मोदी के खिलाफ आज दिल्‍ली में जुटेगी ‘दगे कारतूसों’ की भीड़, पोटाश के जुगाड़ में

नई दिल्ली। अभी 26 जनवरी को मुंबई की वो तस्‍वीर तो आपको याद ही होगी जब विपक्ष ने यहां पर संविधान बचाओ रैली निकाली थी। इस रैली के बाद अब सोमवार को एक बार फिर मोदी विरोधी नेता दिल्‍ली में एकजुट हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर विपक्ष के तमाम नेताओं को दगे कारतूसों की संज्ञा दी गई है। कहा जा रहा है कि मोदी के खिलाफ एकजुटता दिखाकर विपक्ष के ये दगे कारतूस अपने भीतर पोटाश भरना चाहते हैं। ताकि 2019 में वो मिसफायर ना हों। 26 जनवरी को भी जो संविधान बचाओ रैली का आयोजन किया गया था इसे भी आप 2019 के लोकसभा चुनाव से ही जोड़कर देख सकते हैं। दरसअल, इस वक्‍त विपक्ष की क्‍या हालत है ये बात किसी से छिपी नहीं है। मोदी की आंधी में विपक्ष ऐसा ध्‍वस्‍त हुआ है कि आज तक उसे संभलने का मौका नहीं मिला है। डर इस बात का है कि अगर 2014 जैसी चोट 2019 में भी लगी तो शायद विपक्ष का नामोनिशान ही मिट जाएगा।

इसी डर से विपक्ष के नेताओं ने अभी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ लामबंदी शुरु कर दी है। गणतंत्र दिवस के मौके पर जब मुंबई में संविधान बचाओ रैली का आयोजन किया गया था उस वक्‍त इसमें विपक्ष के कई नेता नजर आए थे। कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्‍यमंत्री पृथ्‍वीराज चव्‍हाण, अशोक चव्‍हाण के अलावा संजय निरुपम मौजूद थे। नेशनल कांफ्रेंस की ओर से उमर अब्‍दुल्‍ला आए हुए थे। जेडीयू के बागी नेता शरद यादव थे। एनसीपी के मुखिया शरद पवार थे। पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के प्रमुख हार्दिक पटेल थे। गुजरात के युवा नेता और हाल ही में कांग्रेस पार्टी ज्‍वाइन करने वाले अल्‍पेश ठाकोर मौजूद थे। इन लोगों ने उस वक्‍त मुंबई में ऐसे झंडा बुलंद किया हुआ था कि मानों संविधान की पूरी की पूरी जिम्‍मेदारी इन्‍हीं लोगों के कंधे पर हो। बहरहाल, सबकी राजनीति चलते रहे इसके लिए इस तरह के आयोजन जरूरी भी हैं।

इसी संविधान बचाओ रैली के बाद एनसीपी नेता शरद पवार ने सभी को 29 जनवरी को दिल्‍ली में मीटिंग के लिए बुला लिया था। शरद पवार चाहते हैं कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ही मोदी के खिलाफ रणनीति बना ली जाए। ये लोग मोदी को विपक्षी एकजुटता का नजारा दिखाना चाहते हैं। अपनी ताकत का एहसास कराना चाहते हैं। जबकि हकीकत ये है कि ये लोग खुद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से काफी डरे और सहमे हुए नजर आ रहे हैं। इन सभी दलों को पता है कि अगर उन्‍होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कोई बेहतर और कारगर प्‍लॉनिंग नहीं की तो इस बार इन दलों का हाल 2014 से भी बुरा होगा। माना जा रहा है‍ कि इसी डर के चलते पूरा का पूरा विपक्ष एक ही छतरी के तले खड़े होना चाहता है। हालांकि इसमें भी कलेश कम नहीं होंगे। क्‍योंकि मसला अभी थर्ड फ्रंट और यूपीए में आकर फंस सकता है।

कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि उसका क्षत्रप उससे छिने। जबकि विपक्ष के कई दल कांग्रेस की छतरी के नीचे खड़े होने को तैयार नहीं है। वो थर्ड फ्रंट बनाना चाहते हैं। हालांकि अगर मोदी के खिलाफ तीसरा मोर्चा खड़ा किया जाता है तो ऐसा पहली बार नहीं होगा। इससे पहले भी कई बार तीसरे मोर्चे का गठन हो चुका है लेकिन, वो जल्‍द ही अपना दम तोड़ देता है। लेफ्ट में अपने मतभेद हैं। टीएमसी अपनी अगल राह पर चलती है। हरियाणा की इनेलो कभी यूपीए में शामिल नहीं रही। शरद यादव वैसे भी सियासी बेरोजगार चल रहे हैं। ऐसे में क्‍या माना जाए कि क्‍या वाकई कभी विपक्ष मोदी के खिलाफ एकजुट हो पाएगा ? क्‍या वाकई दगे कारतूस अपने भीतर पोटाश भर पाएंगे। विपक्ष की रणनीति को लेकर ढेरों सवाल हैं। जिनके जवाब आज होने वाली मीटिंग के बाद भी मिल सकते और नहीं भी मिल सकते हैं। क्‍योंकि सियासत की इस लंका में हर कोई 52 गज का है।

 

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