करोडपति बाबूओं की गिरफ्त में आबकारी विभाग…

सालों से एक ही पद पर डटे इन बाबूओं से शहर में चल रहा है सिंडीकेट

लखनऊ। योगी सरकार में भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम अधिकारी व कर्मचारियों की मिलीभगत से कामयाब नहीं हो पा रही है। इस बार दुकानों के आवंटन में सेटिंग का गेम न हो पाना सरकार की मंशा बयां करता है, लेकिन दूसरी ओर अधिकारी व कर्मचारियों की करतूतें इसके विपरीत सरकार की छवि को धूमिल करने पर अमादा हैं। सालों से एक ही जगह जमे बैठे ऐसे कर्मचारियों के सेट दलालों द्वारा चल रहा अवैध वसूली का लाखों का कारोबार बदस्तूर जारी है। करोडपति बने बैठे विभाग के बाबू स्तर के ऐसे भ्रष्टाचारियों की जड़े शासन में इतनी गहरी हैं कि शिकायत होने पर यह लोग आलाकमान से सही काम करने के खिलाफ ही कार्रवाई करवा देते हैं। शायद इसीलिए शिकायतों के बाद भी करीब २० साल से एक  जिले में एक ही पटल पर तैनात बाबू को हटाया नहीं जा रहा है। मामला कुछ भी लेकिन इससे योगी सरकार की छवि जरूर धूमिल हो रही है।

मामला लखनऊ जिला आबकारी विभाग में तकरीबन २० साल से तैनात बाबू महेन्द्र सिंह जैसे लोगों से जुड़ा है। जो विभाग में इतने सालों से एक जगह और एक ही पटल (लाइसेंस व प्रतिभूति जैसी कमाई वाली) को देखने का काम कर हैं। इनके साथी बाबू जो उर्दू अनुवादक के पद पर हैं लेकिन रिन्यूवल का कम देखते हैं। पुराने दुकानदारों से इनकी बंधी इनकम थी लेकिन नए बने दुकानदारों को इन लोगों ने परेशान कर रखा है। महेन्द्र बाबू को रसूख और रुतबा इस कदर है विभागीय हलके में यह किस्सा मशहूर है कि महेन्द्र बाबू से प्रतिभूति राशि निकलवा लेना मतलब शेरनी का दूध लाने जैसा काम है। हर प्रतिभूति राशि में ५० फीसदी से अधिक पर इनका हिस्सा बंधा है। नहीं तैयार होगे तो लगाओ चक्कर पे चक्कर। नहीं तो रिन्यूवल से लेकर नया लाइसेंस तक लेने में आपको दिक्कत ही दिक्कत है। कहो तो लासेंस कैसिंल हो जाए। एजाज अहमद,रफत सुल्ताना समेत कर्मचारियों से पूरा गु्रप महेन्द्र बाबू की सरपरस्ती में फल फूल रहा है। दुकानों पर दिया जाने वाले रजिस्टर बुक तक के लिए इन्होंने १००० रुपए का रेट लगा दिया है। अभी कुछ छोटे दुकानदारों को महेन्द्र सिंह ने बाकायदा अपशब्द कहते हुए सबके सामने भगा दिया। साथ ही यह भी जता दिया कि सरकार में उनका कितना रसूख है। महेन्द्र सिंह से काम कराने के लिए उनके खास सुरेन्द्र कुमार नाका  से मिलना होता है जो कि रोज ही आबकरी विभाग में मिलता है। विभाग को कोई भी काम के लिए पहले उससे रेट तय हो जाता है फिर असंभव काम भी होना मुश्किल नहीं है। शहर में जारी आकेजनल लाइसेंस लेने वालों के माई बाप महेन्द्र बाबू है। इनका सिंडीकेट इतना तगड़ा है कि हाल ही में हुक्का बार और आकेजनल लाइसेंस वालों पर कार्रवाई होने शुरु हुई तो उन्होंने कार्रवाई करने वाले अधिकारी को डीईओ संतोष तिवारी को निलंबित करवा दिया एवं सेक्टर ६ के इस्पेटर विष्णु प्रताप सिंह का तबादला कर दिया। जबकि मालाई मारने वाले अभी भी मौज मार रहे हैंं। विभागीय जानकारों की माने तो इनकी तैनाती हुए अभी महज साल भर भी नही हुआ था। बताते है कि डीईओ के पास वैसे ही पेपर वर्क बहुत होता है। उस पर नई आबकारी नीति बनना। ऐसे में लगे आरोप और हुई कार्रवाई पर सवाल उठना लाजमी है। इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री को एक पीड़ित ने शिकायत भी की है।

संय्या भए कोतवाल तो डर काहे का…

लखनऊ। फैजाबाद के मूल निवासी महेन्द्र सिंह के भाई पूर्व बीएसपी नेता थे जो सरकार बदलते हुए भाजपाई हो गए। विभाग के लोग कहते हुए महेंन्द्र सिंह जी के भाई का बाबा जी से सीधा संपर्क है जिस कारण अधिकारी भी इनका कुछ नहीं कर सकते हैं। महेन्द्र सिंह वैसे तो करोडों की सम्मपत्ति के मालिक हैं। लेकिन निशात हस्पताल के निकट एक छोटे से घर में इनका निवास है। जो कि करोड़ों का है। आय को छिपाने के लिए इन्होंने यह मकान अपने भाई के नाम दिखा रखा है। इसके अलावा गृह जनपद जमीन और नोएडा में अपार्टमेंट समेत सम्मत्ति उन्होंने अपने सेवा काल में ही बनाई है।

 

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