भारत और चीन को एक दूसरे के हितों के प्रति रहना चाहिए संवेदनशील : पीएम मोदी

सिंगापुर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि भारत एवं चीन एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील रहते हुए जब विश्वास एवं भरोसे के साथ मिलकर काम करेंगे तो एशिया एवं विश्व का भविष्य बेहतर होगा. प्रधानमंत्री का यह बयान चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ एक माह पहले हुई अनौपचारिक शिखर वार्ता के बाद आया है. इस वार्ता में दोनों पक्षों ने आपसी भरोसा एवं समझ विकसित करने पर सहमति जताई थी.

शंगरी-ला वार्ता में अपने सम्बोधन में मोदी ने यहां कहा, ‘अप्रैल में राष्ट्रपति शी के साथ दो दिवसीय अनौपचारिक शिखर वार्ता ने हमारी इस समझ को मजबूती देने में मदद की कि हम दोनों देशों के बीच मजबूत एवं स्थिर संबंध वैश्विक शांति एवं प्रगति के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं.’ मोदी शंगरी-ला वार्ता को सम्बोधित करने वाला पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं. इसे सामरिक एवं रक्षा मामलों पर चर्चा के लिए एशिया का महत्वपूर्ण सम्मेलन माना जाता है.

पीएम मोदी ने कहा, ‘मेरा दृढ़ता से मानना है कि जब भारत एवं चीन विश्वास एवं भरोसे के साथ मिलकर तथा एक दूसरे के हितों के प्रति संवेदनशील होकर काम करेंगे तो एशिया एवं विश्व का बेहतर भविष्य होगा. ’ उन्होंने दावा किया कि ‘प्रतिद्वंद्विता’ वाले एशिया से क्षेत्र पीछे की ओर जाएगा जबकि सहयोग वाले एशिया से शताब्दी का स्वरूप तय होगा.

प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत एवं चीन ने मुद्दों के प्रबंधन तथा शांतिपूर्ण सीमा सुनिश्चित करने के मामलों में परिपक्वता एवं बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है. उन्होंने कहा कि विश्व की सबसे अधिक आबादी वाले दो देशों के बीच सहयोग बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, ‘भारत के किसी अन्य संबंध में इतनी परतें नहीं जितनी कि चीन के साथ हमारे रिश्तों में हैं. हम विश्व की सबसे अधिक आबादी वाले दो देश हैं तथा तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं. हमारा सहयोग बढ़ रहा है.’

प्रमुख शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा पर मोदी ने कहा कि यह सामान्य है किंतु स्पर्धा संघर्ष में परिवर्तित नहीं होनी चाहिए. मतभेदों को विवाद में तब्दील नहीं होने देना चाहिए.’ हिन्द प्रशांत क्षेत्र का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वार्ता के जरिये साझा नियम आधारित व्यवस्था क्षेत्र में विकसित की जानी चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि नियम सभी पक्षों के साथ साथ वैश्विक समानताओं पर एक समान रूप से लागू होने चाहिए.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इस प्रकार की व्यवस्था को संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के साथ साथ सभी राष्ट्रों की समानता को ध्यान में रखना चाहिए. ऐसा करते समय उनके आकार एवं क्षमता को आधर नही बनाना चाहिए. इन नियमों एवं मानकों को सभी की सम्मति पर आधारित होने चाहिए, न कि चंद ताकतों पर. यह वार्ता के भरोसे पर आधारित होने चाहिए न कि शक्ति की निर्भरता पर.’

चीन द्वारा हिन्द प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य शक्ति के प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान एवं भारत सहित विभिन्न शक्तियां इसे मुक्त, निर्बाध और समावेशी बनाये जाने पर बल दे रहे हैं.

पीएम मोदी ने कहा, ‘आज हमसे आह्वान किया जा रहा है कि विभाजनों से ऊपर उठें तथा मिलकर काम करें.’’ उन्होंने कहा कि भारत हिन्द-प्रशांत क्षेत्र को सामरिक दृष्टि या सीमित सदस्यों के क्लब के रूप में नहीं देखता. उन्होंने कहा कि भारत इस क्षेत्र को ऐसे समूह के रूप में नहीं देखता जो दबदबा रखना चाहता हो. साथ ही हम इसे किसी देश के खिलाफ केन्द्रित होने के रूप में भी नहीं देखते. लिहाजा हिन्द प्रशांत क्षेत्र के प्रति भारत का दृष्टिकोण सकारात्मक है.

भारत अमेरिका संबंधों के बारे में मोदी ने कहा कि नयी दिल्ली की वाशिंगटन के साथ सामरिक साझेदारी ने ‘इतिहास की झिझक’ से पार पा लिया है. यह संबंधों के असाधारण दायरों में और मजबूत हो रही है. पीएम मोदी ने कहा कि हिन्द प्रशांत क्षेत्र के भविष्य के केन्द्र में दक्षिण एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) होगा.

उन्होंने, ‘अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत समुद्र एवं वायु में साझा स्थलों के उपयोग के लिए अधिकार के तौर हम सभी के पास समान अधिकार होने चाहिए. इसके तहत नौवहन की स्वतंत्रता, अबाधित वाणिज्य तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पड़ेगी.’

प्रधानमंत्री ने वस्तुओं एवं सेवाओं में बढ़ते संरक्षणवाद पर चिंता जताई. उन्होंने कहा, ‘संरक्षण की दीवार के पीछे समाधान नहीं मिल सकता बल्कि बदलाव को अपनाने से मिलेगा. हम सभी के लिए समान अवसर चाहते हैं. भारत मुक्त एवं स्थिर अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली के पक्ष में है.’

पीएम मोदी ने कहा कि भारत हिन्द प्रशांत क्षेत्र में नियम आधारित, मुक्त, संतुलित एवं स्थिर व्यापार माहौल का समर्थन करेगा. इससे ‘व्यापार के ज्वार’ एवं निवेश में सभी राष्ट्रों का उदय होगा. संपर्क की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह व्यापार एवं समृद्धि बढ़ाने से कहीं आगे की बात है क्योंकि यह क्षेत्र को एकजुट करती है.

क्षेत्र में सम्पर्क पहल को लेकर चल रही वर्तमान पहल पर उन्होंने कहा कि ध्यान केवल आधारभूत ढांचे पर ही नहीं बल्कि विश्वास का पुल निर्मित करने पर केन्द्रित करना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘और इसके लिए, इन पहलों को संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान, विचार विमर्श, सुशासन, पारदर्शिता, व्यवहायर्ता एवं स्थायित्व पर आधारित होना चाहिए.’

प्रधानमंत्री ने कहा कि परियोजनाओं को व्यापार को बढ़ावा देना चाहिए, न कि सामारिक प्रतिस्पर्धा को. उन्होंने कहा, ‘इन सिद्धान्तों पर हम सभी के साथ काम करने को राजी हैं.’ भारत चीन की प्रमुख पहल ‘वन बेल्ट वन रोड (एक क्षेत्र एक मार्ग)’ (ओबीओआर) का विरोध करता आया है क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरती है.

आतंकवाद एवं चरमपंथ जैसी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों की चर्चा करते हुए मोदी ने कहा कि आज विश्व में एक दूसरे की निर्भरता से भाग्य और विफलता तय होती हैं तथा कोई भी देश केवल अपने बूते अपना भाग्य नहीं संवार सकता. प्रधानमंत्री ने कहा, ‘इस (वर्तमान) विश्व की दरकरार है कि हम विभाजनों एवं प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठें और मिलकर काम करें.’

भारतीय अर्थव्यवस्था के बारे में मोदी ने कहा कि देश प्रति वर्ष साढ़े सात से आठ प्रतिशत के विकास दर पर कायम रहेगा . ‘जैसे जैसे हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, हमारी वैश्विक एवं क्षेत्रीय एकीकरण बढ़ेगा.’

 

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