जरा विचार कीजिये, क्या इसी आजादी की खातिर हमारे हजारों जवान शहीद हुए

राजेश श्रीवास्तव

आज गणतंत्र दिवस की 71वीं वर्षगांव है। देश अपने गणतंत्र के 7० वर्ष पूरे कर चुका है। साथ ही सरिता प्रवाह भी अपनी उतार-चढ़ाव भरी पांच वर्ष की यात्रा पूरी कर चुका है। छठे वर्ष में सरिता प्रवाह के प्रवेश की यात्रा निश्चित रूप से आप सबकी साक्षी रही है और आप सब बराबर के गवाह बने, हमने जिन-जिन संघर्षों के पथ पर चलकर आज छठे प्रवेश में प्रवेश किया, निश्चित रूप से उसके पीछे आप सबका साथ और विश्वास ही रहा कि आपने कभी भी हर रूप में हमें स्वीकार किया। निरंतर आप सबकी मीठी-खट्टी टिप्पणियां, बधाईयां, आलोचनाएं सभी कुछ तो मिला। यह आप सबका किसी न किसी रूप में सहयोग ही रहा कि हम आज नये कलेवर में एक यूटñूब चैनल शुरू किया है और मात्र दस दिन के अंदर ही इसके पांच सौ से अधिक दर्शक हो चुके हैं।
आज देश अपना 71वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। परंतु आज सोचने की जरूरत है कि क्या देश के तत्कालीन नेताओं ने इसी भारत की कल्पना की थी। क्या वह भारत को अमेरिका, ब्र्रिटेन और रूस सरीखा बनाना चाहते थ्ो। दुर्भाग्य यह है कि हमारा संविधान इन्हीं देशों को मिला-जुला कर बनाया गया जो आज भी कई मामलों में अपने देश के लोकतंत्र के लिए मुफीद नहीं बैठता। यह सवाल बड़ा है और गंभीर है। भारत के नेताओं को भारत के विचार संस्कार और संस्कृति का संरक्षण करने वाला संविधान बनाना चाहिए था। वहीं संविधान सभा में शामिल अधिकांश सदस्य विदेशों में पले बढ़े व वहां की संस्कृति में रचे बसे थें उनकी दृष्टि में पश्चिम की संस्कृति ही उत्कृष्ट थी। उसी आधार पर उन्होंने पश्चिम के चश्मे से भारत को देखा और उसी आधार पर संविधान का मसौदा तैयार किया। प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने मन की वेदना को प्रकट करते हुए कहा था कि जिस संविधान को हमने अंगीकार किया है वह पश्चिमी संविधान की नकल मात्र है। उसमें नया कुछ भी नहीं है। इसी प्रकार बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर को भी मात्र संविधान के तीन वर्ष लागू होने के बाद ही भारतीय संविधान के दोषपूर्ण पक्ष की अनुभूति होने लगी थी। क्योंकि किसी भी देश व राष्ट्र का संविधान राष्ट्र की अस्मिता का परिचय देने वाला होता है। इसलिए भारत के संविधान में भारतीयता का जो पुट होना चाहिए उसका अभाव जरूर खटकता है। संविधान में देश का नाम भारत की जगह इण्डिया लिखकर हजारों वर्षों के हमारे गौरवशाली इतिहास को विस्मरण कराने का प्रयास हुआ। यह अंग्रेजों की चाल थी जिसको हमारे नेता समझ नहीं पाये। संविधान के अनुच्छेद एक में उल्लिखित इण्डिया दैट इज भारत मानसिक दासता का प्रतीक है। सम्पूर्ण भारतीय वाड्मय में एवं अभिलेखों में इस देश का नाम भारत आर्यावतã तथा जम्बूद्बीप है। भारत नाम पुरातन और सनातन है। भारत नाम से राष्ट्र के स्वर्णिम अतीत की याद आती हैं तथा मन में गौरव की अनुभूति होती है। नाम का महत्व होता है। अंग्रेज इस देश को इण्डिया बनाने में लगे थे। हमने इण्डिया बनाकर गलती की। लार्ड मैकाले की योजना सफल हुई। परिणाम यह हुआ कि भारत का संविधान लागू होने के इतने लम्बे कालखण्ड के बाद भी अंग्रेजी का वर्चस्व देश में हैं। तमाम प्रयास के बावजूद आज तक न्यायालयों की भाषा हिन्दी नहीं हो सकी। सरकारी विभागों की वेबसाइट अंग्रेजी में तो हैं लेकिन हिदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में नहीं है। उच्च शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेजी ही है। इस मानसिकता को त्यागना होगा। अंग्रेजी में ही हम प्रगति कर सकते हैं इस भाव को मन से निकालना होगा। साथ ही सरकार को मातृभाषा को बढ़ावा देना होगा। आज यदि संशोधन आवश्यक है तो करना चाहिए। सभी देशों में संविधान की समीक्षा,संशोधन परिवर्तन आदि समय समय पर होते रहते हैं। भारत का संविधान बहुत ही लचीला है। वर्षों बाद भी हम सभी नागरिकों को सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं दिला सके और न ही आर्थिक समानता ला सके। सामाजिक समरसता का विचार करते हुए आर्थिक संतुलन बनाये रखना आज की सबसे बड़ी जरूरत है। वहीं विचार स्वातंत्रय के नाम पर कुछ राष्ट्रविरोधी तत्व समाज में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। भारत में यदि संसद कानून बनाती है तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जाती है। यह हमारे संविधान की कमजोरी भी है। वर्तमान केन्द्र सरकार नागरिकता संशोधन जैसा कानून बनाती है तो उसको भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाती है। संसदीय प्रणाली में मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है लेकिन वर्तमान का विपक्ष बेवजह विरोध कर रहा है। सीएए के विरोध के नाम पर जनता को गुमराह किया जा रहा है जबकि स्पष्ट है कि इसमें परिवर्तन अब नहीं होने वाला है। भारत की न्याय प्रणाली बहुत ही जटिल है। आम आदमी को न्याय मिलना कठिन हो रहा है। इसमें सुधार करना होगा। निर्भया के दोषियों का अब तक फांसी नहीं हुई, यह संविधान में ही खामी है। सवाल बहुत हैं पर आज आजादी का पर्व है हम सबको सोचना होगा कि हम आज जिस आजादी को जी रहे हैं क्या उसी आजादी की परिकल्पना हमारे संविधान रचयिताओं या देश के शहीदों ने की थी।

 

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