केजरीवाल से इतना चिढ़ते क्यों हैं राहुल गांधी

नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का एक सपना फिर से टूटने के कगार पर है. वे एक बार फिर से मोदी रोको मोर्चा के नेता बनना चाहते थे और लोकसभा चुनाव में दिल्ली में मोदी के रथ को रोकने का जिम्मा संभालना चाहते थे. लेकिन ऐसा होता नहीं दिखता. सुनी-सुनाई से कुछ ज्यादा है कि अरविंद केजरीवाल और उनके करीबी नेताओं ने हर संभव प्रयास किया कि सीधे राहुल गांधी से बात हो जाए और किसी भी तरीके से दिल्ली में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो जाए. लेकिन ऐसी हर कोशिश का उन्हें सिर्फ एक ही जवाब मिला – वे दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन से बात करें.

केजरीवाल के एक बेहद करीबी नेता के मुताबिक आम आदमी पार्टी के मुखिया की पैरवी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव तक ने की. ममता ने इस मसले पर सोनिया गांधी से बात की और तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी से. लेकिन राहुल फिर भी अरविंद केजरीवाल से मिलने के लिए तैयार नहीं हुए. इसके बाद कहा गया कि अगर राहुल गांधी फोन पर भी बात करने के लिए तैयार हो जाएं तो केजरीवाल कांग्रेस के हाथ को मजबूत कर सकते हैं. लेकिन उन्होंने फोन पर बात करने में भी दिलचस्पी नहीं दिखाई.

हद तो तब हो गई जब जंतर-मंतर पर तेजस्वी यादव के मंच पर दोनों नेता आए लेकिन अलग-अलग वक्त पर. जब तक अरविंद केजरीवाल मंच पर रहे राहुल गांधी घर से निकले ही नहीं. केजरीवाल के मंच छोड़ने के बाद ही वे अपने सरकारी बंगले से रवाना हुए. अब सवाल यह है कि राहुल गांधी को अरविंद केजरीवाल से इतना परहेज क्यों है? दोनों ही नेताओं के करीबी इसकी तीन मुख्य वजहें बताते हैं:

दिल्ली का दंगल

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल जिस ज़मीन पर खड़े हैं, कांग्रेस को लगता है वह ज़मीन उसकी है और देर-सबेर उसे जरूर वापस मिलेगी. राहुल गांधी के जितने भी करीबी नेता हैं वे मानते हैं कि नरेंद्र मोदी को रोकने के चक्कर में उनसे एक जबरदस्त गलती हो गई – उन्होंने दिल्ली में केजरीवाल को जीवनदान दे दिया. दिल्ली में कांग्रेस के एक बड़े नेता ने नाम न लिखने की शर्त पर कहते हैं कि केजरीवाल को पहली बार मुख्यमंत्री बनाना ठीक वैसी ही गलती थी जैसे उत्तर प्रदेश में बहुजन समाजवादी पार्टी से जूनियर बनकर गठबंधन करना. इसके बाद उत्तर प्रदेश और दिल्ली, दोनों जगह उसका सूपड़ा साफ हो गया.

2013 में दिल्ली में केजरीवाल की पार्टी को 70 में से 28 सीटें ही मिली थीं. उस समय भाजपा को 32 सीटें मिली जो बहुमत से तीन कम थीं. उस समय भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार डॉक्टर हर्षवर्धन ने जोड़-तोड़कर सरकार बनाने से इंकार कर दिया था. तब कांग्रेस आलाकमान ने अपनी पार्टी के आठ विधायकों का समर्थन आप को दिया और अरविंद केजरीवाल पहली बार चुनाव जीतने के साथ ही दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बन गए. यह सरकार गिनकर दो महीने भी नहीं चली लेकिन इतने कम वक्त में भी केजरीवाल ने दिल्ली से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया.

उस वक्त के दिल्ली के किसी भी कांग्रेसी नेता से बात करें तो वह एक बात जरूर कहता है – अगर उस दिन कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री नहीं बनाया होता तो उनकी पार्टी 2018 आते-आते टूट चुकी होती और केजरीवाल वापस घर लौट चुके होते. लेकिन कांग्रेस ने इतनी दूर की नहीं सोची और दिल्ली में भारी नुकसान करा लिया. 20-20 साल तक लगातार चुनाव जीतने वाले कांग्रेस के नेताओं का कहना है – हमारा पूरा वोट बैंक ही केजरीवाल लेकर उड़ गया. हम केजरीवाल का वोट काटकर उसे हरा तो सकते हैं लेकिन अब कांग्रेस की वो ताकत नहीं जो खुद जीत सके.

राहुल-प्रियंका को अरविंद केजरीवाल बिल्कुल पसंद नहीं

गांधी परिवार और अरविंद केजरीवाल के बीच बातचीत बंद क्यों है इसके लिए भी इतिहास के कुछ पन्ने पलटने होंगे. यह बात उन दिनों की है जब अरविंद केजरीवाल तारीख बताकर प्रेस कांफ्रेंस करते थे और किसी एक बड़े शख्स के बारे में खुलासा करते थे. उसी कड़ी में उन्होंने प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के बारे में भी कुछ बातें बढ़-चढ़कर बताई थीं और इसे बड़े सनसनीखेज़ तरीके से पेश किया था. यह पहला वाकया था जब रॉबर्ट वाड्रा पर सीधा हमला हुआ था. इसी के बाद से रॉबर्ट वाड्रा तमाम विवादों में फंसते चले गए.

सुनी-सुनाई है कि प्रियंका गांधी आज तक अरविंद केजरीवाल की उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को नहीं भूली हैं. जब भी कोई नेता केजरीवाल की पैरवी करने पहुंचता है तो राहुल और प्रियंका दोनों ही एक बात कहते हैं – इस एक नेता को छोड़कर वे किसी से भी हाथ मिलाने के लिए तैयार हैं. एक बार इनका कहना यह भी था कि ‘उन्हें ये भरोसा नहीं है कि केजरीवाल कितने दिन अपनी बात पर टिकेंगे. कल को वे मोदी से भी हाथ मिला सकते हैं. इसलिए केजरीवाल पर यकीन करने की गलती कांग्रेस फिर नहीं कर सकती.’

कुछ दिन पहले राहुल गांधी कुछ पत्रकारों से मिले थे. तब एक संपादक ने उनसे सीधा सवाल किया था – मोदी को हराने के लिए आप किसी भी नेता से मदद मांगने के लिए तैयार हैं तो केजरीवाल क्यों नहीं? इस सवाल का जवाब देते वक्त राहुल का चेहरा और शब्द दोनों ही गौर करने वाले थे. उन्होंने बड़े सपाट अंदाज़ में कहा – केजरीवाल पर फैसला दिल्ली के प्रदेश स्तर के नेता करेंगे. केजरीवाल की यही शिकायत है. वे अजय माकन से नहीं राहुल गांधी से बात करना चाहते हैं और राहुल उन्हें तेजस्वी यादव से भी कम आंकते हैं.

अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी की नज़र एक ही कुर्सी पर

कांग्रेस के कई नेताओं के सामने जैसे ही अरविंद केजरीवाल का नाम लिया जाता है वे जोर से हंसते हैं या फिर मुस्कुराते हैं. खोदकर पूछने पर कहते हैं कि केजरीवाल ही इकलौते ऐसे नेता हैं जो सिर्फ सात सीटों पर ठीक से चुनाव लड़ेंगे लेकिन प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब संजोए हुए हैं. इनका कहना है कि मायावती या ममता ऐसा सोचें तो कह सकते हैं कि मायावती के पास वोट बैंक है और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य से जुड़ाव है. ममता की ताकत पश्चिम बंगाल की 42 सीटें हैं. लेकिन केजरीवाल के पास सिर्फ दिल्ली की सात सीटें ही हैं. दिल्ली के कांग्रेस नेताओं में एक राय बन रही है कि सात सीट जीतने के लिए जल्दबाजी में फैसला नहीं होगा. इनका मानना है कि दिल्ली में कांग्रेस के अच्छे दिन तभी आएंगे जब केजरीवाल लगातार लोकसभा और फिर विधानसभा चुनाव हारेंगे. इसलिए कांग्रेस के एक नेता कहते हैं – दिल्ली में नरेंद्र मोदी की जीत से डर नहीं लगता पत्रकार साहब, अरविंद केजरीवाल की जीत से डर लगता है.

 

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