मायावती और अखिलेश के राज में मुठभेड़ के नाम पर हुए खूब ‘मर्डर’, एक जनवरी 2005 से लेकर 31 अक्टूबर 2017 तक यूपी में 455 फर्जी एनकाउंटर

लखनऊ। यूपी पुलिस द्वारा लगातार किए जा रहे एनकाउंटर अब सवालों के घेरे में आ गए हैं. मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन ने दावा किया है कि हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश में न्यायेतर हत्याएं हुई हैं. इनमें मरने वालों में ज्यादातर दलित और मुसलमान थे. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्वतंत्र टीमों द्वारा जांच की मांग की गई है.

‘सिटीजन एगेंस्ट हेट’ ग्रुप की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश की मुठभेड़ों की 16 घटनाओं और मेवात क्षेत्र के 12 मामलों का ब्योरा है. ये मुठभेड़ 2017-18 में हुई थीं. उच्चतम न्यायालय के वकील प्रशांत भूषण ने उत्तर प्रदेश में पुलिस मुठभेड़ों को मर्डर करार दिया है. उन्होंने कहा कि एनएचआरसी को अपनी स्वतंत्र टीमें भेजकर इस मामले की जांच करानी चाहिए.

उन्होंने कहा कि ये न्यायेतर हत्याएं हैं. पुलिस द्वारा की गई ऐसी हत्याओं की विभाग के कनिष्ठ अधिकारियों द्वारा जांच की जाती है. उसे स्वतंत्र नहीं कहा जा सकता. एनएचआरसी को अपनी स्वतंत्र टीमों के मार्फत सभी ऐसे मामलों की जांच करानी चाहिए. इसके लिए ‘सिटीजन एगेंस्ट हेट’ ग्रुप एनएचआरसी के अध्यक्ष एचएल दत्तू से मिला.

योगी सरकार के एक साल से अधिक पूरे हो चुके हैं. बीते 12 महीनों में 1200 से अधिक एनकाउंटर हुए हैं. इनमें 50 से अधिक बदमाशों को मार गिराया गया है. हालांकि ऐसा भी नहीं है कि एनकाउंटर की झड़ी लगने से यूपी के क्राइम ग्राफ में कोई बहुत भारी कमी आ गई हो.

एनकाउंटर पर क्यों उठ रहे सवाल?

कहा जा रहा है कि सभी मामलों में एफआईआर का पैटर्न एक जैसा ही है. बदमाश भाग रहे थे. पुलिस के रोकने पर फायरिंग हो गई. जवाबी कार्रवाई में बदमाश मारे गए. पुलिस इन संदिग्ध मुठभेड़ों में साथियों को पकड़ने में नाकाम रही और साथी भागने में सफल रहे. अमूमन सभी एनकाउंटर में पुलिसकर्मियों को गोली लगती है और कुछ ही घंटों में वे अस्पताल से डिस्चार्ज हो जाते हैं.

यूपी में 455 फर्जी एनकाउंटर

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक जनवरी 2005 से लेकर 31 अक्टूबर 2017 तक यानी पिछले 12 सालों में देश भर में 1241 फर्जी एनकाउंटर के मामले सामने आए. इनमें से अकेले 455 मामले यूपी पुलिस के खिलाफ़ थे. मानवाधिकार आयोग के मुताबिक इन्हीं 12 सालों में यूपी पुलिस की हिरासत में 492 लोगों की भी मौत हुई.

12 वर्षों में कहां-कितने फर्जी एनकाउंटर

यूपी- 455, असम- 65, आंध्र प्रदेश- 63, मणिपुर- 63, झारखंड- 58, छत्तीसगढ़- 56, मध्य प्रदेश- 49, तमिलनाडु- 44, दिल्ली- 36, हरियाणा- 35, बिहार- 32, पश्चिम बंगाल- 30, उत्तराखंड- 20, राजस्थान-19, महाराष्ट्र- 19, कर्नाटक- 18, गुजरात- 17, जम्मू-कश्मीर- 17, केरल- 03, हिमाचल- 02.

फर्जी एनकाउंटर के डरावने आंकड़े

इसमें कोई शक नहीं कि आबादी के लिहाज़ से यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य है, मगर इसके बावजूद फर्ज़ी एनकाउंटर ये आंकड़े बाकी राज्यों के मुकाबले कहीं ज़्यादा डरावने हैं. 12 साल के इन आंकड़ों से बाहर निकलें तो अकेले पिछले 11 महीनों में ही साढ़े 12 सौ एनकाउंटर यूपी में हो चुके हैं. हालांकि इनमें 50 से अधिक बदमाश ही मारे गए.

ऐलानिया कह कर किया एनकाउंटर

ये तमाम एनकाउंटर इसलिए सवाल खड़े करते हैं कि इनमें से हर एनकाउंटर ऐलानिया कह कर किया गया. सूत्रों के मुताबिक यूपी एसटीएफ और तमाम ज़िला पुलिस को बाक़ायदा घोषित अपराधियों की लिस्ट भेजी गई है. उसी लिस्ट के हिसाब से यूपी में एनकाउंटर जारी हैं. इन सबके बीच अपराध नहीं रुकना एनकाउंटर के मकसद पर सवाल है.

सवालों के घेरे में हैं यहां हुए एनकाउंटर

आजमगढ़ः पुलिस ने 26 जनवरी 2018 को मुकेश राजभर को मुठभेड़ में मार गिराया. भाई का आरोप कानपुर से मुकेश को उठाया गया, अगले दिन एनकाउंटर की खबर मिली.

बाग़पतः पुलिस ने 30 अक्टूबर 2017 को सुमित गुर्जर को मुठभेड़ में मार गिराया. पिता का आरोप है कि पुलिस ने उठाया और पीटने के बाद उसका एनकाउंटर किया.

आजमगढ़: पुलिस ने 14 सितंबर 2017 को राम जी पासी को मुठभेड़ में मार गिराया. बड़े भाई का आरोप है कि पुलिस कई दिनों से उसे एनकाउंटर की धमकी दे रही थी.

इटावाः पुलिस ने 18 सितंबर 2017 को आदेश यादव को मुठभेड़ में मार गिराया. परिवार ने एनकाउंटर को फर्जी बताया और न्याय के लिए राज्य मानवाधिकार आयोग से शिकायत की.

आजमगढ़ः पुलिस ने 3 अगस्त 2017 को जयहिंद को मुठभेड़ में मारा. पिता का आरोप सादे कपड़ों में आए लोग उसे अपने साथ ले गए थे और फिर उसके एनकाउंटर की खबर आई.

 

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