भारत की जगह कोई और देश होता तो 16 Aug 1947 को ही अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर बुलडोज़र चढ़ा देता!

प्रखर श्रीवास्तव

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी AMU के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष फैजुल हसन ने छात्रों के धरने को संबोधित करते हुए कहा कि – “मुसलमान वो कौम है जो किसी देश को बर्बाद करने पर आ जाये, तो छोड़ेंगे नहीं, अगर सब्र की सीमा देखनी है तो हिंदुस्तानी मुसलमानों की देखिए, 1947 के बाद वर्ष 2020 तक यह सब्र है जो मुसलमान कर रहे हैं, कभी कोशिश नहीं की कि हिंदुस्तान टूट जाए, वरना हमें रोक नहीं पाएंगे”

अब आप सोच रहे होंगे कि फैजुल हसन के इस देशद्रोही बयान के पीछे उनकी सोच क्या है, उनका डीएनए क्या है? तो इसके पीछे सोच है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैयद अहमद की, इस देश में अगर सबसे पहले किसी ने पाकिस्तान बनाने वाली द्विराष्ट्र विचारधारा का उद्घोष किया था तो वो थे सर सैयद अहमद, 14 मार्च 1888 को मेरठ में दिए अपने भड़काऊ भाषण में सर सैयद ने साफ-साफ कह दिया था कि हिंदु और मुसलमान दो राष्ट्र हैं।

अपने भाषण में उन्होंने कहा- “सबसे पहला सवाल यह है कि इस देश की सत्ता किसके हाथ में आनेवाली है? ये सोचिए कि अगर, अंग्रेज़ अपनी सेना, तोप, हथियार समेत देश छोड़कर चले गए तो इस देश का हुक्मरान कौन होगा? क्या हिंदू और मुस्लिम कौमें एक ही सिंहासन पर बैठेंगीं? बिल्कुल नहीं, उसके लिए ज़रूरी होगा कि दोनों एक दूसरे को जीतें, एक दूसरे को हराएं… मुसलमान हिंदुओं से जनसंख्या में कम भले हों मगर वे दुर्बल हैं, ऐसा मत समझिए… हमारे पठान भाई (अफगानिस्तान के मुसलमान) पर्वतों और पहाड़ों से निकलकर सरहद से लेकर बंगाल तक खून की नदियाँ बहा देंगे… अंग्रेज़ों के जाने के बाद यहां कौन जीतेगा, ये सिर्फ अल्लाह ही तय करेगा…”

अब आगे सुनिए सर सैयद क्या कहते हैं… वो कहते हैं कि – “जैसे अंग्रेज़ों ने ये देश जीता वैसे ही हमने भी इसे फतेह किया था… मगर जिन्होंने (हिंदुओं) इस देश पर कभी शासन किया ही नहीं, जिन्होंने कोई विजय हासिल की ही नहीं, उन हिंदुओं को ये बात समझ में नहीं आएगी… मैं आपको याद दिलाना चाहता हूँ कि आपने (मुसलमान) बहुत से देशों पर राज्य किया है… आपको पता है राज कैसे किया जाता है… आपने 700 साल भारत पर राज किया है… अनेक सदियां, कई देशों को अपने आधीन रखा है… हम कभी हिंदुओं की प्रजा नहीं बन सकते हैं।”

तो सर सैयद के इस महान भाषण को पढ़ने के बाद समझ ही गये होंगे कि AMU के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष फैजुल हसन की इस ज़हरीली सोच की जड़ कहां है। भाई जब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक की सोच इतनी ज़हरीली होगी तो उनकी विरासत संभालने वालों की सोच क्या होगी…
वैसे तो सभी को पता है कि कैसे पाकिस्तान के निर्माण में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अतुलनीय योगदान है… लेकिन मैं अपनी अगली पोस्ट में AMU के “पाकिस्तानवादी” इतिहास के बारे में कुछ नई जानकारियां देने की कोशिश करुंगा।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रखर श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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