पूर्वांचल में भाजपा एक्सप्रेस दौड़ना मोदी के लिए कड़ी चुनौती

राजेश श्रीवास्तव

आजमगढ़ में पूर्वांचल एक्सप्रेस के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा की ट्रेन पूर्वांचल में दौड़ाना चाहते हैं। बीते दिनों मगहर और अब आजमगढ़ और वाराणसी में प्रधानमंत्री की हालिया सियासत पूर्वांचल में भाजपा का बिगड़ा हुआ सियासी समीकरण साधना है। माना जा रहा है कि इस योजना के जरिए भाजपा 2०19 की सियासी बिसात पूर्वांचल में बिछा रही है। 2०14 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ पूर्वांचल की इकलौती सीट थी, जहां भाजपा नहीं जीत सकी थी। इतना ही नहीं 2०17 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ की 1० सीटों में से महज एक बीजेपी जीत सकी थी। जबकि पांच सपा और 4 बसपा को मिली थी। पीएम मोदी के दौरे से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी पूर्वांचल को साधने के लिए पहुंचे थे। शाह ने पूर्वांचल में मिशन-2०19 का तानाबाना विध्याचल धाम से बुनने का आगाज किया था। शाह ने अवध, काशी और गोरखपुर प्रांत के 3० लोकसभा क्षेत्र के प्रभारियों के साथ बैठक कर जमीनी स्तर पर संगठन व जनता की नब्ज को समझने की कोशिश की थी। 2०17 के विधानसभा चुनाव में यूपी के हर जिले में बीजेपी का जादू चला, लेकिन आजमगढ़ में कोई असर नहीं दिखा सका। जबकि बीजेपी ने अपने इतिहास में पहली बार 311 सीटें जीतीं लेकिन आजमगढ़ में उसे महज एक सीट के साथ संतोष करना पड़ा था। मुस्लिम-यादव बहुल आजमगढ़ सपा का मजबूत दुर्ग माना जाता है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली आज आजमगढ़ पहंच रहे हैं। मोदी लहर के बावजूद बीजेपी 2०14 में आजमगढ़ में कमल खिलाने में कामयाब नहीं हो सकी थी। पूर्वांचल में आजमगढ़ एकलौती लोकसभा सीट थी, जिसे बीजेपी जीतने से महरूम रह गई थी। 2०17 में भी यहां मोदी मैजिक नहीं चल सका। आजमगढ़ में 6० के दशक से ही राम मनोहर लोहिया के प्रभाव वाले समाजवाद के असर में रहा। हालांकि 9० के दशक में जिले पर भगवा रंग चढ़ाने की कोशिश हुई, लेकिन भाजपा को बड़ी कामयाबी नहीं मिल सकी। 7० के दशक से कांग्रेस के हाथ से आजमगढ़ फिसला तो दोबारा हाथ में नहीं आया, तब से जनता दल और सपा बसपा का वर्चस्व ही कायम रहा है। मुस्लिम-यादव के फैक्टर के जरिए ही सपा 1996 से अब तक पांच बार जीत का परचम लहरा चुकी है। जबकि बसपा ने सपा से पहले आजमगढ़ में जीत हासिल की थी। बसपा ने इस सीट पर मुस्लिम-दलित कैंबिनेशन के जरिए 4 बार जीत हासिल की थी। हालांकि 2००9 में बसपा से अलग होकर भाजपा का दामन थामने वाले रामकांत यादव ने जीत हासिल करके पहली बार कमल खिलाया था। आजमगढ़ संसदीय सीट मुस्लिम-यादव बहुल मानी जाती है। ये दोनों समुदाय सपा के परंपरागत वोट माने जाते हैं। यादव-मुस्लिम की हिस्सेदारी करीब 4० फीसदी है। इसके अलावा दलित 22, गैर यादव ओबीसी 21 और सवर्ण 17 फीसदी है। इसी का नतीजा है कि आजमगढ़ में सपा और बसपा का दबदबा कायम है। 2०17 के विधानसभा चुनाव आजमगढ़ की 1० विधानसभा सीटों में से केवल एक सीट बीजेपी के अरुणकांत यादव जीत सके थे, जो रमाकांत यादव के पुत्र हैं। बीजेपी आजमगढ़ से मोदी की रैली करके ओबीसी और दलितों को लुभाकर विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालना चाहती है। माना जा रहा है कि मुलायम सिह यादव 2०19 में आजमगढ़ के बजाय अपनी परंपरागत सीट मैनपुरी से लड़ेंगे। ऐसे में बीजेपी आजमगढ़ में कमल खिलाने की कोशिश में जुट गई है। पीएम मोदी ने इसके चलते आजमगढ़ में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की नींव रखने की रणनीति बनाई है। पूर्वांचल के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा की एकता से भाजपा चारों खाने चित हो गई थी। 2०19 में विपक्ष महागठबंधन बनाकर उतरता है, तो बीजेपी के लिए 2०14 जैसे नतीजे दोहराना आसान नहीं होगा। वाराणसी जैसी सीट छोड़ दें तो पूर्वांचल की ज्यादातर सीटें बीजेपी के हाथों से निकल जाएंगी। बीजेपी के हाथों से पूर्वांचल खिसका तो फिर देश की सत्ता तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। यूपी के बदले सियासी मिजाज के तहत बीजेपी के लिए पूर्वांचल को साधना काफी अहम हो गया है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी और अमित शाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले पूर्वी उत्तर प्रदेश पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। भाजपा की प्रदेश इकाई पूर्वांचल के कई जिलों में मोदी की रैलियां कराकर माहौल को अपने पक्ष में बनाने की कोशिश में जुट गई हैं।

 

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