जन्मदिन विशेष: हेडगेवार के मूल्यांकन में वैचारिक अनदेखी हुई

1 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और प्रथम सर संघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की पुण्यतिथि है. 21 जून, 1940 को हुई उनकी मृत्यु से लेकर आज तक उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग नजरिए से किया है. इस दौरान हेडगेवार पर लिखने वालों ने अपने-अपने वैचारिक आग्रह के अनुरूप तमाम मिथक भी गढ़े हैं और तमाम सच्चाइयों की अनदेखी भी की गई है.

हेडगेवार को लेकर दो अहम सवाल अक्सर सुनने में आते हैं. पहला, स्वतंत्रता की लड़ाई में हेडगेवार की भूमिका क्या थी, और दूसरा यह कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के पीछे हेडगेवार का उद्देश्य क्या था? इन सवालों की सतह पर जमी धूल हटाने पर तमाम ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो डॉ हेडगेवार के बहुआयामी व्यक्तित्व को दिखाते हैं. डॉ हेडगेवार शुरुआती दिनों में बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित स्वतंत्रता आंदोलन के प्रतिबद्ध सेनानी के रूप में नजर आते हैं. हालांकि उनके जीवन से जुड़े इस पक्ष पर खास वैचारिक आग्रह वाले इतिहासकारों ने पूरी ईमानदारी से काम नहीं किया है.

हेडगेवार का बचपन और स्वाधीनता का भाव

hedgewar

केशव बलिराम हेडगेवार

देशभक्ति का भाव और अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की मंशा हेडगेवार के मन में बचपन से थी. ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के साठ वर्ष पूरे होने के अवसर पर 22 जून, 1897 को भारत में जश्न मनाने का आदेश हुकूमत द्वारा दिया गया था.

आठ वर्ष के बालक केशव बलिराम हेडगेवार के स्कूल में भी मिठाई बंटी. लेकिन बालक केशव मिठाई अस्वीकार करते हुए कहा, ‘लेकिन वह हमारी महारानी तो नहीं हैं.’ एक और प्रकरण 1901 का है. इंग्लैण्ड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण का विरोध करते हुए हेडगेवार ने कहा था, ‘विदेशी राजा का राज्यारोहण मनाना हमारे लिए शर्म की बात है.’ भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माता में लिखा है कि नागपुर के सीताबर्डी किले के ऊपर अंग्रेजी हुकूमत का प्रतीक यूनियन जैक, उन्हें मन ही मन कचोटता था.

जब हेडगेवार पर लगा राजद्रोह का मुकदमा

1908 में दशहरे के दौरान रामपायली गांव की सीमा के पास वर्षों से चला आ रहा सीमोलंघन का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए हेडगेवार ने कहा था कि आज हम अनेक सीमाओं में बंधे हैं. उन्हें पार करना हमारा कर्तव्य है. सबसे बड़ी पीड़ादायक और शर्मनाक बात हमारा परतंत्र होना है. अत: अंग्रेजों को सात समुंदर पार भेज देना ही सही मायने में सीमोलंघन कहा जाएगा.

प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि इस भाषण के बाद वहां वंदेमातरम गूंजने लगा और इसके लिए डॉ हेडगेवार के ऊपर धारा 108 के तहत अंग्रेजी हुकूमत ने ‘राजद्रोह’ का मुकदमा दर्ज करा दिया. अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह मामले में यह उनकी पहली गिरफ्तारी थी.

जमानत के बाद रामपायली में उनके भाषण पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. बीसवीं शताब्दी का पहला दशक बीतते-बीतते हेडगेवार को अंग्रेजी हुकूमत वाली सरकार अपने लिए खतरा मानने लगी थी. इसका प्रमाण 1914 में तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत वाली भारत सरकार के क्रिमिनल इंटेलिजेंस द्वारा भारत के राजनीतिक अपराधियों की एक पुस्तिका से मिलता है. इस सूचि में उन लोगों को शामिल किया गया था जो क्रांतिकारी संगठनों से जुड़े थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ गर्म विद्रोह को हवा दे रहे थे. इस ‘बुक 1914’ में हेडगेवार का नाम भी शामिल था.

कांग्रेस से जुड़ाव और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन

यह बात लगभग सभी को पता है कि हेडगेवार कांग्रेस से जुड़े रहे. कांग्रेस के नेताओं के साथ उन्होंने शुरुआत से काम किया था. उनकी क्षमता को देखते हुए मध्यप्रांत में प्रांतीय कांग्रेस ने ‘संकल्प’ पत्रिका के प्रकाशन का निर्णय लिया. इस पत्रिका के प्रसार आदि के लिए हेडगेवार ने व्यापक भ्रमण किया.

इस संबंध में व्यापक जानकारी नेहरू मेमोरियल एवं लाइब्रेरी में संग्रहित मुंजे पेपर्स में मिलती है. हेडगेवार के लिए बड़ा अवसर यह आया कि वर्ष 1920 में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होना तय हुआ था. कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाना था. नागपुर कांग्रेस समिति के संयुक्त सचिव होने की हैसियत से डॉ. हेडगेवार ने डॉ. अरविंद घोष का नाम प्रस्तावित करने का विचार रखा, लेकिन अरविंद तबतक पॉन्डिचेरी में सन्यासी का जीवन अपना चुके थे. उन्होंने इस प्रस्ताव को नकार दिया.

नागपुर के इस कांग्रेस अधिवेशन के लिए बनाई गई स्वागत समिति में भी डॉ. हेडगेवार की महत्वपूर्ण भूमिका तय थी. इस अधिवेशन के समय हेडगेवार ने अध्यक्ष पद के लिए विजयराघवाचार्य के नाम का विरोध किया था, क्योंकि विजयराघवाचार्य असहयोग आंदोलन से पूर्ण सहमत नहीं थे और जलियावाला बाग हत्याकांड के समय वे मद्रास प्रांत के राज्यपाल के निमंत्रण पर चाय पार्टी में चले गए थे.

देश में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन के दौरान भी डॉ. हेडगेवार ने अहम भूमिका निभाई थी. उस दौरान मराठी मध्य प्रांत की तरफ से डॉ. हेडगेवार की अगुवाई में बनाई गई असहयोग आंदोलन समिति ने कार्यकर्ताओं को आंदोलन के प्रति जागृत करने का काम किया. मराठी मध्यप्रांत में यह आंदोलन काफी सफल भी रहा था. वर्ष 1921 में आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेज हुकूमत ने दमन की नीति अपनाते हुए राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करना शुरू किया. डॉ. हेडगेवार को भी अनेक मुकदमों में गिरफ्तार कर लिया गया. हालांकि जब वे जेल से बाहर निकले तबतक महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था.

स्वातंत्र्य का संपादन

जेल से बाहर आने के बाद राष्ट्र की आवाज को बुलंद करने के लिए नारायण राव वैद्य एवं एबी कोल्हटकर के साथ मिलकर डॉ हेडगेवार ने मराठी दैनिक ‘स्वातंत्र्य’ का प्रकाशन शुरू किया. इसके माध्यम से वे क्रांतिकारियों के विचार व आंदोलनों को मुखरता देने जैसी सामग्री प्रकाशित करते थे. इसी वजह से पत्रकारीय सरोकार भी उनके जीवन का अहम हिस्सा है.

संघ की स्थापना और स्वतंत्रता आंदोलन

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(फोटो: पीटीआई)

डॉ. हेडगेवार ने अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में अपना लंबा समय दिया था. लेकिन एक सवाल उनके मानस पटल से नहीं जा रहा था कि आखिर हम गुलाम क्यों बने? राकेश सिन्हा ने अपनी पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माता में इसका जिक्र किया है. इसी के समाधान के विचार मंथन में उन्होंने वर्ष 1925 के विजयदशमी के दिन 25 लोगों के साथ विचार मंथन करके एक संगठन की बुनियाद रखी. इस संगठन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम 17 अप्रैल, 1926 को मिला. संघ के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था, ‘स्व-प्रेरणा एवं स्वयंस्फूर्ति से राष्ट्रसेवा का बीड़ा उठाने वाले व्यक्तियों का केवल राष्ट्रकार्यार्थ संघ ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है.’

1928 में संघ कार्य के लिए धन जुटाने के लिए ध्वज को समर्पित गुरु दक्षिणा कार्यक्रम की शुरुआत उन्होंने की थी, जो आज भी अनवरत जारी है. इस दौरान कुछ लोगों ने डॉ. हेडगेवार की जीवनी लिखने की इच्छा जताई, लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि संघ कार्य में व्यक्ति महत्वहीन है और कार्य महत्वपूर्ण. संघ ने अपने स्तर पर स्वतंत्रता की लड़ाई में पूर्ण स्वराज्य की अवधारणा को बल दिया. दिनांक 27-28 अप्रैल, 1929 को 100 स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण शिविर में सार्वजनिक तौर पर घोषणा की गई कि संघ का उद्देश्य स्वतंत्रता को प्राप्त करना है.

अगर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का मूल्यांकन उनके जीवन में किए संघर्षों की कसौटी पर किया जाए तो एक ऐसे व्यक्तित्व की छाप मिलती है जो अपने ध्येय के लिए वह स्व को खपा देने से कहीं पीछे नहीं हटता है.

 

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