याद करो कुर्बानी: गोलियां खत्‍म हुई तो मेजर थापा ने संगीन से दुश्‍मनों को दी मौत

अनूप कुमार मिश्र

नई दिल्‍ली। याद करो कुर्बानी की 14वीं कड़ी में हम आपको मेजर धन सिंह थापा की वीरगाथा बताने जा रहे हैं. यह वाकया भारत-चीन युद्ध के दौरान का है. इस युद्ध के दौरान मेजर थाना ने न केवल दो बार चीन के हमले को नाकाम किया बल्कि सैकड़ों की संख्‍या में दुश्‍मन सेना मार गिराए. आइए आपको बताते हैं मेजर धन सिंह थापा की पूरी वीरगाथा. मेजर धन सिंह थापा का जन्‍म 10 अप्रैल 1928 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था. मेजर थापा ने अपने सैन्‍य जीवन की शुरूआत 28 अगस्त 1949 को 8 गोरखा राइफल्स से की थी.

चीनी सेना ने सरिजान इंडियन पोस्‍ट पर किया था हमला
लद्दाख के पांगोंग झील के उत्तर में स्थित सिरीजाप घाटी को चुशुल एयरफील्ड की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था. इस क्षेत्र में किसी भी दुश्मन अतिक्रमण और घुसपैठ को रोकने के लिए 1/8 गोरखा राइफल्स ने सरिजाप -1  नामक एक चौकी स्‍थापित की थी. सरिजाप -1 नामक इन चौकी की कमान उन दिनों मेजर धन सिंह थापा की ‘डी’ कंपनी के एक प्लाटून के पास थी. 1962 में चीनी सेना इने इसी चौकी के रास्‍ते भारत पर हमला किया था. यह वाकया 21 अक्टूबर 1962 का है.

सुबह करीब 6 बजे चीनी सेना ने अपने नापाक मंसूबों के तहत इस चौकी पर तोप और मोर्टार से हमला किया था. भारतीय सेना की स्थिति कमजोर करने के लिए चीनी सेना तोप और मोर्टार से लगातार बमबारी कर रही थी. बम बारी के दौरान दुश्‍मन सेना विशेषतौर पर भारतीय कमांड पोस्‍ट को अपना निशाना बना रही थी. बमबारी के चलते इस कमांड सेंटर का वायरलेस पूरी तरह से क्षतिग्रस्‍त हो गया था. जिसके चलते कमांड पोस्‍ट पर तैनात जवानों का संपर्क मुख्‍य कमांड से टूट गया था.

paran vir thapa gorakha
                                        मेजर थापा और उनके बचे हुए जवान जब तक गोलाबारूद था, तब तक वे दुश्‍मन सेना को मुंहतोड़ जवाब देते रहे. 

बमबारी में ध्‍वस्‍त हुआ भारतीय सेना का कम्‍युनिकेशन सिस्‍टम 
लिहाजा, इस पोस्‍ट पर तैनात जवान अब अपनी मदद के लिए रिइंफोसर्समेंट भी नहीं बुला सकते थे. तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मेजर धन सिंह थापा ने दुश्‍मनों से मोर्चा लेने का फैसला किया. इसी बीच, चीनी सेना के पैदल सैनिकों ने भी इस भारतीय पोस्‍ट पर हमला बोल दिया. दुश्‍मन सेना के इस हमले का मेजर थापा ने मुंहतोड़ जवाब दिया. नतीजनत, दुश्‍मन सेना के कई लड़ाके युद्ध क्षेत्र में मारे गए. अपने सैनिकों को लगातार मरता हुआ देख चीनी सेना ने अपने पैर खींचने में ही अपनी भलाई समझी.

चीनी सेना के बचे हुए जवान मौके से भाग खड़े हुए. चीनी सैनिक भले ही इस हमले में नाकाम हो गए हों, लेकिन अभी तक उन्‍होंने अपनी जिद नहीं छोड़ी थी. कुछ घंटो के इंतजार के बाद चीनी सैनिकों ने एक बार फिर अपनी सेना एकत्रित की और पहले से अधिक ताकत के साथ इंडियन आर्मी की इस पोस्‍ट पर हमला बोल दिया. इस बार भी चीनी सैनिकों को मुंह की खानी पड़ी. लगातार दो बार मुंह की खाने के बाद चीनी सेना अब बड़े हमले की साजिश तैयार कर रही थी.

टैंक रेजीमेंट के साथ चीनी सेना ने किया तीसरा हमला 
इस बार उसने अपने सैन्‍य बेड़े में टैंक भी शामिल कर लिए थे. दुश्‍मन सेना ने तीसरी बार अपनी पूरी ताकत के साथ भारत की इस पोस्‍ट पर हमला बोला. वहीं, अब तक दो हमलों का सामना कर चुके मेजर थापा के सैनिक या तो शहीद हो चुके थे या फिर गंभीर रूप से घायल हो चुके थे. चीनी सेना से लगातार लड़ते हुए मेजर थापा के मौजूद गोलाबारूद और गोलियां भी खत्‍म होने लगी थी. मेजर थापा और उनके बचे हुए जवान जब तक गोलाबारूद था, तब तक वे दुश्‍मन सेना को मुंहतोड़ जवाब देते रहे.

गोला बारूद और गोली खत्‍म होने पर मेजर थापा और उनके जवान संगीन लेकर चीनी दुश्‍मन पर टूट पड़े. उन्‍होंने अपनी संगीन से कई दुश्‍मनों को मार गिराया. इस युद्ध खत्‍म होने के बाद यह धारणा बनी कि युद्ध के दौरान मेजर थापा शहीद हो गए हैं. लेकिन, बाद में पता चला कि मेजर थापा को चीनी दुश्‍मन ने बंधक बना लिया है. इस जानकारी के आधार पर मेजर थापा को चीनी दुश्‍मनों के चंगुल से मुक्‍त कराया गया. युद्ध के दौरान, मेजर थापा के युद्ध कौशल, साहस, नेतृत्‍व झमता के मद्देनजर उन्‍हें सेना के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.

 

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