जम्मू-कश्मीर के बड़े मामले सुलझाने में बुरी तरह नाकाम रही है CBI

समीर यासीर 

कठुआ में बच्ची की हुई हत्या के बारे में पता चलने के कुछ दिनों बाद नेशनल पैंथर्स पार्टी के अध्यक्ष भीम सिंह रसाना गांव में मौजूद लड़के के माता-पिता के घर पर पहुंचे थे. पीड़िता के माता-पिता के मुताबिक, सिंह ने उनसे इस वीभत्स कांड की सीबीआई जांच के लिए मांग करने को कहा था, लेकिन दोनों (माता-पिता) ने इस सिलसिले में सिंह से किसी तरह का वादा करने से इनकार कर दिया.

रेप और हत्या का शिकार बनी इस 8 साल की बच्ची की मां ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, ‘भीम सिंह सबसे पहले हमारे पास आए और उन्होंने हमसे सीबीआई जांच की मांग करने को कहा. जब हमने उनसे कहा कि पुलिस ठीक तरीके से जांच कर रही है और इससे वे संतुष्ट हैं, तो उन्होंने तल्ख अंदाज में जवाब दिया कि आपको गांव वालों के साथ रहना है या पुलिस के साथ.’

जम्मू-कश्मीर की सत्ताधारी पार्टी पीडीपी की गठबंधन सहयोगी बीजेपी के अलावा कांग्रेस और पैंथर्स पार्टी के नेताओं समेत जम्मू के अधिकतर लोग रेप और हत्या के इस मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि जम्मू-कश्मीर के मामलों से निपटने में इस केंद्रीय जांच एजेंसी के खराब रिकॉर्ड को देखते हुए इस तरह की मांग की जा रही है.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील और मानवाधिकार मामलों से जुड़े परवेज इमरोज ने बताया, ‘विडंबना यह है कि इसी वजह से जम्मू में लोग सीबीआई के जरिए जांच कराने की मांग कर रहे हैं. जहां तक राज्य के बड़े और उच्चस्तरीय मामलों में निष्पक्ष जांच का सवाल है, तो सीबीआई की विश्वसनीयता अच्छी नहीं है. ऐसे कई मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसी का रिकॉर्ड काफी निराशाजनक रहा है.’

सीबीआई ने कई मामलों की जांच की लेकिन सजा किसी को नहीं हुई

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) राज्य के कई मामलों की जांच की है, लेकिन यहां के बेहद उच्चस्तरीय चार मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसी की जांच के बाद किसी को भी सजा नहीं हुई. 6 जनवरी 1993 को उत्तरी कश्मीर के सोपोर शहर में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों ने अपने कमांडिंग ऑफिसर एस थंगप्पन की अगुवाई में फायरिंग की थी, जिसमें 57 लोग मारे गए थे. माना जाता है कि एक सुरक्षाकर्मी की राइफल छीने जाने की घटना के बाद फायरिंग की गई थी.

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इमरोज के मुताबिक, इस ‘नरसंहार’ के 24 दिनों बाद यानी 30 जनवरी 1993 को सरकार ने इस मामले में एक सदस्य वाली जांच कमेटी बनाई. इस कमेटी के तहत जस्टिस अमरजीत चौधरी को जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके कुछ समय बाद ही राज्य सरकार ने केस की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया. 20 साल बाद यानी 2013 में सीबीआई ने इस मामले में सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत क्लोजर रिपोर्ट दायर कर दी.

पथरीबल फर्जी एनकाउंटर में भी किसी को सजा नहीं दिला पाई सीबीआई

एक फर्जी एनकाउंटर में 5 नागरिकों को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकवादी बताकर उनकी हत्या कर देने के बारे में खुलासा दरअसल सीबीआई ने ही किया था. साल 2000 के मार्च महीने में जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत के दौरे पर थे, तो उसी दौरान यानी 20 मार्च 2000 को 36 सिखों की हत्या कर दी गई थी. यह नरसंहार इस लिहाज से ज्यादा उल्लेखनीय था कि पीड़ित अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े सिख थे, जिन्हें कश्मीर के खून-खराबा वाले दशक के दौरान कभी निशाना नहीं बनाया गया था.

सीबीआई ने 2003 में केस की जिम्मेदारी संभाली और सेना के कर्मियों पर आरोप लगाया. सेना ने यह कहते हुए 23 जनवरी 2014 को केस को बंद कर दिया कि इस सिलसिले में दर्ज सबूत के आधार पर किसी भी अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है. इससे पहले सेना ने केस में कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का विकल्प चुना था.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने यह तय करने के लिए सेना को 8 हफ्ते का वक्त दिया था कि वह इस केस के लिए ट्रायल सामान्य अदालत में चाहती है या कोर्ट मार्शल का सामना करना चाहती है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर 2017 में उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें फर्जी एनकाउंटर के आरोपी 5 सैनिकों के खिलाफ कार्यवाही बंद करने के सेना के फैसले को चुनौती देने वाले जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के निर्णय को चुनौती दी गई. फर्जी एनकाउंटर के शिकार लोगों के परिवार के सदस्यों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर केस को फिर से खोल कर दोबारा ट्रायल की मांग की थी. 19 साल के बाद भी इस केस के सिलसिले में किसी को कोई सजा नहीं हुई है.

श्रीनगर सेक्स कांड

कश्मीर में 2006 में हुए सेक्स कांड में राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, राजनेता और बड़े अफसर शामिल थे. अभियुक्तों पर विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसमें 5 साल की लड़की से रेप का मामला भी शामिल था. मुख्य अभियुक्त सबीना की पहले ही मौत हो चुकी है, जबकि कुछ अहम अभियुक्तों की सम्मान के साथ रिहाई हो गई. सीबीआई ने शुरू में इस मामले के अभियुक्तों पर पूरी ताकत के साथ शिकंजा कसा. हालांकि, अचानक से यह मामला पूरी तरह ठहर गया.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

जानकार और राजनीतिक टीकाकारों का मानना है कि इस मामले में कई असरदार लोगों की संलिप्तता के कारण जांच एजेंसी सुस्त पड़ गई. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 14 अभियुक्तों के ट्रायल को श्रीनगर से चंडीगढ़ सीबीआई कोर्ट में शिफ्ट कर दिया गया. हालांकि, इस मामले में ठीक तरीके से जांच नहीं करने पर सीबीआई को आलोचना का भी सामना करना पड़ा.

सीबीआई ने बयान बदलने के लिए किया था मजबूर

इस मामले में एक महिला अभियुक्त ने दावा किया था कि सीबीआई ने उन्हें अपना बयान बदलने को मजबूर किया. वकील इमरोज कहते हैं, ‘जम्मू के लोग जानते हैं कि कश्मीर घाटी में उन लोगों के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए सीबीआई उन्हें बरी कर देगी और वे उन लोगों को भी जानते हैं, जिन्होंने गुनहगारों की मदद की है.’

पीडीपी नेता और राज्य सरकार में मंत्री नईम अख्तर ने सीबीआई जांच की मांग को लेकर हाल में कांग्रेस पार्टी के नेताओं की आलोचना की थी. उन्होंन ट्वीट कर कहा था, ‘मीर (कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष) संयोग से सेक्स कांड में सीबीआई जांच के कारण इसका गलत फायदा उठाने वालों में शामिल हैं. इसके बावजूद वह उच्च नैतिकता का दावा कर रहे हैं. मुमकिन है कि वह अपना अनुभव बयां कर रहे हों.’

अख्तर का कहना था, ‘2006 में जिस सेक्स रैकेट का खुलासा हुआ था, उस पर सीबीआई ने लीपा-पोती कर दी और इस सिलसिले में जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया था, वे अदालत द्वारा बरी कर दिए गए.’

पुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के प्रवक्ता रफी मीर ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, ‘हमारा रुख बिल्कुल साफ है कि क्राइस ब्रांच के केस की निगरानी हाईकोर्ट द्वारा की जा रही थी, न कि हम निगरानी के काम में शामिल थे. अदालत ने जांच एजेंसी को इस मुकदमे में नामजद लोगों को गिरफ्तार करने को कहा, जिसके बाद एजेंसी हर हफ्ते स्टेटस रिपोर्ट दिखाती रही. यह हमारा निर्देश नहीं था. पीड़िता का परिवार सीबीआई जांच की मांग नहीं कर रहा है, बल्कि कथित गुनहगार ऐसा कर रहे हैं. हम इस मामले में जल्द से जल्द न्याय के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की मांग कर रहे हैं.’ इस मामले में भी किसी को भी सजा नहीं हुई.

शोपियां ‘रेप और मर्डर’ केस

शोपियां की रहने वाली 22 साल की नीलोफर और उनके पति की बहन असिया से कथित रेप और हत्या के मामले ने 2009 में कश्मीर के माहौल को और गर्मा दिया था. 30 मई 2009 को दोनों अपने बाग में गई थीं और उसके बाद पास में मौजूद जलधारा में उन दोनों की लाश मिली. राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 2009 में ही केस की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया था. इसी मामले में सीबीआई जांच की मांग को लेकर पीडीपी नेता और मौजूदा सीएम महबूबा मुफ्ती ने एक दिन पुलिस स्टेशन में गुजारा था.

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पीड़िताओं के परिवार के सदस्यों के मुताबिक, दोनों महिलाओं का शव एक जलधारा से बरामद किया गया था और उस वक्त वहां पर पानी का स्तर 5 इंच भी नहीं था. एक सदस्य वाले जांच आयोग का कहना था कि इन महिलाओं का रेप कर उनकी हत्या कर दी गई. हालांकि, सीबीआई ने उन पांच पुलिस अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी, जिन्हें पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने आरोपित किया था. सीबीआई के मामले को अपने हाथ में लेने से पहले एसआईटी ने इसकी जांच की थी.

जांच एजेंसी का कहना था कि मौत से पहले असिया जख्मी हुई थीं और इसके बाद पानी में डूब जाने पर दम घुटने से उनकी मौत हुई. नीलोफर के मामले में आरोप पत्र में कहा गया था कि उनके शरीर पर कहीं भी जख्म के निशान नहीं थे और मौत डूबने से दम घुटने के कारण हुई. केंद्रीय जांच एजेंसी ने आरोप पत्र में 6 डॉक्टरों, 5 वकीलों और 2 आम नागरिकों पर फर्जी तरीके से सबूत जुटाकर यह दिखाने का आरोप लगाया कि दोनों महिलाएं की हत्या किए जाने से पहले उनके साथ रेप किया गया.

नीलोफर के पति और असिया के भाई शकील अहन्गर ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, ‘जब आरोप पत्र पेश किया गया, तो न्याय के सिस्टम से मेरी उम्मीद खत्म हो गई. साथ ही, जांच एजेंसी पर नेताओं द्वारा जताया गया भरोसा भी टूट गया. शोषण-दमन के शिकार लोगों का मजाक बनाने के लिए राज्य की तरफ से राजनीतिक टूल के तौर पर इन लोगों का इस्तेमाल किया जाता है.’

एयर फोर्स कर्मियों की हत्या

25 जनवरी 1990 को संदिग्ध आतंकवादियों ने भारतीय वायु सेना के चार कर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. उस वक्त आतंकवाद की शुरुआत होने के बाद सुरक्षा बलों ने श्रीनगर का नियंत्रण अपने हाथों में लेकर आतंकवादियों को ठिकाने लगाने के लिए अभियान शुरू किया था.

ट्रायल के दौरान अभियुक्तों की तरफ से ट्रांसफर संबंधी आवेदन दिया गया था. इसे खारिज कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने (अभियुक्तों) केस के ट्रांसफर के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी और फिलहाल श्रीनगर की अदालत ट्रांसफर अपील पर सुनवाई कर रही है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

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सरकार ने भारतीय वायु सेना के चार कर्मियों की हत्या मामले में सीबीआई जांच का आदेश दिया था. हालांकि, इस जांच का क्या नतीजा निकला, यह किसी को पता नहीं है. इस घटना के 28 साल बीत जाने के बाद भी किसी को सजा नहीं हुई है. जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के नेताओं मोहम्मद यासिन मलिक, मंजूर अहमद सोफी, जावेद अहमद मीर, शौकत अहमद बख्शी, जावेद अहमद जरगर और अली मुहम्मद मीर को इस केस में अभियुक्त बनाया गया. यह केस भी सीबीआई को दिया गया, लेकिन 28 साल के बाद भी किसी को सजा नहीं हुई है.

मेहरान लतीफ केस

श्रीनगर के हब्बाकादल इलाके से 13 मई 2008 को गुम हुए तीन साल के बच्चे लतीफ के मामले में जांच शुरू करने के लिए जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने 6 फरवरी 2014 को सीबीआई को निर्देश जारी किया था. यह बच्चा मिठाई खरीदने के लिए अपने घर से बाहर निकला था और उसके बाद उसका कुछ पता नहीं चल सका.

जांच एजेंसी को भी बच्चे के ठिकाने के बारे में कुछ भी पता नहीं चल सका. शहर की एक अदालत ने इस सिलसिले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया, जिसके बाद इस केस को बंद कर दिया गया. इस घटना के 10 साल गुजर जाने के बाद किसी को भी यह नहीं पता है कि उस बच्चे का क्या हुआ.

सैलान नरसंहार

19 साल बीत जाने के बाद भी सैलान नरसंहार के पीड़ितों के परिवारों को अब भी न्याय मिलने का इंतजार है. पुंछ जिले के सैलान गांव में स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स (एसपी) और 9 पारा कमांडो बटालियन के सुरक्षाकर्मियों द्वारा आम नागरिकों पर गोली चलाई गई, जिसमें 19 लोग मारे गए थे.

इमरोज कहते हैं, ‘यह वैसे मामलों की सटीक मिसाल है, जिसके तहत सिस्टम पीड़ितों के परिवारों को थकाकर निराश कर देता है और आखिर में सैन्य बलों के लिए माफी सुनिश्चित करने की कोशिश करता है.’

सीबीआई

सीबीआई ने 25 अगस्त 2015 को जम्मू में सीबीआई कोर्ट के समक्ष क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की. सीबीआई के डीएसपी अशोक कालरा ने सैलान नरसंहार में जांच को बंद करने की मांग की. इस केस में भी किसी को सजा नहीं हुई.

JKCA क्रिकेट घोटाला

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने इस साल फरवरी में सीबीआई को निर्देश दिया कि वह करोड़ों के जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) घोटाले में एक महीना के भीतर आरोप पत्र पेश करे. यह काम अब तक नहीं हुआ है.

यह भी पढ़ें- सीबीआई ने सुलझाया कोटखाई रेप मामला, आरोपी गिरफ्तार

यह मामला 2012 में जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन में तकरीबन 113 करोड़ रुपए के गबन से जुड़ा है. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने अप्रैल 2002 से दिसंबर 2011 के दौरान जेकेसीए को यह रकम ट्रांसफर की थी, लेकिन फंड का कथित तौर पर गबन कर लिया गया. हाईकोर्ट ने पिछले साल 9 मार्च को इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपते हुए कहा कि पुलिस की जांच में तेजी और विश्वसनीयता का अभाव है.

सीबीआई ने जांच पूरी करने के लिए समयसीमा बढ़ाने के लिए कई बार आवेदन दिया. पिछली बार जब सीबीआई ने समयसीमा बढ़ाने की मांग की, तो बाकी पक्षों ने इसका जोरदार विरोध किया और कोर्ट ने केंद्रीय जांच एजेंसी को फरवरी में इस बाबत आखिरी मौका दिया. अब तक जांच एजेंसी ने कोर्ट के सामने कोई आरोप पत्र पेश नहीं किया है.

 

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