चंदा या रिश्‍वत? क्‍या है मायावती के फंड का रहस्‍य…

लखनऊ। यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती पर निशाना साधा था. उन्‍होंने कहा था कि बीएसपी अब ‘बहनजी संपत्ति पार्टी’ हो गई है. प्रधानमंत्री शायद हाल ही आई उन मीडिया रिपोर्टों का हवाला दे रहे थे जिनमें आयकर विभाग के हवाले से दावा किया गया था कि नोटबंदी के तुरंत बाद बीएसपी के खातों में 100 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की रकम जमा की गई थी.

मायावती ने इसका करारा जवाब दिया और अपने एक भाषण में उन्‍होंने कहा कि जब नोटबंदी लागू हुई तब बीएसपी की चंदा इकट्ठा करने की प्रक्रिया जारी थी और वो 100 करोड़ रुपये पार्टी के लाखों समर्थकों द्वारा दिए गए छोटे दान से मिले, इनमें से कुछ लोग तो बिल्‍कुल हाशिए पर हैं. लेकिन माना जाता है कि आयकर विभाग ने जांच में बीएसपी के पैसों के स्रोत पर सवालिया निशान लगाया है.

जहां एक ओर सभी राजनीतिक दल प्राप्‍त धन का 60-70 फीसदी हिस्‍सा ही अज्ञात स्रोत से मिला दर्शाते हैं (यानी 20000 से कम का चंदा जो कि छूट के दायरे में आता है), जबकि बीएसपी अपने 100 फीसदी प्राप्‍त धन को अज्ञात स्रोत से मिला बताती है.

और ये कोई छोटी रकम नहीं है, पार्टी के अनुसार वर्ष 2004 से 2015 के बीच उसे 760 करोड़ रुपये का चंदा मिला जिसमें से एक रुपया भी चेक के जरिए नहीं मिला. इससे इस आशंका को बल मिला कि बीएसपी को मिले ये पैसे अगर सभी नहीं, तो कुछ सीटें चुनाव में उम्‍मीदवारों को बेची गईं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा में मायावती की एक रैली के दौरान हमारी मुलाकात इस क्षेत्र के कुछ उम्‍मीदवारों से हुई, उनमें से करीब सभी पर यह आरोप है कि उन्‍होंने टिकट के लिए 2 से लेकर 4 करोड़ रुपये तक दिए हैं.

लेकिन गोंडा सदर से बीएसपी उम्‍मीदवार जलील खान मायावती के दावों का समर्थन करते हुए कहते हैं कि दूसरी पार्टियां हैं जो घबराकर प्रत्‍येक चुनाव क्षेत्र में 10-20 करोड़ रुपये बांट रही हैं.

और सच्‍चाई हमेशा की तरह ही जटिल है. रैली के कुछ घंटे पहले हमने गोंडा के नरोरा अर्जुन गांव का दौरा किया जहां ज्‍यादातर दलित रहते हैं. यहां लोग दावा करते हैं कि उन्‍होंने स्‍थानीय कल्‍याणकारी कार्यों के लिए पैसे दिए हैं न कि पार्टी को.

नरोरा अर्जुन गांव के गोविंद गौतम कहते हैं, ‘हमने कभी भी किसी पार्टी को चंदा नहीं दिया.’ लेकिन एक स्‍थानीय बीएसपी कार्यकर्ता के उकसाने के बाद वो मानते हैं कि उनमें से कुछ ने पार्टी को चंदा दिया है. गौतम कहते हैं कि उन्‍होंने छमाही योगदान के रूप में 500 रुपये दिए हैं जिसकी उन्‍हें रसीद भी मिली है.

बीएसपी के कार्यकर्ता संगम दास भारती ने बताया कि वह हर 6 महीने में 5100 रुपये पार्टी को देते हैं. वह कहते हैं, इसे ऐसे समझिए कि जिस पार्टी से धनी व्‍यापारी लोग किनारा किए रहते हैं, उसने इस तरह तैयारी की है.

इन बातों से स्‍पष्‍ट है कि बीएसपी को प्राप्‍त धन का कुछ हिस्‍सा वाकई छोटे दान के जरिए ही आता है, लेकिन किस हद तक, ये अंदाजा लगा पाना असंभव है.

राज्‍यसभा के लिए दिए गए अपने पिछले हलफनामे में मायावती ने 100 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की संपत्ति घोषित की थी, जिससे सवाल उठे थे कि उनके गरीब समर्थकों से मिला पैसा बसपा सुप्रीमो को अमीर बनाने के काम तो नहीं आया.

लेकिन यहां गांव में, लगता नहीं कि लोग कोई परवाह करते हैं. गौतम ने कहा, ‘मायावती हम सब के लिए बड़ा सहारा हैं. अगर वह यहां हैं तो हम जिंदा रह सकते हैं, नहीं तो लोग हमें जीने नहीं देंगे.’

 

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