जेपी, आम्रपाली दिवालिया हुए तो उनकी प्रॉपर्टी पर बायर्स का भी हक

नई दिल्ली। करीब 12-15 साल पहले दिल्ली-एनसीआर में अफोर्डेबल हाउसिंग की लहर चली थी. आईटी सेक्टर का बुलबुला फूटने के बाद पहली बार लोगों में घर खरीदने का जोश नजर आ रहा था. मिडिल क्लास के लिए दिल्ली के आस-पास घर बसाने का सपना पूरा होता नजर आ रहा था.

उन दिनों दिल्ली से सटे नोएडा की तरफ जाने पर भरी दोपहर में भी सड़क किनारे कई लोग हाथों में बिल्डर का पोस्टर या पर्चा लिए खड़े रहते थे. इन लोगों का काम वहां से गुजरने वाली गाड़ियों को रोक-रोककर नए प्रोजेक्ट्स के बारे में बताना और मार्केटिंग ऑफिस तक पहुंचाना था. इस काम के लिए उन्हें हर विजिटर पर 200 या 300 रुपए मिलते थे. बजट में घर खरीदने का उत्साह मिडिल क्लास में इतना ज्यादा था कि उन्होंने एक पल के लिए भी यह नहीं सोचा कि अगर यह घर नहीं मिला तो क्या होगा.

अफोर्डबल हाउसिंग का सपना मिडिल क्लास के लिए मृग मरीचिका साबित हुआ है. बिल्डर्स ने इन घरों की बुकिंग तब शुरू की थी जब वहां नींव भी नहीं पड़ी थी. खाली जमीन पर हाई राइज इमारतों का सपना आम आदमी को इतना भारी पड़ेगा तब किसी ने नहीं सोचा था. जेपी, गार्डेनिया, आम्रपाली अर्थ जैसे कई बिल्डर्स हैं जिनके प्रोजेक्ट्स उन दिनों हाथोंहाथ बिके थे.

बड़े-बड़े बिल्डर्स दिवालिया होने की कतार में

जेपी और आम्रपाली के प्रोजेक्ट में घर खरीदने वालों को इस बात का अंदेशा भी नहीं था कि 6-7 साल बाद भी उन्हें किराए के घर में ही रहना होगा. किराए और ईएमआई की दोहरी मार से होम बायर्स की कमर टूट गई है. दूसरी तरफ बिल्डर्स प्रोजेक्ट बीच में छोड़कर खुद को दिवालिया घोषित करने में जुट गए. बिल्डर्स के दिवालिया घोषित होने के बाद उन पर होम बायर्स की कोई जिम्मेदारी नहीं रह जाती. लेकिन बुधवार को ताजा फैसले में केंद्र सरकार ने होम बायर्स को राहत देने और बिल्डर्स पर नकेल कसने के लिए एक अहम फैसला लिया है.

होम बायर्स के हाथ होंगे मजबूत

लॉ मिनिस्टर मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि केंद्र सरकार ने इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड में बदलाव को मंजूरी दे दी है. इसमें बदलाव से होम बायर्स भी बैंकों के बराबर आ गए हैं. मौजूदा नियमों के मुताबिक अगर कोई कंपनी दिवालिया घोषित होती है तो उसकी प्रॉपर्टी पर उसके कर्जदारों का ही हक होता है. यानी अगर बिल्डर ने बैंक से लोन लिया है तो दिवालिया होने पर उसकी प्रॉपर्टी पर बैंक का पहला हक होगा. बैंकों के अलावा अगर किसी दूसरे इनवेस्टर ने कंपनी की प्रॉपर्टी में निवेश किया है तो प्रॉपर्टी पर दूसरा हक उनका होगा. इनके पैसों की भरपाई करने के बाद अगर कुछ बचा तब होम बायर्स के हाथ कुछ लगेगा, जिसकी उम्मीद काफी कम होती है. लेकिन नए अध्यादेश के बाद किसी कंपनी के दिवालिया होने पर जितना हक बैंकों का होगा, उतना ही हक ग्राहकों का भी होगा.

अभी तक बिल्डर्स होम बायर्स की जिम्मेदारी से भागते रहे हैं. लेकिन बैंकरप्सी कोड में बदलाव के बाद यह उम्मीद है कि बायर्स को उनका हक जल्दी मिलेगा. रियल एस्टेट सेक्टर में रेगुलेशन की कमी के कारण बिल्डर्स होम बायर्स का हर तरह से शोषण करते थे. बिल्डर्स की मनमानियां रोकने के लिए ही इस साल रेरा (रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी) का गठन किया गया था. पहले रेरा और अब बैंकरप्सी कोड में बदलाव से सरकार ने मिडिल क्लास होम बायर्स को बढ़ी राहत दी है.

 

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