पीएम बनने का ख्वाब सामने लाकर राहुल गांधी ने अपना ही नुकसान कर लिया है

स्रीमोय तालुकदार 

राहुल गांधी ने अंतत: अपने मन की इच्छा को दुनिया के सामने खोलकर रख दिया है. कर्नाटक चुनाव के प्रचार के दौरान जब उनसे ये पूछा गया कि अगर 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी सबसे बड़ा दल बनकर सामने आती है तो क्या वे पीएम कैंडिडेट होंगे, इसपर राहुल का जवाब था, ‘हां..क्यों नहीं’?

हालांकि, राहुल गांधी के इस इकबालिया बयान पर किसी को कुछ भी आश्चर्य करने जैसा नहीं लगा. जैसे कि- वे भी भारत के प्रधानमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं. नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य होने के नाते तो, वे ये मानकर चल रहे होंगे कि भारत का प्रधानमंत्री बनना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है. फिर हो भी क्यों न- आखिरकार, बड़ी संख्या में मौजूद कांग्रेस पार्टी का दरबारी मीडिया और पूरा का पूरा अनगिनत निष्ठावान और भक्त कार्यकर्ताओं का दल दिन-रात इसी कोशिश में ही तो लगा है कि वो नेहरू-गांधी परिवार के युवराज की इच्छा और विरासत में मिले इस अधिकार की पूर्ति हर हाल में कर सकें.

हो सकता है कि राहुल गांधी में कोई प्रशासनिक विशेषता न हो, उन्हें सार्वजनिक संस्थानों का भी अनुभव न हो, उन्होंने कांग्रेस पार्टी को एक के बाद एक कई चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करवाया हो और सबसे महत्वपूर्ण है उनका इस बात का रोना रोना कि- भारत एक संसदीय लोकतंत्र है जहां उसके नेताओं को हर थोड़े समय के बाद फिर से जनता के पास जाने का आदेश दे दिया जाता है. लेकिन फिलहाल ये सारे मुद्दे महत्वहीन हैं.

राहुल गांधी का राज्याभिषेक करने के लिए कांग्रेस पार्टी हर संभव कोशिश कर रही है. उनके एक वरिष्ठ नेता जो फिलहाल पार्टी से निलंबित किए जा चुके हैं, वे इस वक्त पाकिस्तान में हैं और वहां के लोगों को ये समझाने की कोशिश में लगे हैं कि आखिर क्यों नरेंद्र मोदी एक भूल हैं और क्यों इस भूल को खत्म करने के लिए पूरे भारत के लोगों को एकजुट होने की ज़रूरत है. एक नजर में देखने पर ये जिज्ञासु रणनीति लग सकती है, लेकिन ईश्वर के दरबार और भारत की कांग्रेस पार्टी में कुछ भी हो जाना पूरी तरह से मुमकिन है.

ANI

@ANI

70% of Indians didn’t vote for Mr.Modi in last elections but lost because they were completely factionated among themselves, it is my hope that a great number of this 70% will come together to put an end to the aberration we’ve been suffering in our country: MS Aiyar in Lahore

हालांकि, जिस तरह से राहुल गांधी ने अपनी इच्छा को सार्वजनिक तौर पर प्रकट किया है, उसमें कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है. लेकिन, उनकी इस स्वीकारोक्ति ने कुछ माकूल सवालों को जन्म दे दिया है जिस पर विचार करने की जरूरत है. मसलन- ये कि आखिर राहुल गांधी ने अपनी इच्छा को प्रकट करने के लिए इस समय को ही आखिर क्यों चुना, जबकि कुछ ही दिनों में कर्नाटक चुनाव के लिए वोटिंग होने वाली है? ये कोई लोकसभा चुनाव तो है नहीं और राहुल गांधी मुख्यमंत्री के दावेदार भी नहीं है, तब उन्होंने उस बात को क्यों दोहराया जो उन्होंने पिछले साल बर्कले में कहा था?

शोर से मोदी के सामने खड़े होना चाहते हैं राहुल

अपनी इस वाकपटुता और चतुराई से भरे जवाब (जिसे मीडिया खूब उछालेगी) से राहुल की पूरी कोशिश है कि वो खुद को मोदी के समकक्ष लाकर खड़ा कर दें, जबकि ये एक राज्य का विधानसभा चुनाव भर ही है. ऐसा इसलिए भी किया गया क्योंकि उनके रणनीतिकारों ये भांप लिया था कि राज्य के चुनाव प्रचार के दौरान पार्टी में ऐसा कोई भी नेता नहीं था जो पीएम मोदी के सामने खड़े हो पाने का माद्दा रखता हो. कांग्रेस पार्टी ज़मीन पर पीएम मोदी के चुनाव प्रचार और उनके असर को सिरे से खारिज करने में लगी है लेकिन राज्य से आ रही ग्राउंड रिपोर्ट बताती है कि बीजेपी के स्टार कैंपेनर वहां अच्छी खासी हलचल पैदा करने में सफल हैं. ऐसे में नरेंद्र मोदी के सामने चुनौती खड़ी करना बेहद ज़रूरी हो जाता है. राहुल गांधी को लगता है कि अगर वे इस तरह के शोर से अगर खुद को पीएम मोदी के समकक्ष खड़ा करने में सफल होते हैं तो राजनीतिक परिदृश्य में उनकी स्वीकार्यता न सिर्फ बढ़ेगी बल्कि पीएम पद के लिए उनकी दावेदारी को भी एक तरह से वैधता मिल जाएगी.

modi and rahul

राहुल गांधी की नीयत को अच्छी तरह से समझने के लिए जरूरी है कि हम एक नजर कर्नाटक की हलचलों पर डालें कि वहां ज़मीन पर क्या कुछ हो रहा है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने वहां अच्छी शुरुआत की और अपनी बढ़त बनाए रखी. मुख्यमंत्री ने राज्य के लिंगायत समुदाय को भरोसा दिया कि वे उनके धर्म को एक अलग धर्म का दर्जा देंगे, उनके इस ऐलान ने उन्हें तुरंत चर्चा में ला दिया और चारों तरफ वे ही छाए रहे. लेकिन ये सब तब तक ही जारी रहा जब तक पीएम मोदी ने अपना प्रचार अभियान शुरू नहीं किया था.

सोमवार तक प्रधानमंत्री ने राज्य में कम से कम 14 रैलियां कर लीं थी और 10 मई को चुनाव प्रचार खत्म होने तक सात और रैली करेंगे. उनकी धुंआधार रैलियां कांग्रेस को परेशान कर रहीं हैं, वो उनकी रैलियों में उमड़ी भीड़ को देखकर न सिर्फ परेशान हो रही है बल्कि घबरा भी रही है, ऐसे में कांग्रेस को जब कोई जवाब नहीं मिल रहा है तो उसने ये चाल चली ताकि वो भी लड़ाई के मैदान में बनी रहे. राहुल गांधी का ये बयान, उसी घबराहट और मजबूरी में निकला जवाब है.

मोदी की रैलियों ने किया है असर

राज्य के खाद्यमंत्री और मैंगलोर से कांग्रेस प्रत्याशी यूटी खादर ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से कहा कि, ‘पिछले चुनावों के दौरान पीएम मोदी का ज़्यादा असर नहीं देखा गया था, लेकिन इस बार के दौरे के दौरान वे देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से यहां आए हैं, जाहिर है इसका कुछ न कुछ असर तो होगा ही.’

फ़र्स्टपोस्ट के लिए लिखे अपने लेख में श्रीनिवास प्रसाद ने लिखा है, ‘मोदी नाम का बुलडोजर पूरे कर्नाटक राज्य में इस तरह से चीर-फाड़ कर रहा है मानो वो बारूद से भरा कोई मिसाइल हो.’ वो आगे कहते हैं, ‘मोदी ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव में न सिर्फ बीजेपी को वापिस मैदान में ला खड़ा किया है, बल्कि उन्होंने इस प्रतिस्पर्धात्मक लड़ाई के नियम कायदे को भी बदल दिया है.’ हालांकि, इस वक्त न तो हम बीजेपी की जीत का दावा कर खुशियां मना सकते हैं न ही कांग्रेस पार्टी की हार की घोषणा, लेकिन मौके पर से जो खबरें छन-छन कर हम तक पहुंच रही हैं और कांग्रेस पार्टी के नेताओं की जो बॉडी लैंग्वेज है, उससे ये साफ ज़ाहिर होता है कि पार्टी के भीतर किस तरह की घबराहट और अव्यस्तता फैली है- जबकि मोर्चे पर उनके नेता काफी निर्भीक नजर आ रहे हैं.’

कांग्रेस के भीतर व्याप्त अव्यवस्थता और घबराहट साफ तौर पर उनकी रणनीति में नजर आती है. सिद्धरमैय्या दावा करते हैं कि, ‘मोदी राज्य में जरा भी लोकप्रिय नहीं है न ही वहां के लोग उन्हें पसंद करते हैं,’ लेकिन ऐसा कहने के तुरंत बाद वे अपनी सारी ताकत और समय नरेंद्र मोदी का विरोध करने और मोदी की कही बातों का जवाब ट्विटर में देने में लगा देते हैं.’

Siddaramaiah

@siddaramaiah

Sir,
1. Your CM candidate took bribe in a cheque.
2. One of your Reddy friends G Janardhana Reddy conducted Rs 500 Cr wedding for his daughter at the height of demonetisation.
3. Your Party President’s son Jay Shah saw a 16000 times growth in revenues of his company in 2 years. https://twitter.com/timesofindia/status/992726786936131584 

Siddaramaiah

@siddaramaiah

So, please talk anout something rlevant to the people of Karnataka.
1. Why is diesel & petrol so expensive when international crude oil prices are half of what they used to be before 2014?
2. Instead of advising the youth to sell pakodas why don’t you focus on job creation.

Siddaramaiah

@siddaramaiah

3. Why don’t you intervene in Mahadayi & call a meeting of three CMs.
4. Why don’t call a meeting of all CMs & discuss the ToRs for 15th Finance Commission?
5. Instead of politicising the issue of lakes why don’t you help us with funds & expertise?

In short

 सिद्धरमैय्या बार-बार ये साबित करने में लगे हैं कि उनकी असल लड़ाई बीजेपी के मुख्यमंत्री पद प्रत्याशी बीएस येदुरप्पा से है मोदी से नहीं लेकिन, मानहानि का नोटिस वे पीएम मोदी पर ठोंक देते हैं. दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी भी ये दावा करती है कि इन चुनावों में मोदी कोई फैक्टर है ही नहीं, लेकिन ये सब कहने के बाद भी वे पीएम मोदी के भाषणों और उनके वार का जवाब देने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और आनंद शर्मा जैसे अपने वरिष्ठ नेताओं को मैदान में उतार देती है, ताकि वे लोग पीएम मोदी के बयानों का सामना कर सकें.

कांग्रेस पार्टी के पास रक्षात्मक होने के अलावा कोई चारा रह भी नहीं गया था, क्योंकि जिस तरह के आंकड़े और सर्वे सामने आ रहे हैं वो साफ बता रहे हैं कि हवा का रुख़ बदल रहा है. ब्लूमबर्ग क्विंट के लिए लिखे अपने लेख में चुनाव विशलेषक यशवंत देशमुख ऐसे आंकड़ों की खोज करते हैं जिसमें ये पता लगता है कि सिद्धरमैय्या भले ही अब भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पसंदीदा चेहरा हैं लेकिन उनकी सरकार काफी नापंसद की जाती है.

SIDDHARAMAIAH_MODI

देशमुख के सर्वे से ये भी पता चलता है कि पीएम मोदी राज्य में अभी भी एक लोकप्रिय नेता के रूप में जाने जाते हैं, जिस वजह से कांग्रेस और बीजेपी के बीच का अंतर धीरे-धीरे काफी कम होता जा रहा है. अन्य ओपिनियन पोल में भी कुछ ऐसी ही बातें कहीं गईं हैं. इनमें से लगभग सभी ओपिनियन पोल में या तो राज्य में बीजेपी की सीधी जीत या फिर त्रिशंकु विधानसभा की भविष्यवाणी की गई है. इन सबमें सिर्फ एक संस्था ऐसी जो चुनाव से जुड़े मुद्दे पर शोध करती है- और वो है सी-फोर, जिसने राज्य में कांग्रेस पार्टी को साफ बहुमत मिलने का दावा पेश किया है. सी-फोर के मुताबिक, ‘कांग्रेस पार्टी को 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में बिना किसी मदद के अपने बलबूते पर बहुमत मिल जाएगा.’

गलत टाइम पर बोल गए राहुल

राज्य के ये ज़मीनी हालात और पीएम मोदी की धुंआधार चुनाव प्रचार ने राहुल गांधी को मजबूर कर दिया और इसी मजबूरी में उन्होंने अपनी दिल में दबी इच्छा को जनता के सामने प्रकट कर दिया ताकि वो कर्नाटक की इस लड़ाई को बराबरी पर ला सकें.

हालांकि, अपने इस बयान से कांग्रेस अध्यक्ष ने, ‘प्लग द परसेप्शन गैप’ वाली बात को चरितार्थ किया है. यानी- जनता से जुड़ने के क्रम में वो समझ ही नहीं पाए कि उन्हें कब क्या कहना चाहिए. उनके इस बयान से हो सकता है कि उनकी राजनीतिक मंसूबों पर पानी फिर जाए और उन्हें परेशानियों या विरोध का सामना करना पड़ जाए.

बीजेपी को 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की कांग्रेस की उम्मीद या इच्छा तभी पूरी हो सकती है जब वो सहयोगी और दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन स्थापित कर पाए. इसमें क्षेत्रीय दल और उनके नेताओं का अहम रोल होना तय है. ऐसा करके हो सकता है कि कांग्रेस पार्टी अपने मुख्य एजेंडा यानी बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की मंशा में कामयाब भी हो जाए लेकिन उससे राहुल गांधी और प्रधानमंत्री की कुर्सी के बीच की खाई किसी भी तरह से कम होती नजर नहीं आती है.

लेकिन संभावित गठबंधन की पार्टियों को नहीं है मंजूर

ऐसे कई क्षेत्रीय दल और उनके नेता होंगे जो कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाने को तैयार हों, ताकि वे मोदी के असर को कम कर सकें, लेकिन ऐसा होने से उन पार्टियों के बीच सिर्फ एक चुनावी समझौता भर ही हो पाएगा- उससे ज्यादा कुछ नहीं. जब गठबंधन के नेतृत्व का सवाल पैदा होगा तब इन क्षेत्रीय नेताओं की महत्वकांक्षाएं आड़े आ जाएगी क्योंकि ये सब नेता अपने-अपने राज्य की जनता के बीच काफी बड़ी साख रखते हैं. मसलन- तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव जैसे नेता, जिन्होंने ये तय कर लिया है कि वे एक ऐसे तीसरे फ्रंट का ही हिस्सा बनेंगे जिसमें न बीजेपी का वर्चस्व हो न ही कांग्रेस पार्टी का.

केसीआर ने तो कांग्रेस पार्टी को अपना सबसे बड़ा दुश्मन ही मान लिया है. ममता बनर्जी भी गठबंधन या किसी ग्रैंड-अलाएंस की सूरत में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व स्वीकारने को तैयार नहीं है. ममता के सोनिया गांधी से काफी अच्छे संबंध होने के बावजूद उन्होंने ये साफ कर दिया है कि वे राहुल के नीचे काम नहीं करेंगी.

जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है- ममता बनर्जी के अलावा जो इकलौता नेता 2019 के विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व करने के लायक है वो सिर्फ ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हैं और स्वभाव से काफी लो-प्रोफाईल रहने वाले इंसान हैं.

तृणमूल कांग्रेस की भी कई शर्तें हैं- ‘जैसे अगर कोई गठबंधन बनता है तो उसके नेता में कुछ गुण होना चाहिए- जैसे वो एक निर्विवाद नेता हो, अपनी पार्टी का प्रमुख हो, उसका किसी राज्य का मुख्यमंत्री के तौर पर अनुभव होना जरूरी है, वर्तमान में भी किसी राज्य का मुख्यमंत्री होना चाहिए, केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी काम करने का अनुभव होना चाहिए और संसद सदस्य के रूप में कम से कम एक या दो दशक का अनुभव होना अनिवार्य है.’

ममता बनर्जी की इन शर्तों को सुनने और पढ़ने के बाद ये तय करना किसी के लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए कि वे पीएम के पद के लिए किसके नाम या किसकी उम्मीदवारी को आगे बढ़ाने की कोशिश में लगी हैं. इन हालातों में, जिस तरह से राहुल गांधी अपनी महत्वकांक्षाओं का खुला प्रदर्शन कर रहे हैं (हालांकि, उन्होंने बड़ी चतुराई से उसमें एक योग्यता को भी शामिल कर लिया था) उससे मुमकिन है कि नरेंद्र मोदी को सत्ता से दूर रखने की जो उनका सबसे बड़ा लक्ष्य है वो या तो गड़बड़ा जाए या उसमें उलझन पैदा हो जाए.

 

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