भीमा कोरेगांव हिंसा कहीं साजिश तो नहीं, उमर खालिद और जिग्नेश मेवाणी पर आरोप

सियासत में पैटर्न के बारे में जो जानकार होते हैं वो बात करते हैं, एक तरह से घटनाओं का पैटर्न अगर दिख जाए तो ये संयोग नहीं माना जाता है, हाल के दिनों में एक खास तरह का पैटर्न देखने को मिल रहा है, क्या ये विपक्ष की 2019 की तैयारी है, कुछ घटनाएं हं जिनको आपस में जोड़ने से आपको भी वो पैटर्न दिखाई देगा, गुजरात में चुनाव से काफी पहले पाटीदार आंदोलन हुआ, उना वाली घटना हुई, जिसके बाद दलितों का आंदोलन शुरू हुआ, हैदराबाद यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला नाम का छात्र आत्महत्या करता है, जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाए जाते हैं। ये सारी घटनाएं केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद हुई हैं, अब इस लिस्ट में भीमा कोरेगांव मामला भी जुड़ गया है।

पुणे के पास भीमा कोरेगांव में दो समुदायों के बीच हिंसा की आग राज्य के कई इलाकों में फैल गई है, सियासत के लिए इस से अच्छा क्या मुद्दा चाहिए, शुरूआत राहुल गांधी ने की, उन्होंने इसे बीजेपी और आरएसएस की सोच का परिणाम बताया, कहा कि बीजेपी दलितों को दबाकर रखना चाहती है, वहीं जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाने के आरोपी और गुजरात के उना कांड के बाद चर्चा में आए जिग्नेश मेवाणी का नाम भीमा कोरेगांव मामले से जुड़ रहा है। इन दोनों पर आरोप है कि दोनों के भड़काउ भाषण दिए थे, जिसके कारण हिंसा फैली थी। इन दोनों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है, शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद ने कार्यक्रम के दौरान भड़काऊ भाषण दिया था जिसके चलते दो समुदायों में हिंसा हुई।

जिग्नेश और उमर खालिद के खिलाफ अक्षय बिक्कड़ और आनंद धोंड ने शिकायत दर्ज कराई है। दनों का कहना है कि मेवाणी और खालिद ने भीमा कोरेगांव में कार्यक्रम में भड़काऊ भाषण दिया था. बिक्कड़ और धोंड ने डेक्कन जिमखाना थाने को एक आवेदन दिया और मेवाणी और खालिद के खिलाफ विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता को कथित तौर पर बढ़ावा देने के लिये केस दर्ज करने की मांग की है। नए नए राजनीति में आए जिग्नेश मेवाणी इस समय विपक्ष के लिए हॉट केक बने हुए हैं, गुजरात चुनाव के बाद कई नेताओं ने उनसे बात की है, सभी जिग्नेश को भविष्य का नेता बता रहे हैं। कुछ इसी तरह से कन्हैया कुमार के लिए भी माहौल बनाया गया था। अगर इन सारी घटनाओं को एक साथ जोड़े, जो कि विपक्षी नेता कर रहे हैं तो एक पैटर्न दिखाई देता है।

मुद्दों के आधार पर मोदी सरकार के खिलाफ हमला करना विपक्ष के लिए फायदे का सौदा नहीं है, नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी लगातार देश को मथ रही है, इस से निपटने के लिए विपक्ष के पास कोई हथियार नहीं है. गुजरात में राहुल गांधी ने मंदिरों के चक्कर लगा कर देख लिए, जातिगत आंदोलन करने वाले नेताओं को साथ मिलाकर देख लिया, फिर भी जीत हासिल नहीं हो पाई, तो क्या भीमा कोरेगांव जैसे मामलों के सहारे 2019 के लिए अभी से विपक्ष मुद्दे तैयार कर रहा है, जिस जातिगत राजनीति ने देश को इतने सालों तक बंधक बनाए रखा है क्या उसका नया उदय हो रहा है। ये सारी घटनाएं इसी तरफ इशारा कर रही हैं। अब ये कितना सही है और कितना गलत इसका पता 2019 में चल जाएगा।

 

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