क्या आप भी लगाते हैं इस तरह का चश्मा
44,480 से अधिक लोगों के आनुवंशिक आंकड़ों का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में यह बात कही है। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि अधिक कुशाग्र लोगों में ऐसे जीन पाए जाने की आसार 30 फीसदी तक अधिक होती है जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि उन्हें पढ़ने वाले चश्मे की जरूरत है। ‘नेचर कम्युनिकेशन्स ’ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में उच्च संज्ञानात्मक क्षमता को भी एक जीन से जोड़ा गया है।
ये जीन दिल तथा रक्तवाहिकाओं की बेहतरी में जरूरी किरदार निभाने के लिए जाने जाते हैं। अनुसंधानकर्ताओं ने 148 जीनोमिक क्षेत्रों का अध्ययन किया । ये बेहतर संज्ञानात्मक क्षमता से संबद्ध हैं। इनमें से 58 ऐसे जीनोमिक एरिया हैं, जिनके बारे में पहले जानकारी नहीं थी।
नया स्मार्ट चश्मा, एक ही लैंस करेगा विभिन्न लैंसों का काम
वैज्ञानिकों ने ऐसे स्मार्ट ग्लासेस (चश्मा) विकसित किए हैं जिनके लैंस तरल आधारित हैं व उनका लचीलापन हर उस चीज पर फोकस करने में मदद करेगा जिसे भी ग्लासेस पहनने वाला आदमी देख रहा होगा। यूटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित इन ग्लासेस को कुछ इस तरह विकसित किया गया कि वह आंख की प्राकृतिक पुतली की तरह कार्यकरेंगे यानी वह हर उस चीज पर फोकस कर सकेंगे जिसे भी आदमी देख रहा है चाहे वह चीज दूर की हो या फिर पास की। आयु बढ़ने के साथ हमारी आंखों के लैंस कड़क होते जाते हैं वविभिन्न दूरी पर फोकस करने की अपनी क्षमता व लचीलापन खो देते हैं।
इसलिए चश्मा लगाने की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन तब कठिन व बढ़ जाती है जब हम विभिन्न दूरी पर फोकस करने की क्षमता खो देते हैं व ऐसी स्थिति में हमें अलग-अलग दूरी पर देखने के लिए विभिन्न लैंसों की आवश्यकता पड़ती है। नए विकसित चश्मों में ग्लिसरिन से बने लैंस होते हैं जिन्हें दो लचीली झिल्लियों के बीच रखा जाता है। इन लैंसों को फ्रेम में लगा दिया जाता है। ये झिल्लियां फोकस मिलाने के लिए मुड़ जाती हैं। लैंस का लचीलापन व मुड़ने की क्षमता के चलते एक ही लैंस बहुलैंस का कार्य कर सकता है। यह शोध ऑप्टिक्स एक्सप्रेस जर्नल में प्रकाशित हुआ।
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