मिलिए 92 साल की उम्र में शागिर्द को हराकर सत्ता में वापसी करने वाले युग पुरुष से

मलेशिया। करीब 22 बरस तक प्रधानमंत्री रहने के बाद राजनीति से संन्यास लेना और 15 बरस बाद 92 साल की उम्र में सत्ता के शीर्ष पर दोबारा कदम रखना किसी चमत्कार से कम नहीं था, लेकिन मलेशिया के युगपुरुष महातिर मोहम्मद ने यह कारनामा अंजाम दिया और किसी समय अपने शागिर्द रहे नजीब रज्जाक को सत्ता से हटाकर सबसे अधिक उम्र का प्रधानमंत्री बनने का विश्व रिकार्ड भी अपने नाम कर लिया.

महातिर मोहम्मद के विपक्षी गठबंधन पकातान हरपान ने गुरुवार को बारिसन नेशनल पार्टी के नजीब रज्जाक के खिलाफ ऐतिहासिक चुनावी जीत हासिल की. इस जीत के साथ ही वह दुनिया में सबसे बुजुर्ग प्रधानमंत्री बनने वाले नेता बने. महातिर ने देश की 222 संसदीय सीटों में से 113 पर जीत हासिल की.

दरअसल बारिसन नेशनल (बीएन) पार्टी पिछले 60 साल से सत्ता में बनी हुई थी और इसी पार्टी के नेता के तौर पर महातिर 1981 से 2003 तक सत्ता में रहे. लेकिन उसके बाद तानाशाही और मनमाने फैसले करने जैसे कई तरह के आरोपों से घिरने के बाद उन्होंने 31 अक्तूबर 2003 को प्रधानमंत्री का पद छोड़ दिया और यह कहते हुए खुद पार्टी से अलग हो गए कि ‘जो पार्टी भ्रष्टाचार को समर्थन दे उसके साथ रहना अपमानजनक है.’

लंबे समय तक राजनीतिक वनवास में रहे महातिर ने देश के बिखरे विपक्ष के बुलावे पर अपने धुर विरोधियों से भी हाथ मिला लिया और नजीब सरकार को उखाड़ फेंकने की मुहिम में जुट गए.

दरअसल नजीब सरकार के खिलाफ जनता में बढ़ते आक्रोश और महातिर के राजनीतिक रुतबे को देखते हुए विपक्ष ने एक दंव खेला और उन्हें प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. महातिर ने भी यह कहकर इस दायित्व को स्वीकार कर लिया कि यह उनका कर्तव्य है क्योंकि वह इस देश को ऐसे स्वार्थी लोगों के हाथों तबाह होते नहीं देख सकते, जो सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं. जाहिर है कि उनका इशारा नजीब रज्जाक की ओर था.

डॉक्टर से बने राजनेता

20 दिसंबर 1925 को केदाह राज्य की राजधानी अलोर सेतार में जन्में महातिर ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गृहनगर में ही पूरी की और 1947 में सिंगापुर के किंग एडवर्ड कालेज ऑफ मेडिसिन में दाखिला लिया. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह चिकित्सा अधिकारी के तौर पर देश के सरकारी सेवा से जुड़े, लेकिन 1957 में अलोर सेतार में उन्होंने डॉक्टरी की निजी प्रैक्टिस शुरू की.

हालांकि इस दौरान वह राजनीति में सक्रिय रहे और यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गेनाइजेशन के सदस्य रहे. वर्ष 1964 में वह पहली बार देश की संसद के लिए चुने गए, लेकिन 1969 में अगले ही चुनाव में हार गए. इस दौरान वह देश की शिक्षा के प्रसार के कार्यों में सक्रिय रहे. वर्ष 1974 में वह फिर चुनाव जीते और उन्हें शिक्षा मंत्री बनाया गया.

दो बरस में ही उनका राजनीतिक कद बढ़ गया और उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाया गया. अगले मंत्रिमंडल फेरबदल में उन्हें देश का व्यापार और उद्योग मंत्री बनाया गया और ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने बहुत से निवेश प्रसार कार्यक्रम चलाकर देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार दी.

इस दौरान पार्टी में महातिर की अहमियत लगातार बढ़ती रही और साल 1981 में वह पार्टी अध्यक्ष बने. उनके नेतृत्व में पार्टी ने साल 1982, 1986, 1990, 1995 और 1999 के चुनाव जीते और उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर देश की बागडोर संभाली. 2003 में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरने के बाद जब चहुं ओर से उनके इस्तीफे की मांग उठने लगी तो उन्होंने पद छोड़ दिया.

डॉ महातिर की पत्नी सिती हसमाह भी डॉक्टर हैं और इन दोनों के सात बच्चे हैं. दिलचस्प बात यह है कि इनके सभी बच्चों के नाम ‘म’ अक्षर से शुरू होते हैं. मरीना, मीरजान, मेलिंडा, मोखजानी, मखजिर, मैजूरा और मजहर.

विपक्ष की जीत विशेष मानी जा रही है क्योंकि चुनावी विशेषज्ञों का कहना था कि नजीब सत्ता में आने के लिए जो कुछ भी कर सकते थे, उन्होंने किया और इसके बावजूद उनका हार जाना देश में तीव्र सत्ता विरोधी लहर का परिणाम है.

जीत के बाद पत्रकारों से मुख़ातिब महातिर ने कहा कि, ‘हमें किसी तरह का बदला नहीं चाहिए, हम तो कानून का शासन लाना चाहते हैं.’

 

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