धड़कन की गति धीमी है तो आप निडर हैं

इंसान की शख़्सियत कई चीजों से मिलकर बनती है. हमारी पढ़ाई-लिखाई, खाना-पान, उठने-बैठने, बोलने-चालने का तरीका आदि से शख़्सियत का निर्माण होता है. इन्हीं की बुनियाद पर हम किसी के बारे में राय बना लेते हैं. मसलन अगर कोई सब से हंसकर बात करता है तो हम उसे खुशमिजाज कहते हैं. अगर कोई अपने इर्द गिर्द बहुत सफाई रखता है तो हम उसे नफासत पसंद कहते हैं. लेकिन ये हमारी शख़्सियत के जाहिरा पहलू हैं. दरअसल हमारा असल भूमिका सब से छिपा रहता है और इसकी जड़ें हमारे में ही कहीं छिपी होती हैं. हाल में हुई रिसर्च के मुताबिक हमारे व्यक्तित्व का ताल्लुक हार्मोन्स  रोगों से लड़ने की क्षमता से होता है. इसी के आधार पर हमारी जिस्मानी दिमाग़ी स्वास्थ्य का पैमाना तय होता है. इसके अतिरिक्त हमारे व्यक्तित्व का आनुवांशिक आधार भी होता है. इसका प्रभाव हमारे बर्ताव  जिस्म दोनों पर पड़ता है.

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एक रिसर्च के मुताबिक दिमाग में होने वाली प्रतिक्रियाओं के मुताबिक हार्मोन्स कार्य करते हैं  उसी के आधार पर हम हंसमुख, कम बोलने वाले या हाजिर जवाब बन जाते हैं. मिसाल के लिए जब हम तनाव में होते हैं, तो बॉडी में कॉर्टिसोल हार्मोन पैदा होता है. इस हार्मोन पर की गई शुरुआती रिसर्च के नतीजे अलग-अलग पाए गए हैं. वैसे भी ये रिसर्च मुंह से निकलने वाली लार को आधार बनाकर की गई थी. पाया गया कि लार में इस हार्मोन का स्तर एक ही दिन में कई बार घट  बढ़ रहा है. लिहाजा इसके नतीजों को फैसलाकुन नहीं माना गया.

साल 2017 के अंत में करीब दो हजार लोगों पर करीब तीन महीने रिसर्च की गई. इन सभी के बाल तीन इंच तक काटे गए. जिसके बाद पाया गया कि इस दौरान जिन प्रतिभागियों में कार्य के प्रति जिम्मेदारी का भाव ज़्यादा आया उनके बालों में कॉर्टिसोल हार्मोन का स्तर काफी नीचे था. बॉडी में इस हार्मोन के घटने या बढ़ने का संबंध खान-पान  एक्सरसाइज़ से भी होता है. लेकिन इस रिसर्च से एक बात साफ हो गई कि कार्य को लेकर संजीदा लोगों को तनाव कम होता है.

ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं है कि उनके बॉडी में कॉर्टिसोल हार्मोन कम जमा होता है बल्कि उनका खान-पान  ज़िंदगी स्तर बहुत अहम भूमिका निभाता है. ऐसे लोग तनाव को खुद पर हावी नहीं होने देते. इससे उनकी आयु बढ़ जाती है.

शख़्सियत का एक  पहलू जो हमारी स्वास्थ्य से जुड़ा वो है न्यूरोटिसिजम जिसे हम दिमागी परेशानी कहते हैं. इसका संबंध दिमाग की नसों से होता है. जिन लोगों में न्यूरोटिसिजम के लक्षण ज्यादा पाए जाते हैं उन्हें गुस्सा जल्दी आता है. वो किसी से भी बहुत जल्दी बैर पाल लेते हैं, छोटी-छोटी बातों पर मूड बिगाड़ लेते हैं. अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं. दूसरे शब्दों में ऐसे लोगों की हर दम खुद से ही लड़ाई चलती रहती है. इससे इनकी स्वास्थ्य पर तो बुरा प्रभाव पड़ता ही है साथ ही सामाजिक रिश्तों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है.

शख़्सियत के इस पहलू का रिश्ता बहुत हद तक हमारे खान-पान  आंत में रहने वाले माइक्रोबैक्टीरिया से है. कुछ लोगों की खाने की आदतें नियंत्रित करने की एक रिसर्च की गई जिसके नतीजे 2017 में जारी हुए. रिसर्च बताती है कि न्यूरोटिसिज़्म  गेमा प्रोटोबैक्टीरिया के बीच गहरा ताल्लुक है. ये बैक्टीरिया पेट में कई तरह के जीवाणुओं को जकड़े रहता है. जो स्वास्थ्य के लिए बहुत खतरनाक हैं. ये धीरे-धीरे लेकिन लंबे समय तक अपना प्रभाव डालते हैं. ऐसा नहीं है कि पेट में सिर्फ खराब बैक्टीरिया ही जमा रहते हैं. कुछ बैक्टीरिया अच्छे भी होते हैं, जो हमारे पाचन तंत्र दिमाग के लिए महत्वपूर्ण हैं.

इस रिसर्च में कार्य के प्रति जिम्मेदारी का ताल्लुक भी पेट में पलने वाले जीवाणुओं के साथ पाया गया. रिसर्च में शामिल जिन लोगों का कार्य में कम मन लगता था, उनके पेट में अच्छे बैक्टीरिया कम पाए गए थे.

न्यूरोटिक  कम कर्तव्यनिष्ठ लोग जल्द बीमार होने लगते हैं. ऐसा क्यों होता है? इस पर भी रिसर्च जारी है. हालांकि अभी तक ये सभी रिसर्च बहुत शुरुआती दौर में हैं, लिहाजा कुछ भी साफ तौर पर कहना मुनासिब नहीं है. लेकिन इतना जरूर बोला जा सकता है कि शख़्सियत के इन दोनों पहलुओं के तार जीवन के शुरुआती दिनों से जुड़े हैं.

2015 में की गई रिसर्च के मुताबिक 18 से 27 महीने के बच्चे के बॉडी के तापमान  आंत में पलने वाले माइक्रोबैक्टीरिया में सीधा संबंध होता है. इसके अतिरिक्त ब्लड प्रेशर  पल्स रेट का रिश्ता हमारे भूमिका के कई पहलुओं से है. मिसाल के लिए 2017 में ब्रिटेन में करीब पांच हजार बुज़ुर्गों पर रिसर्च की गई. ये सभी बुज़ुर्ग 50 की आयु वाले थे.

पाया गया कि जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की शिकायत थी, उन्हें ग़ुस्सा जल्दी आता था,  तनाव भी रहता था. साथ ही वो किसी बात को गंभीरता से कम ही लेते हैं. इन सभी वजहों से इनकी स्वास्थ्य पर भी इसका प्रभाव था.

एक मिनट में 60 से 100 बार दिल का धड़कना स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है. लेकिन अच्छी शख़्सियत के लिए धड़कन की ये दर अच्छी नहीं है. कई रिसर्च में पाया गया है कि धड़कन की धीमी स्पीड हमारी सोच पर गहरा प्रभाव असर डालती है. इससे शख़्सियत में नेगेटिविटी आने लगती है. साथ ही लोगों का जुर्म के प्रति रुझान बढ़ने लगता है,  इंसान निडर हो जाता है.

कई लोगों में तो क्राइम की हूक इतनी तेज उठती है कि उसे लड़ाई झगड़ा करके ही सुकून मिलता है. हालांकि रिसर्च अभी जारी हैं  किसी भी रिसर्च का अंतिम नतीजा नहीं आया है. फिर भी अभी तक के नतीजों के मुताबिक इन्हें बहुत हद तक सही पाया गया है.

हर इंसान एक दूसरे से जुदा है. अच्छी  बुरी आदतें सभी में होती हैं. सभी में कोई ना कोई कमी जरूर है. साइंस हमें इंसान को समझने के लिए मदद का हाथ बढ़ाती है. लेकिन, विज्ञान के झरोखे से इंसान की गहराई तक नहीं पहुंचा जा सकता. हो सकता है नयी तकनीक के सहारे आने वाले वक़्त में ये साबित हो भी जाए, लेकिन फिल्हाल तो अलग-अलग शख़्सियत के लोग ही संसार के गुलशन को महका रहे हैं और शायद यही इंसान की खूबी  खूबसूरती है.

 

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