नेहरू अपने जीवन में अभूतपूर्व संकट की घड़ी में थे तो अमरीका ने उनकी मदद की

सुरेन्द्र किशोर

सन 1962 में जब प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू अपने जीवन में अभूतपूर्व संकट की घड़ी में थे तो अमरीका ने उनकी मदद की। उसने पाक को भारत पर हमला करने से रोक दिया था। 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया तो सोवियत संघ ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया कि एक मित्र और एक भाई के बीच के झगड़े में हम नहीं पड़ेंगे। पाक के लिए यह अच्छा अवसर था जब भारत भारी दबाव में था।

वैसे एक रिसर्च से बाद में पता चला कि सोवियत संघ की सहमति के बाद ही चीन ने भारत पर हमला किया था। रिसर्च पर आधारित लेख इलेस्ट्रेटेड वीकली आॅफ इंडिया में छपा भी था।

चीन से हाथों मिल रही पराजय की पृष्ठभूमि में हतप्रभ नेहरू ने मदद के लिए अमेरिका की ओर रुख किया था। उन दिनों बी.के.नेहरू अमेरिका में भारत के राजदूत थे। लाल नेहरू ने अमरीकी राष्ट्रपति जाॅन एफ.कैनेडी को कई पत्र लिखे। नेहरू ने 19 नवंबर 1962 को कैनेडी को लिखा था कि ‘‘न सिर्फ हम लोकतंत्र की रक्षा के लिए बल्कि इस देश के ही अस्तित्व की रक्षा के लिए भी चीन से हारता हुआ युद्ध लड़ रहे हैं जिसमें आपकी तत्काल सैन्य मदद की हमें सख्त जरूरत है।’’

इससे पहले जवाहर लाल नेहरू ने अपनी अदूरदर्शी व अव्यावहारिक नीति के तहत चीन को भाई और सोवियत संघ को मित्र करार दे रखा था। दूसरी ओर कैनेडी से नेहरू की एक मुलाकात के बारे में खुद कैनेडी ने एक बार कहा था कि नेहरू का व्यवहार काफी ठंडा रहा। पर जब चीन ने 20 अक्तूबर 1962 को भारत पर हमला करके हमारी हजारों-हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया तो नेहरू ने अमेरिका को त्राहिमाम संदेश दिया। 19 नवंबर 1962 को जवाहर लाल नेहरू ने भारी तनाव,चिंता और डरावनी स्थिति के बीच कैनेडी को कुछ ही घंटे के बीच दो -दो चिट्ठियां लिख दींं।

इन चिट्ठियों को हाल तक गुप्त ही रखा गया था ताकि नेहरू की दयनीयता देश के सामने न आ पाये। पर बाद में उनकी फोटोकाॅपी भारतीय अखबार में छप गई। अमरीका एक व्यापारी देश है। उस पर दुनिया के दरोगा होने का भी आरोप लगता है। उसमें अन्य कई कमियां हैं। पर कल्पना कीजिए कि यदि उसने 1962 में पाक को भारत के खिलाफ युद्ध शुरू करने से नहीं रोका होता तो क्या नतीजा होता ? संभवतः अमरीका के इसी कदम के बाद चीन ने तब एकतरफा युद्ध विराम कर दिया था। उससे पहले हमारे हुक्मरानों ने इस देश की रक्षा तैयारी की स्थिति को दयनीय बना रखा था।

घोटाले का आरोप झेल रहे मेनन को नेहरू ने रक्षा मंत्री बना रखा था। तब की स्थिति के बारे में देश के एक प्रमुख व सबसे पुराने पत्रकार मनमोहन शर्मा के शब्दों में पढि़ए-  ‘एक युद्ध संवाददाता के रूप में मैंने चीन के हमले को कवर किया था। मुझे याद है कि हम युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे। हमारी सेना के पास अस्त्र,शस्त्र की बात छोडि़ये, कपड़े तक नहीं थे।
नेहरू जी ने कभी सोचा ही नहीं था कि चीन हम पर हमला करेगा। एक दुखद घटना का उल्लेख करूंगा। अंबाला से 200 सैनिकों को एयर लिफ्ट किया गया था। उन्होंने सूती कमीजें और निकरें पहन रखी थीं। उन्हें बोमडीला में एयर ड्राप कर दिया गया जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था। वहां पर उन्हें गिराए जाते ही ठंड से सभी बेमौत मर गए। युद्ध चल रहा था, मगर हमारा जनरल कौल मैदान छोड़कर दिल्ली आ गया था। ये नेहरू जी के रिश्तेदार थे। इसलिए उन्हें बख्श दिया गया। हेन्डरसन जांच रपट आज तक संसद में पेश करने की किसी सरकार में हिम्मत नहीं हुई।’’ याद रहे कि 1962 से पहले अपने देश की सेना ने नेहरू सरकार से एक करोड़ रुपए जरुरी खर्चे के लिए मांगे थे।पर नहीं मिले थे।

(चर्चित वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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