नीतीश पर तेजस्वी के बयान के बाद तकरार, दिलचस्प मोड़ पर बिहार की राजनीति

नई दिल्ली। राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर रामनाथ कोविंद को जेडीयू की तरफ से समर्थन के बाद बिहार की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ पर पहुंचती दिख रही है। महागठबंधन के दोनों बड़े दल लगातार एक दूसरे पर निशाना साध अपनी मंशा साफ कर रहे हैं। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि बिहार की सत्ताधारी पार्टियां लालू की अगुवाई वाली आरजेडी और नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले जेडीयू के बीच का यह गठबंधन क्या अतीत भर रह जाएगा? क्या यह राजनीति के नए सियासी समीकरण की ओर इशारा कर रहा है? क्या यह गठबंधन बेमेल है? ऐसे में तमाम सवाल सत्ताधारी दोनों ही दलों के बीच की जा रही बयानबाजियों के बीच उठ रहे हैं।

दरअसल, यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की तरफ से खड़े किए गए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिना आरजेडी को भरोसे में लिए अपना समर्थन देने का एलान किया। नीतीश ने बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन देते हुए इसे बिहार के सम्मान से जोड़ दिया। इसके साथ ही जब यूपीए ने ‘बिहार की बेटी’ कहकर मीरा कुमार को रामनाथ कोविंद के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा तो नीतीश ने 24 जून को कहा कि क्या बिहार की बेटी को हारने के लिए उतारा गया है। नीतीश के इस बयान के खिलाफ जाकर बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा- “मैदान में उतरने से पहले कोई कैसे कह सकता है कि कौन जीतेगा कौन हारेगा। हमारी लड़ाई विचारधारा से है।”

तेजस्वी से पहले लालू यादव ने खुद कोविंद को समर्थन देने पर नीतीश कुमार को आगाह करते हुए कह चुके हैं कि वह ऐतिहासिक भूल करने जा रहे हैं। इतना ही नहीं, तेजस्वी के बयान के बाद लालू यादव की तरफ से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया ना आने के बाद ऐसा माना जा रहा है लालू यादव का तेजस्वी को  समर्थन है। इससे पहले राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह ने बयान देते हुए कहा था- “मैने उस वक्त भी विरोध किया था लेकिन महागठबंधन के नेताओं ने फैसला कर लिया कि नीतिश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे तो मुझे भी सबकी बात माननी पड़ी।” इसके साथ ही रघुवंश प्रसाद ने कहा था कि यह महागठबंधन नहीं है बल्कि कुछ लोगों का गठबंधन है।

एक तरफ जहां तेजस्वी ने खुलकर नीतीश के खिलाफ बोला तो वहीं दूसरी तरफ आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर रामचंद्र पूर्वे ने भी उप मुख्यमंत्री का समर्थन करते हुए कहा कि तेजस्वी ने बिल्कुल ठीक कहा है। पू्र्वे ने कहा कि चुनाव से पहले हार कैसे मानी जा सकती है? उन्होंने लालू यादव का कद नीतीश से बड़ा बताते हुए कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि महागठबंधन का स्वरूप तय करने का श्रेय लालू यादव को जाता है। जबकि राजद के मनेर से विधायक भाई वीरेन्द्र ने नीतीश कुमार पर विवादित टिप्पणी करते हुए कहा कि नीतीश कुमार ने हमेशा लोगों को मूर्ख बनाया है। नीतीश ने हर मौके पर लोगों को ठगा है। ऐसा कोई सगा नहीं, जिसे नीतिश ने ठगा नहीं। लेकिन ठगनेवालों को जनता खुद सबक सिखाएगी।

आरजेडी क्यों कर रही है नीतीश कुमार पर हमले : दरअसल, इस बात को समझने के लिए आपको बिहार की राजनीतिक पृष्ठभूमि से अवगत होना जरूरी है। राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार ने बताया कि बिहार में यह सरकार अवसरवादिता का गठबंधन है। यह गठबंधन इसी आधार पर हुआ, जब नीतीश कुमार ने पाला बदला और मोदी का विरोध किया। ताकि वह राष्ट्रीय स्तर का नेता बन सकें।

जिस वक्त आरजेडी और जेडीयू का गठबंधन हुआ उस समय मोदी और नीतीश का समीकरण ठीक नहीं था और नीतीश को शुरू से ऐसा लग रहा था कि उनकी राष्ट्रीय स्तर पर छवि बन जाएगी। लेकिन, ऐसा नहीं हो पाया। ऐसे में अब आरजेडी के साथ नीतीश गठबंधन कर सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने बिहार के गवर्नर के नाम पर नई चाल चली। ताकि लालू यादव उन्हें फॉलो करने पर मजबूर हो जाएं।। नीतीश के सामने अपना वर्चस्व बचाने के लिए लकीर खींचनी जरूरी थी। इसी के चलते उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया और इसी के चलते वह आरजेडी के निशाने पर हैं।

दरअसल, शिवाजी सरकार का कहना है कि आज रामनाथ कोविंद के सामने कांग्रेस ने मीरा कुमार को राष्ट्रपति पद के चुनावी मैदान में उतारकर बिहार की राजनीति को चर्चा में ला दिया है। बिहार वर्सेज बिहार में नीतीश कुमार किसी दूसरे नेता को फॉलो करते हुए नहीं दिखना चाहते हैं। नीतीश को लगता है कि ऐसा करने से जेडीयू का अस्तित्व और उनकी राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।

राष्ट्रपति उम्मीदवार के समर्थन को लेकर महागठबंधन के दोनों दलों के बीच बढ़ी तल्खी के बाद कई सवाल मुंह बाए खड़े हैं। राजनीतिक विश्लेषक शिवाजी सरकार का मानना है कि नीतीश कुमार आज राष्ट्रीय राजनीति में कहीं नहीं है। ऐसे में जहां तक बिहार के गठबंधन का सवाल है तो उसमें नीतीश कुमार छोटा महसूस कर रहे हैं। 2019 के चुनाव से पहले उनको अपने वजूद को बचाने की बड़ी चुनौती है। लालू यादव की कोशिश नीतीश कुमार को अपने में समा लेने की है। आरजेडी की स्थिति आज जेडीयू के मुकाबले ज्यादा मजबूत दिख रही है। नीतीश कुमार अपने आपको कमजोर देख रहे हैं। इसके अलावा, नीतीश कुमार की अलग छवि रही है। जब तक नीतीश बीजेपी के साथ सरकार में रहे। उन्हें कभी भी दबाने की कोशिशें नहीं हुई, जबकि बिहार चुनाव के बाद लगातार लालू यादव नीतीश पर हावी दिख रहे हैं।

क्या आरजेडी के खिलाफ फैसला लेकर नीतीश ने बढ़ाई भाजपा से नजदीकियां : ये सवाल वाजिब है, क्योंकि जिस तरह से नीतीश एक के बाद आरजेडी के असहज करने वाले फैसले ले रहे है। उसके बाद से ही इस तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इस बारे में शिवाजी सरकार का यह मानना है कि नीतीश ने आरजेडी के खिलाफ नोटबंदी, सर्जिकल स्ट्राइक और अब राष्ट्रपति उम्मीदवार पर विपरीत फैसले लेकर भाजपा के साथ नजदीकियां बढ़ाई है। यह एक संकेत है भविष्य में एनडीए को ओर आगे बढ़ने के। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव बिहार की राजनीति के लिए एक टर्निंग प्वाइंट हो सकता है और नीतीश कुमार को अपने लिए अनुकुल कोशिश करने की। इससे न सिर्फ आरजेडी के बयानों को देखकर लगता है कि वह असहज महसूस कर रहे हैं। बल्कि विपक्षी दलों का गेम भी बदलता दिख रहा है

 

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