दिल्ली में काम करता हूं, लेकिन आसरा यूपी ने दे रखा है, इलाज के लिए राज्य की पाबंदी बेमानी है

पंकज चतुर्वेदी

दिल्ली के अस्पतालों में बाहर के राज्यों से आए लोगों का इलाज नहीं होगा– यह बात कह कर केजरीवाल जी ने एक राजनीतिक बहस छेड़ दी है ।यह बात सही है कि दिल्ली के स्वास्थ्य कर्मी कोरोना महामारी के शुरू होते से ही खुद कोरोना के शिकार हो रहे हैं ।अकेले एम्स में 500 से अधिक डॉक्टर, नर्स, चिकित्सा कर्मी और गार्ड कोरोना के चपेट में आ चुके हैं। दिल्ली में कम से कम 5 डॉक्टर और 10 से अधिक अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की मौत कोरोना के कारण हो चुकी है। यह बात सही है कि हर तरीके की पाबंदी खत्म होने के बाद अब दिल्ली पर कोरोना का संकट गहरा हो रहा है। लेकिन क्या दिल्ली में आए किसी अन्य राज्य के लोगों को इलाज के लिए मना किया जा सकता है? अब मैं अपना उदाहरण दूं– मेरा घर गाजियाबाद जिले में पड़ता है लेकिन मैं नौकरी दिल्ली में करता हूं ।कह सकते हैं कि रात में सोने के लिए घर पर आता हूं लेकिन सारा दिन दिल्ली में बिताता हूं। मैं पेट्रोल वहां से खरीदता हूं ,उसका टैक्स दिल्ली को देता हूं ।दिन भर का बहुत सारा सामान वहां से खरीदता हूं उसका टैक्स देता हूं। ऑफिस दिल्ली में है जिसमें में काम करता हूं, उससे मिलने वाले विभिन्न कर दिल्ली सरकार को जाते हैं।

अब मैं तो त्रिशंकु हो गया — मैं दिल्ली का कहलाऊंगा कि गाजियाबाद का। यह एक कटु सत्य है कि दिल्ली ने अपने लोभ, अपने लालच में कई जरूरी और गैर जरूरी कार्य और कार्य स्थलों को अपनी छाती में बसा लिया ,लेकिन दिल्ली में काम करने वाले लोगों को, सीमित आय के लोगों को, वाजिब दाम पर बेहतरीन आवास स्थल देने में असफल रही है ।अब आज मुझे गाजियाबाद में जो 40 से 50 लाख में दो बेडरूम का फ्लैट एक अच्छी कॉलोनी में मिल जाता है, दिल्ली में उसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। दिल्ली मुझे आवास देने में असफल रही है, इसलिए मुझे उत्तर प्रदेश ने आसरा दिया है।

मेरा आधा दिन दिल्ली में तो आधा यूपी में बीतता है। कहीं मेरी ड्यूटी के समय मैं बीमार हो जाऊं और मुझे दिल्ली सरकार के किसी अस्पताल में ले जाया जाए और वहां पर अस्पताल वाले मेरे घर का पता देख कर मुझे भगा दें! कैसी अजीब स्थिति होगी ना?

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की लगभग 4 करोड़ की आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसा ही है। हजारों लोग हैं जिनके कार्यस्थल गाजियाबाद ,गुड़गांव, नोयडा, फरीदाबाद में हैं लेकिन दिल्ली में रहते हैं। लाखों लोग हरियाणा, उत्तर प्रदेश के जिलों में रहते हैं लेकिन नौकरी करने दिल्ली जाते हैं । नौकरी अर्थात दिल्ली राज्य के विकास के लिए अपना समय देते हैं, श्रम देते हैं लेकिन दिल्ली की सरकार इन सभी को आसरा नहीं दे सकती इसलिए मजबूरी में ये उत्तर प्रदेश , हरियाणा के सीमावर्ती जिलों में जाकर बसते हैं। विडंबना है कि आज दिल्ली सरकार अस्पताल जैसे सुविधाओं के लिए सवाल खड़े कर रही है

असल में दिल्ली में स्वास्थ्य, सुरक्षा ,परिवहन के लिए एक समग्र प्लान बनाना चाहिए जो दिल्ली एनसीआर के सभी लोगों को एकरूप से मिलता। यदि व्यवस्थाएँ अच्छी हों तो नांगलोई या द्वारका का वाशिंदा इलाज के लिए गुरुग्राम चला जाता और लोनी या साहिबाबाद का दिल्ली। एक एप ऐसा होता जो पूरे एनसीआर नें सरकारी अस्पतालों के खाली बिस्तरों की जानकारी देता। सीमाएं बन्द करने की जरूरत न होती।

यह असल में अपनी असफलताओं पर पर्दा डाल कर सियासती तू तू मैँ मैँ की नूरा कुश्ती से ज्यादा नहीं।
इस नक्शे को देखिए और बताएं कि महज 5 मीटर दूरी पर जब राज्य बदलता हो,जहां की आधी आबादी काम या आवास के लिए एक दूसरे राज्य में जाती हो, वहां इलाज के लिए राज्य की पाबंदी बेमानी है।

(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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