गांधी के 18 सूत्रों से तय होगा कि 2019 में किसके साथ जाएंगे ‘पीके’

लखनऊ। एक बड़ा सवाल ये बना हुआ है कि अगले लोकसभा चुनाव में ‘पीके’ क्या करेंगे? किस पार्टी के लिए प्रचार का काम देखेंगे? पीके यानी प्रशांत किशोर ने इसका जवाब पब्लिक के लिए छोड़ दिया है. महात्मा गांधी के बहाने वो जनता का मूड जानना चाहते हैं. इसके लिए 11 जुलाई से वोटिंग शुरू हो गई है. वोटिंग के नतीजों के हिसाब से प्रशांत किशोर अपनी रणनीति बनायेंगे. पीके ने इसे नेशनल एजेंडा फ़ोरम नाम दिया है. वोटिंग के नतीजों का एलान 15 अगस्त को होगा. सबसे अधिक वोट पाने वाले नेता को जिताने के लिए वो काम करेंगे. पीएम नरेन्द्र मोदी से लेकर बिहार के सीएम नीतिश कुमार तक के लिए प्रशांत किशोर काम कर चुके हैं. वे स्टार चुनावी रणनीतिकार हैं.

जनता का मूड भांपने में लगे पीके
बात पिछले लोकसभा चुनाव की हो या फिर बिहार विधानसभा चुनाव की. प्रशांत किशोर हमेशा चर्चा में रहे हैं. वो पीके के नाम से लोकप्रिय रहे हैं. उनकी संस्था का नाम IPAC यानी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी है. इस कमेटी ने महात्मा गांधी के स्वराज के सपने के बहाने जनता का मूड जानने की तैयारी की है. गांधी की 150वीं जयंती के मौक़े पर उनके 18 सूत्री कार्यक्रम का एक फ़ार्मूला तैयार किया गया है जिसमें साम्प्रदायिक सद्भाव, स्वच्छता, शराबबंदी, स्वास्थ्य, शिक्षा और छुआछूत के ख़ात्मे जैसे मुद्दों को शामिल किया गया है. 1945 में खुद गांधी ने इसका ड्राफ़्ट तैयार किया था.

गांधी के 18 सूत्रों से सब तय होगा
500 ज़िलों के 1500 कॉलेजों के 25000 नौजवानों ने मिल कर ये मुहिम शुरू की है. नेशनल एजेंडा फ़ोरम के तहत 11 जुलाई से वोटिंग लाईन खुल चुकी है. गांधी के 18 सूत्रों की कसौटी पर सबसे पॉपुलर नेता का चुनाव होगा जिसका एलान 15 अगस्त होगा. IPAC के दावों की मानें तो सितंबर और अक्टूबर के महीनों में ऐसे नेताओं के साथ मीटींग होगी. अगले तीन महीनों तक देश भर में गांधी के एजेंडे पर बहस होगी. पीके के क़रीबियों का कहना है कि गांधी के एजेंडे को अपने घोषणापत्र में शामिल करने वाली पार्टी का वो समर्थन करेंगे.

सफलता की गारंटी है किशोर
चुनावी रणनीति के मामले में प्रशांत किशोर सफलता की गारंटी माने जाते रहे हैं. 2014 के आम चुनाव में नरेन्द्र मोदी के साथ उन्होंने अपनी शुरुआत की थी. तब मोदी गुजरात के सीएम हुआ करते थे. पीके ने उनके लिए चाय पर चर्चा कार्यक्रम की योजना बनाई जो जनता में हिट हो गया. अबकी बार, मोदी सरकार के नारे को घर-घर तक पहुंचाया. मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए. लेकिन अमित शाह से पीके की नहीं बनी. वो मोदी के सिस्टम से बाहर हो गए.

प्रशांत किशोर का अगला पड़ाव बिहार हो गया. उन्होंने नीतीश कुमार का भरोसा जीता. बीजेपी से मुक़ाबले के लिए लालू यादव और नीतीश को साथ करने में पीके का बड़ा रोल रहा. बिहार में बहार है, नीतिशे कुमार है के नारे को पीके की टीम ने हिट बना दिया. महागठबंधन ने बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को धूल चटा दी. सरकार बनने पर नीतीश ने पीके को अपना सलाहकार बना लिया.

इसी दौरान प्रशांत किशोर को राहुल गांधी ने बुला लिया. पंजाब और यूपी विधानसभा चुनावों की ज़िम्मेदारी उन्हें दे दी. पीके की पहल पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने यूपी में चुनावी गठबंधन किया. लेकिन यूपी को राहुल गांधी और अखिलेश यादव का ये साथ पसंद नहीं आया. पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी. प्रकाश बादल सीएम बने तो प्रशांत किशोर को भी इसका क्रेडिट मिला.

बीजेपी से फिर से बढ़ी हैं नज़दीकियां
प्रशांत किशोर इन दिनों आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस का काम देख रहे हैं. हाल ही में ये ख़बर भी उड़ी कि बीजेपी से उनकी नज़दीकियां बढ़ रही हैं. लेकिन अभी कुछ तय नहीं है. प्रशांत किशोर के एक क़रीबी साथी का कहना है कि नेशनल एजेंडा फ़ोरम से हमें देश का मूड पता चल जाएगा. ख़बर है कि इसके बाद ही अगले लोकसभा चुनाव को लेकर पीके कोई फ़ैसला लेंगे कि किस पार्टी के साथ जाना है और किस नेता के लिए काम करना है.

 

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