जनाब ! वर्चुअल नजरों से देखिये सब कुछ बहुत सुंदर है

राजेश श्रीवास्तव

जब पूरा देश इन दिनों कोरोना नामक महामारी से जूझ रहा है और कमोबेश तकरीबन हर तबका रोजी-रोटी की जुगाड़ में बेेबस दिखायी दे रहा है। यह तस्वीर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की है। हर देश अर्थव्यवस्था को ठीक करने और अपने यहां के नागरिकों की स्थिति ठीक करने में जुटा है। दुनिया का सबसे ताकतवर देश अमेरिका भी अपने नागरिकों की चिंता भारतीय लोगों के वीजा निरस्त करने की कार्रवाई करने का मन बना रहा है। वहीं भारत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इन दिनों बिहार चुनाव में व्यस्त है। आपकी अब तक की आयु में जिस शब्द का जिक्र आजकल आम हो गया है वह आपने सुना नहीं होगा। वह शब्द है ‘वर्चुअल’ (इस शब्द का अर्थ ऐसे ही हैं जैसे आप अक्सर किसी अभिनेता को गाना गाने देखते हैं और उसके पीछे एलईडी पर कश्मीर के सुंदर-सुंदर दृश्य आते-जाते रहते हैं और आपको एहसास होता है कि आप कश्मीर में है। परंतु दरअसल कलाकार कहीं जाता नहीं बल्कि एहसास कराता है कि कश्मीर ऐसा है)। ठीक इसी तर्ज पर भारतीय जनता पार्टी वर्चुअल रैलियां कर रही है।
चूंकि कोरोना काल चल रहा है और राजनीतिक दल रैलियां नहीं कर सकते, जनसभाएं नहीं कर सकते तो ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने वर्चुअल रैली का न केवल मन बनाया है बल्कि उसका पूरा ताना-बाना बुनकर उसकी चाल भी चल दी है। अभी बीते दिनों ही देश के गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में जनसंवाद रैली में 72 हजार एलईडी स्क्रीन लगाकर अपना भाषण दिया। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में भी रोज आत्म निर्भर अभियान के लिए प्रधानमंत्री की नीतियों व कार्यक्रमों के लिए भी रोज वर्चुअल सभाएं हो रही हैं। अगर अमित शाह की रैली को छोड़िये सिर्फ एलईडी का ही खर्च जोड़ लें तो यह तकरीबन 144 करोड़ होता है। यह तब है जब तमाम मजदूर अपने घर बिहार जाने के लिए छटपटा रहे हैं। रेलवे का कहना है कि अगर हम एक ट्रेन को बिहार भ्ोजते हैं तो तकरीबन 8 लाख का खर्च आता है। यानि अगर यही पैसा श्रमिकों को लाने-ले जाने पर खर्च किया जाता तो शायद बिहार के सारे श्रमिक अपने घर पहुंच गये होते। आपको जानकर हैरानी होगी कि बिहार की प्रति व्यक्ति आय प्रतिदिन के हिसाब से 85 रुपये के आसपास है, यह सरकारी आंकड़ा है। यानि जिस राज्य में प्रति व्यक्ति की प्रतिदिन की औसत आय 85 रुपये हैं वहां के चुनाव की बात नहीं सिर्फ कुछ घंटे की ैरैली के एक माध्यम पर ही 144 करोड़ रुपये खर्च कर दिये गये। वह भी ऐसे कोरोना काल में जब रोटी की जुगाड़ में आम आदमी की पेट और पीठ एक में चिपक गये हैं।
लेकिन सरकार को चुनाव जीतना है। कोरोना काल है तो क्या हुआ सियासत अपनी जगह है। आप रोज देख रहे हैं कोई चैनल खोल लीजिये आपको सिर्फ महाराष्ट्र और दिल्ली के अलावा कोई और राज्य दिखायी नहीं देगा जहां आपको चैनल का एंकर यह बताता हो कि कोरोना कहीं और भी है। पूरा फोकस महाराष्ट्र और दिल्ली पर ही है। यह बात सही है कि दोनों जगहों पर कोरोना के मरीज बहुत अधिक संख्या में हैं। लेकिन इन्हीं दोनों के बीच गुजरात भी आता है। वह गुजरात जो महाराष्ट्र से कम है लेकिन दिल्ली से अधिक संक्रमित है। लेकिन उसका जिक्र उस तर्ज पर नहीं होता। हम उस देश में रहते हैं जहां श्रमिकों के लिए 2० लाख करोड़ के पैके ज का ऐलान तो होता है लेकिन जमीन पर सच होता नहीं दिख रहा है। हमने तकरीबन दस बैंकों का दौरा किया सिर्फ यह सच जानने के लिए कि सरकार नें बैंकों को एमएसएमई कंपनियों को 25 लाख तक का लोन बिना गारंटी देने का जो ऐलान किया है उसका सच क्या है तो हैरानी वाली तस्वीर सामने आयी। कोई बैंक तो इस तरह का लोन देने के लिए हामी भरता हुआ ही नहीं दिखा। एक-दो बैंक तैयार हुए तो उनका कहना था कि आप सिक्योरिटी में क्या रख्ोंगे । जब उनसे कहा गया कि सरकार ने बिना गारंटी लोन देने को कहा है तो कहने लगे कि आप सरकार से ले लीजिए। यानि पैकेज का ऐलान तो हुआ लेकिन उस पर अमल शायद न हो पा रहा है और न हो पायेगा। यह वह देश हंै जहां प्रधानमंत्री की एक दिन की सुरक्षा पर ही एक करोड़ 62 लाख रुपये खर्च कर दिये जाते हैं। यानि साल भर का आंकड़ा निकालें तो यह तकरीबन 592 करोड़ 92 लाख के आसपास बैठता है। वर्तमान में भारत को हर रोज सीमाओं पर चीन, पाकिस्तान और नेपाल तीन मोर्चों पर भिड़ना पड़ रहा है। अर्थव्यवस्था इतनी जर्जर है कि शायद जीडीपी अगले वर्ष शून्य से कितनी आगे बढ़ेगी यह कहना मुश्किल है। उद्योग-धंघ्ो बंदी की कगार पर हैं। कंपनियां अपने कर्मचारियों को वेतन नहीं दे रही हैं और सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि हम कुछ नहीं कर सकते। यानि सरकारों ने जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया है। कोरोना महामारी में जांच व्यापक स्तर पर हो नहीं रही। संक्रमण चरम पर है। हर रोज अब यह आंकड़ा 12 हजार पर पहुंच रहा है। लेकिन सरकार चुनाव में व्यस्त है और जनता अपनी जान को हथेली पर रखकर कोरोना को भुलाकर अपने परिवार का पेट पालने की जुगाड़ में ही त्रस्त है। मीडिया के पास भी पाकिस्तान, चीन और नेपाल की फटाफट खबरों के पैकेज हैं। इलेक्ट्रानिक मीडिया क्या कहता है उसका उसे ही अंदाजा नहीं है। कल एक प्रतिष्षि्ठत चैनल ने अपने विश्लेषण में कहा कि अगर भारत-चीन का युद्ध हो तो चीन को मुंह की खानी पड़ेगी लेकिन ब्रेक के बाद कहा कि अगर चीन-अमेरिका का युद्ध हो तो अमेरिका हार जायेगा। इसका मतलब हुआ कि भारत अमेरिका से अधिक शक्तिशाली हो गया है। काश ऐसा हो सके। लेकिन सरकारों को जागना होगा क्योंकि सरकार चलाने की जिम्मेदारी चैनलों को नहीं दी जा सकती। जनता की कसौटी पर सरकार को खुद सामने आना होगा।

 

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