कोठियों से मत आंकिये मुल्क हिंदुस्तां तो फुटपाथ पर आबाद है

राजेश श्रीवास्तव 

सौ में से सत्तर आदमी फिलहाल जब नासाज हैं दिल पर रखकर हाथ कहिए, देश क्या आजाद है

कोठियों से मुल्क मत आंकिये असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है

मशहूर कवि रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी की ये लाइनें विकास की चकाचौंध के दावों को खारिज कर उस हिंदुस्तान की तस्वीर को बयां करती हैं जहां देश की आजादी के नौ दशक बाद भी लोगों के पास न तो खाने के लिए दो जून की रोटी है और न ही पहनने के लिए कपड़े ।

भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को विकास के पथ पर आगे ले जाने का दावा कर रहे हों। इससे पहले की यूपीए सरकार अतुल्य भारत के नाम पर अपनी पीठ थपथपाती रही। उससे पहले भी भाजपा सरकार ने इंडिया शाइनिंग के नाम पर मुंह चिढ़ाया। लेकिन आजादी के इतने दिनों बाद भी भारत की बड़ी आबादी आज भी फुटपाथ पर रहती है।

हमने इसी सच को जानने के लिए उत्तर प्रदेश के कई जिलों के गांवों का जायजा लिया तो जो तस्वीर उभरती है वह बेहद डरावनी है और उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है, जितनी डरावनी तस्वीर उन गांवों की मिली है। क्या आप किसी ऐसे गांव की कल्पना कर सकते हैं जहां के लोग मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का नाम नहीं जानते। जहां केवल गांव में एक व्यक्ति कक्षा तीन पास है।

जहां के किसी भी व्यक्ति ने आज तक राशन कार्ड न देखा हो। जहां के लोग आज भी कुएं से पानी पीते हों। जहां बिजली कनेक्शन न हो। जहां अपने बगल के गांव जाने के लिए दस किमी पैदल जाना पड़ता है, जहां अपने पड़ोसी के घर जाने के लिए नदी तैर करके जाना पड़ता है। जहां के गांवों में नालियां पिछले दस सालों से बनी ही नहीं हैं। जहां पूरे गांव मेंं केवल एक या दो व्यक्ति नहीं पूरा गांव ही अनपढ हो।

जब आप राजधानी लखनऊ की बेहद पॉश कालोनी डालीबाग स्थित बहुखंडीय इमारत से गुजरें। जहां एक तरफ विधायकों का जमावड़ा है तो दूसरी ओर बेहद कीमती इमारत। आगे बढ़ते ही तमाम ओहदेदारों से सुसज्जित बटलर पैलेस कालोनी। लेकिन इन्हीं के बीच में आपको झुग्गी-झोपड़ी वालों की बस्ती मिलेगी तो ऐसे लोग भी मिलेंगे, जो सड़क किनारे पड़े पाइपों में अपना बेडरूम बनाए हुए हैं तो पेड़ों की डालियो के बीच अपना स्टोर रूम।

कहने को तो यह मजदूर हैं लेकिन सर्दियां आते ही इनको इधर-उधर रात काटने को मजबूर होना पड़ता है। रोज-ब-रोज तकरीबन 3०० से 6०० रुपये की आय करने वाले इन लोगों के पास रहने को कोई जगह नहीं है। विधायक आवास के ठीक सामने सड़क पर ठिठुर रहे लोग इन विधायकों या माननीयों को दिखते ही नहीं कि इनके बारे में सोचा जा सके।

जौनपुर का बपूरीकला गांव जहां आज भी लोगों को पानी पीने के लिए हैंडपंप भी मयस्सर नहीं है। यहां के लोग आज भी कुएं से पानी पीते हैं। पूरे गांव में किसी के पास बिजली का कनेक्शन नहीं है। बिजली के जो खंभ्ो लगे हैं उनमें से भी तार गायब हैं। गांव के दलितों को मोदी के दावों पर कोई रुचि नहीं दिखती है। वह कहते हैं कि राजनीतिज्ञों के दावों का हमारी जिंदगी से क्या लेना-देना नहीं है।

जालौन की दलित बस्ती बरगुआं को आज तक राजस्व गांवों में ही शुमार नहीं किया गया इसलिए उसके विकास का कोई मतलब ही नहीं है। उसकी बात ही करना बेमानी है। बांदा के नरेनी विधानसभा क्षेत्र में बागै व रंज नदी के बीच 22 गांवों में भी कोई विकास की किरण नहीं पहुंची है हमारीपुर के राठ तहसील के ब्रम्हानंद बांध के किनारे के सभी गांव आदिवासियों की तरह की जिंदगी जी रहे हैं।

झांसी के रामपुर, कटियारी, और देवरी में लोगों की हालत इतनी पतली है कि वहां के कई बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। यही नहीं, कई लोगों ने तो गांव से सुविधाओं के अभाव में पलायन तक कर लिया है। आजमगढ़ के सेमरी, पहाड़पुर, बलिआ, भवानी बख्श, बैरिया, लक्ष्मणकुंड व दुर्गियापट्टी गांव जाने के लिए गोरखपुर या मऊ जिले के दोहरी घाट से होकर ही पहुंचा जा सकता है।

दिलचस्प यह है कि यहां के लोगों से पूछो कि किसी अधिकारी को आज तक यहां देखा है तो कहते हैं कि हां लेखपाल और सिपाही को देखा है। पूरे गांव में किसी के पास न तो बिजली है और न ही मोबाइल। यहीं के हथिया गांव के लोगों कोे अगर सड़क-सड़क अपने घर पहुंचना हो तो तकरीबन दस किमी पैदल चलना पड़ता है लेकिन अगर नाव से आयें तो केवल एक किमी चलकर पहुंच जाते हैं।

अलीगढ़ के भकरौला में बिजली नहीं है। मुख्यालय से दस किमी दूर स्थित इस गांव में कोई प्राथमिक अस्पताल नहीं है। आसना, खेड़िया आदि गांव में सड़कें भी नहीं बनीं। फरीदपुर में जरूर चुनाव के समय बिजली के खंभ्ो लगाए गए थ्ो लेकिन उसके बाद से आज तक उस पर तार नहीं दौड़े। बरसात में अदौन और सिहोर गांव तालाब बन जाते हैं।

अलीगढ़ का अनवराबाद गांव ऐसा है, जहां किसी के पास बीपीएल कार्ड नहीं है। यहां केवल तीन हैंडपंप ऐसे हैं जिनमें पानी आता है। जबकि यहां की आबादी तकरीबन 16००-17०० है। पूरे गांव में एक आदमी जो हाईस्कूल पास है, सरकारी नौकरी करता है। जबकि सबसे ज्यादा योग्य एक आदमी इंटरमीडिएट है, हालांकि वह बेरोजगार है। आधा दर्जन लोग ऐसे हैं, जो कक्षा छह तक पढ़े हैं बाकी पूरा का पूरा गांव अनपढ़ है।

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का नाम नहीं जानते : फैजाबाद सीमा पर स्थित देईयापुर गांव के बच्चे तो दूर बड़े बुजुर्ग भी इतने अनपढ़ हैं कि उन्हें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री का नाम तो दूर अपने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम भी नहीं मालुम। जिनका नाम लगभग हर दूसरी होर्डिंग पर चस्पा है। जबकि यह गांव मुख्यालय से बहुत दूर नहीं है।

केवल पचास किमी दूर स्थित इस गांव में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा युवा विजय है, जो कक्षा तीन पास है। विजय ट्रकों से समान उतारने और चढ़ाने का काम करता है । इस गांव के किसी भी वाशिंदे ने आज तक राशन कार्ड भी नहीं देखा है।

 

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