…..तो अपने भाई को बचाने के लिए मायावती राष्ट्रपति चुनाव में कर सकती है भाजपा प्रत्याशी का समर्थन

लखनऊ। राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी गोलबंदी के सहारे कांग्रेस को भी संकट के दौर से उबारने की कमान एक बार फिर सोनिया गांधी ने संभाल ली है। बीते एक साल से बतौर कांग्रेस उपाध्यक्ष पार्टी का पूरा कामकाज देखते रहे राहुल गांधी राष्ट्रपति चुनाव में दूसरे विपक्षी नेताओं से सोनिया के शुरू हुए संवाद के सिलसिले में फिलहाल सहयोगी की भूमिका में ही दिखाई दे रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव को अगले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता की बुनियाद मान रहीं कांग्रेस अध्यक्ष विपक्षी नेताओं से चर्चा के क्रम में अगले हफ्ते राजद प्रमुख लालू प्रसाद के साथ भी बैठक करेंगी।

सूत्रों का कहना है कि भले ही बसपा सुप्रीमो मायावती भाजपा का मुखर विरोध कर रही हों, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का समर्थन कर सकती हैं। इसके दो कारण माने जा रहे हैं। पहला मायावती के भाई आनंद कुमार पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने काफी सख्ती कर रखी है। अपने भाई को बचाने के लिए मायावती भाजपा के शीर्ष नेताओं से मेल मुलाकात का दौर बड़ा दिया है। सूत्रों का कहना है कि मायावती PM नरेन्द्र मोदी से मिलने के लिए समय माँगा है। दूसरा कारण है कि भाजपा की नजर बसपा के विधायकों पर है। लगभग 12 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। इस तथ्य से मायावती भलीभांति परिचित हैं। इन्ही मजबूरियों के चलते बसपा राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का समर्थन कर सकती है।

राजद प्रमुख लालू प्रसाद के सोनिया गांधी से उन्हें राष्ट्रपति चुनाव पर चर्चा का निमंत्रण मिलने के बयान से साफ है कि लगातार चुनावी हारों से पार्टी के बढ़ते संकट की गंभीरता को देखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने फिर से अपनी राजनीतिक सक्रियता बढ़ा दी है। स्वास्थ्य वजहों से सोनिया गांधी पिछले साल अगस्त से ही राजनीतिक सक्रियता से दूरी बना रहीं थी। वाराणसी में रोड शो के दौरान गंभीर हुई बीमारी के बाद सोनिया ने कांग्रेस का संचालन लगभग छोड़ दिया था और राहुल पार्टी की कमान संभालने के साथ-साथ दूसरे विपक्षी नेताओं से अहम मसलों पर संवाद को वे ही आगे बढ़ा रहे थे। नोटबंदी के खिलाफ विपक्षी गोलबंदी में ममता बनर्जी से लेकर वामपंथी दलों को एक मंच पर लाने की सियासत में भी राहुल मुखर रहे थे। यहां तक की कांग्रेस कार्यसमिति ने प्रस्ताव पारित कर नवंबर में सोनिया से राहुल को पार्टी अध्यक्ष पद सौंपने का आग्रह तक कर दिया।

उत्तर प्रदेश चुनाव में कांग्रेस के सफाये और भाजपा की बड़ी धमाकेदार जीत के बाद राजनीतिक समीकरणों की दशा-दिशा बदल गई है। कांग्रेस समेत विपक्षी खेमे में शामिल तमाम क्षेत्रीय दलों को भी अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए भाजपा बड़ा खतरा दिख रही है। माना जा रहा कि सियासी खतरे की इस गंभीरता को भांपते हुए ही सोनिया ने राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एकजुट कर सरकार के सामने मजबूत चुनौती पेश करने की रणनीति की कमान थामी है। पार्टी को उम्मीद है कि सोनिया के राजनीतिक कद की वजह से विपक्षी एकजुटता एक ओर जहां अधिक धारदार दिखेगी। वहीं दूसरी ओर लगातार हार के मनोबल से झुके कांग्रेसियों को इससे उम्मीदों की नई ऊर्जा मिलेगी।

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सोनिया की दूसरे विपक्षी नेताओं से शुरू हुई चर्चा के बावजूद सरकार से इस मसले पर संवाद का रास्ता अभी खुला रखा गया है। विपक्षी नेताओं से भी कांग्रेस नेतृत्व की इस पर चर्चा हुई है। राष्ट्रपति चुनाव पर सरकार के साथ आम सहमति बनाने का विकल्प खुला रखने के बावजूद सत्तापक्ष के इस पर राजी होने की कांग्रेस को उम्मीद कम है। इसीलिए विपक्षी नेताओं से आम राय के अलावा विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार उतारने की दोहरी रणनीति पर मशविरा किया जा रहा है।

विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर शरद यादव से लेकर शरद पवार तक के नाम सियासी अटकलों के तौर पर उछाले जा रहे हैं। मगर हकीकत में अभी किसी नाम पर कोई गंभीर चर्चा नहीं हुई है। संकेतों से साफ है कि राष्ट्रपति पद के लिए सरकार का रुख और उम्मीदवार की उसकी पसंद देखने के बाद ही विपक्ष अपनी रणनीति और उम्मीदवार दोनों का फैसला करेगा। नीतीश कुमार और येचुरी से सोनिया की चर्चा के बाद अगले हफ्ते लालू और भाकपा महासचिव सुधाकर राव से उनकी मुलाकात होनी है। कांग्रेस अध्यक्ष द्रमुक नेता स्टालिन को भी इस पर चर्चा के लिए बुलाएंगी।

 

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