केजरीवाल के साथ चपरासी जैसा सलूक करते हैं अनिल बैजल: नरेश अग्रवाल

नई दिल्ली। राजधानी में अधिकारों को लेकर केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच होने वाली खींचतान का मुद्दा राज्यसभा में भी गूंजा है। संसद के उच्च सदन भले आम आदमी पार्टी का फिलहाल कोई सांसद न हो, लेकिन इस मुद्दे पर विपक्ष के कई नेताओं ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मजबूती से समर्थन किया है। समाजवादी पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल ने तो यहां तक कह डाला कि एलजी अनिल बैजल दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के साथ चपरासी जैसा सलूक करते हैं। उन्होंने दिल्ली की सरकार को ज्यादा अधिकार दिए जाने की वकालत की।

हाल में कुलभूषण जाधव पर विवादित टिप्पणी करने वाले सांसद नरेश अग्रवाल ने गुरुवार को राज्य सभा में कहा, ‘दिल्ली सरकार को कोई पावर नहीं है। लेफ्टिनेंट गवर्नर दिल्ली की मुख्यमंत्री को चपरासी की तरह ट्रीट करता है। यह क्या है, एक मुख्यमंत्री की बेइज्जती है। एक लेफ्टिनेंट गवर्नर चुने हुए मुख्यमंत्री को चपरासी की तरह ट्रीट करे। मैं बिल्कुल सही कह रहा हूं। यह दिल्ली सरकार का भी आरोप है। चीफ मिनिस्टर का आरोप है। आप दिल्ली को पूरी पावर देने की बात करिए। आप चर्चा करा लीजिए। दिल्ली सरकार को कानून बनाने का अधिकार दीजिए। साढ़े तीन साल हो गए, दिल्ली को क्यों नहीं आपने बढ़िया शहर बना दिया।’

दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र विधियां विशेष उपबंध (दूसरा संशोधन) विधेयक पर चर्चा के दौरान दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन के उद्घाटन समारोह में केजरीवाल को न बुलाए जाने का मुद्दा उठा। अग्रवाल ने इसे लेकर जहां बीजेपी के रवैये की आलोचना की, वहीं एसपी नेता रामगोपाल यादव ने भी इसे गलत परंपरा की शुरुआत बताया। इस मसले पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस, माकपा और भाकपा ने भी केजरीवाल का समर्थन किया। तृणमूल कांग्रेस के नदीमुल हक ने इसे ‘ओछी राजनीति’ का नतीजा करार दिया।

विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इस मसले पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि मजेंटा लाइन पर उत्तर प्रदेश में मेट्रो के रेलखंड के उद्घाटन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था, इसलिए केजरीवाल को आमंत्रित नहीं किया गया।

दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकराव के मुद्दे पर सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि इसे अब खत्म करना ही होगा। उन्होंने कहा, ‘हम इस टकराव को कब तक जारी रखेंगे। यह सिर्फ दिल्ली की बात नहीं है, पुडुचेरी के साथ भी यही समस्या है। हमें इस मुद्दे पर फिर से विचार करना होगा। बता दें कि दिल्ली में सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है।

 

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