पत्रकारिता शिखर सम्मान से सम्मानित हुए वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रमराव

आईवॉच समूह के संपादक श्यामल त्रिपाठी ने किया सम्मानित

लखनऊ। वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रमराव का शुक्रवार को आईवाच के संपादक श्यामल त्रिपाठी ने उनके आवास पर हिंदी पत्रकारिता का शिखर सम्मान सौंपा। हिंदी पत्रकारिता दिवस के मौके पर उन्हें सम्मानित किया जाना था। लेकिन उनकी अनुपस्थिति के चलते यह संभव नहीं हो सका और उन्हें शुक्रवार को सम्मानित किया गया। इस मौके पर श्री राव ने पत्रकारिता से जुड़े कुछ संस्मरण भी सुनाये और आज के समय में पत्रकारिता की चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज पत्रकारिता के मायने बदल गये हैं। ऐसे में उसके मिशन को संभालना आने वाली पीढ़ी की जिम्मेदारी है। इस मौके पर उन्होंने आईवाच समूह के उज्ज्वल भविष्य की कामना भी की।
गौरतलब है कि के. विक्रम राव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने पत्रकारों के लिए संघर्ष करते हुए पत्रकारिता की। प्रेस परिषद में रहकर मीडिया के नियमन जैसे कार्यों में भागीदारी की तो प्रेस सेंसरशिप के विरोध में 13 महीने तक जेल में भी गुजारे। श्रमजीवी पत्रकारों के वेतन के लिए सरकारों से लंबी लड़ाई लड़ी तो देश और विदेश में भारतीय मीडिया का लोहा भी मनवाया। ये कुछ बातें पहचान कराती हैं भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फ़ेडरेशन के अध्यक्ष के. विक्रम राव की। राजनीति शास्त्र से परास्नातक श्री राव को पत्रकारिता और संघर्ष विरासत में मिले। उनके पिता स्व. के. रामाराव लखनऊ में पं. जवाहरलाल नेहरू द्बारा स्थापित नेशनल हेराल्ड के 1938 में संस्थापक-संपादक थे। लाहौर, बम्बई, मद्रास, कोलकाला तथा दिल्ली से प्रकाशित कई अंग्रेजी दैनिकों में भी उन्होंने संपादन किया था। उन्हें ब्रिटिश राज ने 1942 में कारावास की सजा दी थी। आजादी के बाद पत्रकारिता ने एक लंबा अरसा गुजार दिया है। उसके स्वरूप में जमीन-आसमान का अंतर आ चुका है। उसमें पत्रकारों की स्थिति, संपादकीय ढांचा, प्रबंधन और सरकार से रिश्तों आदि हर एक क्षेत्र में बहुत कुछ बदल चुका है।
पत्रकारिता के क्षेत्र में आए इन बदलावों के लिए श्री राव एक हस्ताक्षर हैं। उनकी जुझारू प्रवृत्ति और हक के लिए हर स्तर तक जाने की जिद ही है जिससे पत्रकारिता क्षेत्र अपने में आए पूंजीवाद के तमाम दुर्गुणों के बावजूद आज एक विशिष्ट मुकाम पर है और आम आदमी के भरोसे को भी कायम रखे है। जब-जब पत्रकारिता में कोई विसंगति नजर आई, उसे दूर करने के लिए श्री राव हमेशा अग्रिम पंक्ति में नजर आए।
श्री राव पत्रकारिता लेखन और संगठन दोनों के क्षेत्र में भी अग्रणी रहे हैं। गद्यकार, संपादक और टीवी-रेडियो समीक्षक श्री राव श्रमजीवी पत्रकारों के मासिक ‘दि वîकग जर्नलिस्ट’ के प्रधान संपादक हैं। वे न्यूज के लिए चर्चित अमेरिकी रेडियो ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ (हिन्दी समाचार प्रभाग, वॉशिगटन) के दक्षिण एशियाई ब्यूरो में संवाददाता रहे। वे 1962 से 1988 तक यानी पूरे 36 वर्ष तक अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ (मुंबई) में कार्यरत थे। उन्होंने दैनिक ‘इकोनोमिक टाइम्स’, पाक्षिक ‘फिल्मफ़ेयर’ और साप्ताहिक ‘इलस्ट्रेटेड वीकली’ में भी काम किया है।
श्री राव ने पत्रकारिता और सरकार के बीच में भी सेतु की तरह कार्य किया। प्रेस की नियामक संस्था ‘भारतीय प्रेस परिषद’ में वे सन 1991 से 6 वर्षों तक लगातार सदस्य के रूप में पत्रकारों की आवाज बने रहे। श्रमजीवी पत्रकारों के लिए भारत सरकार द्बारा गठित जस्टिस जीआर मजीठिया वेतन बोर्ड और मणिसाना वेतन बोर्ड के वे सदस्य रहे।
सांगठनिक कौशल के धनी श्री राव ने भारतीय श्रमजीवी पत्रकार फ़ेडरेशन के बारहवें राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पुन: निर्वाचित होकर पत्रकारों का भरोसा खुद पर बनाए रखा। इसके अलावा पत्रकारों के कोलम्बो सम्मेलन एशियाई पत्रकार यूनियनों के परिसंघ में श्री राव को अध्यक्ष चुना गया।

 

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