों उछला था। जबकि कहने वालों का तो यहाँ तक दावा है कि आज भी इस राजनेता के कराची स्थित सरगना के साथ संपर्क बने हुए हैं ।
शिवसेना और एनसीपी के साथ महाराष्ट्र की अघाडी गठबंधन सरकार मे शामिल काग्रेस को सफाई देनी होगी कि उसकी पार्टी की माफिया फंडिग नहीं करते थे और उसने राजनीति का अपराधीकरण नहीं किया । महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने भी कांग्रेस से सवाल पूछा है और सुब्रमण्यम स्वामी ने तो ऐलानिया कहा कि काग्रेस किस मुह से बात करेगी । इन्दिरा गांधी के माफियाओ से संबंध थे। इस बाबत उन्होने कुछ उदाहरण भी दिए।

असल में कांग्रेस के पास आरोप की कोई काट नहीं है। वो सिर्फ बिलबिला सकती है, कुछ कर नहीं सकती। राजनीति के उसके अधोपतन का एक नमूना नागरिकता कानून के विरोध मे शाहीन बाग मे चल रहा धरना है जिसमें कांग्रेस के नेता न सिर्फ मंच पर बोलते दिख रहे हैं बल्कि जो वीडियो वायरल हो रहा है उसके मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि पैसे देकर यह धरना कराया जा रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार पद्मपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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