कौन करता है गुनहगारों को बेखौफ और खाकी को कमजोर?

नई दिल्ली। सज्जनों का उद्धार करना और दुष्टों का विनाश करना. देश की पुलिस यही तो करना चाहती है, लेकिन क्यों नहीं कर पाती ? क्या इसके बारे में आपने कभी सोचा ? आज देश की सर्वोच्च अदालत से ऐसी खबर आई है, जिसके कारण अब आप इस बारे में भी सोचेंगे.

आपकी सुरक्षा के नाम पर पुलिसवाले जो भर्ती हुए वो तो वीवीआईपी के घर के आगे खड़े होने के लिए मजबूर कर दिए गए. फिर कैसे पुलिस को राजनेताओं ने लाचार, बेसहारा और बेदम बना दिया. पुलिसवाले जो एक टूटा फूटा हेलमेट पहनकर जनता का पथराव रोकने उतरते हैं. अपराधियों की ए के 47 का लकड़ी के डंडे से सामना करते हैं. उन पुलिसवालों को ही जब सरकारों ने मजबूत नहीं कर रखा है तो कैसे देश में आप सुरक्षित होंगे.

चुनावी मौसम में रोज एक पार्टी अपना घोषणा पत्र लहरा रही है. कोई पार्टी नहीं जो इस बात का दम ना भर रही हो कि हम सरकार में आएंगे तो राज्य में कानून व्यवस्था का राम राज्य ला देंगे. लेकिन सरकारें आपसे एक झूठ छिपा रही है. जो सुप्रीम कोर्ट में आज सामने आया है. और हम आपको बताना बेहद जरूरी समझते हैं.

देश में 5 लाख 42 हजार पुलिसवालों की कमी है. दावा है कि आज की तारीख में देश में पुलिसवालों की कमी 7 लाख तक पहुंच गई है. आज सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के गृह सचिवों को नोटिस दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्यों में कितने पुलिसवाले कम हैं, इसका 4 हफ्ते में हलफनामा दिया जाए.

इसीलिए आज देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एस खेहर को कहना पड़ा कि कानून व्यवस्था दुरुस्त करनी है तो पुलिस के सभी खाली पदों पर भर्ती होना जरूरी है. इतने कम स्टाफ से कैसे कानून व्यव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है ?

अब यहां जरूरी हो जाता है कि आपको फौरन इस बात का अहसास हम करा दें कि आपकी सुरक्षा में कितनी बड़ी कोताही सरकारें बरत रही हैं. जिसके कारण आज सुप्रीम कोर्ट को भी गंभीर होना पड़ा है.

26 जुलाई 2016 को लोकसभा में जो सरकार ने जो बताया है, उसे समझिए. सरकार खुद बताती है कि 2015 तक देश में पांच लाख पुलिसवालों की कमी है. देश में 720 आम लोगों की सुरक्षा के लिए जहां सिर्फ एक पुलिसवाला होता है. वहीं पुलिस रिसर्च ऐंड डिवलेपमेंट ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि देश में रसूख वालों और वीआईपी की सुरक्षा में प्रति व्यक्ति तीन पुलिसवाले लगे हुए हैं.

शायद यही वजह है कि राजनेता कभी आपको ये नहीं बताते कि हैं कि आपकी सुरक्षा करने वाले कितने पुलिसवालों की कमी है. देश में पुलिस की भर्ती होती भी है तो नेता घूस ले लेते हैं. भर्तियां दोबारा फंस जाती हैं. इसीलिए आज आपको पता चलेगा कि किसने, कैसे, कबसे, क्यों और कहां-कहां पुलिस को पैदल कर रखा है ?

20 करोड़ की आबादी वाला उत्तर प्रदेश. जहां किसी और की नहीं बल्कि सीएजी की रिपोर्ट कहती है कि पांच साल के भीतर 2011 से 2015 के बीच महिलाओं से जुड़ा अपराध 61 फीसदी बढ़ा है.

वो उत्तर प्रदेश जहां एक साल के भीतर रेप की वारदात 161 फीसदी बढ़ गई. वो उत्तर प्रदेश जो गैंगरेप के मामलों में देश का नंबर वन राज्य है. उत्तर प्रदेश पुलिस की पिछले साल तैयार हुई विस्तृत आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में पुलिस की कुल तादाद दो लाख 95 हजार होनी चाहिए. लेकिन वास्तविक सेवारत पुलिसकर्मियों की कुल संख्या 1 लाख 45 हजार के आस-पास है. इसका मतलब सीधा सा यही है कि यूपी में करीब 50 फीसदी पुलिसवालों की कमी है.

तो फिर मुश्किल कहां है, क्यों नहीं यूपी सरकार ने पुलिसवालों की भर्ती जल्द से जल्द की. जिससे आम जनता को सुरक्षा मिल पाती. बुलंदशहर जैसा दर्दनाक गैंगरेप ना हो पाता. मथुरा में जवाहर यादव का कांड नहीं हो पाता.

यूपी में अखिलेश यादव ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट डायल 100 की शुरुआत की है. चमचमाती पीसीआर वैन दे दी हैं. लेकिन ये नहीं बताया कि इतने पुलिसवाले कहां हैं ? इसीलिए मायावती अखिलेश की नीयत पर सवाल उठा देती हैं.

मायावती ने कहा कि आधुनिक करने से कानून व्यवस्था सुधरने वाली नहीं है. अब मायावती बात सही कह रही हैं कि नहीं, इस पर भरोसा करने से पहले ये तथ्य़ भी जान लीजिए कि जिस उत्तर प्रदेश में अकेले करीब 1.5 लाख पुलिसवालों की कमी हैं. वहां जब मायावती मुख्यमंत्री हुआ करती थीं तो उनकी सुरक्षा में ही सात सौ पुलिसवाले लगते थे. पांच कालिदास मार्ग जहां मायावती मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए निवास करती थीं. वहां 375 पुलिसवाले निगरानी करते थे.जबकि उत्तर प्रदेश में एक लाख की आबादी पर सुरक्षा करने के लिए सिर्फ 67 पुलिसवाले हैं.

यही वजह है कि यूपी में जनता को भगवान भरोसे राजनेता छोड़ देते हैं. यूएन की सिफारिश कहती है कि उत्तर प्रदेश में एक लाख की आबादी पर 222 पुलिसवाले होने चाहिए. लेकिन हकीकत क्या है, ये हमने आपको आज दिखा दिया. अभी पुलिस को पैदल करने वाली सरकारों का और भी कच्चा चिट्ठा बाकी है.

राज्यों में सरकारें चाहे जिस पार्टी की हों देश में आम जनता की सुरक्षा से खिलवाड़ सबने किया है. हालात देश में ये हैं कि पुलिसवाले अपराधी की गोली से ज्यादा मच्छरों के काटने से शहीद हो जाते हैं. 75 फीसदी पुलिसवाले ड्यूटी बेहिसाब घंटों से थकान से चूर होते हैं. ऐसे पुलिसवाले जनता की कैसे सुनेंगे ?

ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट की ताजा रिपोर्ट कहती है कि देश में 188 ऐसे पुलिस स्टेशन हैं जिनमें कोई भी वाहन नहीं है, वहीं 402 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं जिनमें टेलीफोन की लाइन नहीं है. इसके अलावा 134 थानों के पास वायरलेस सेट नहीं है. और 65 थानों के पास ना तो वायरलेस सेट है और ना ही फोन. तो क्या कमी सिर्फ पैसों की है, या फिर नेताओं की सोच में कमी है. पुलिस रिफॉर्म की बात लंबे अरसे से देश में सिर्फ कही जा रही है, सुनी जा रही है लेकिन हो कुछ नहीं रहा.

 

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