यूपी: कई जिलों में बड़े नेताओं के टूटने से टेंशन में सभी पार्टियां

संभल/आगरा/मेरठ/पीलीभीत। उत्तर प्रदेश में चुनाव से ठीक पहले कई जिलों में लगभग सभी पार्टियों में स्थानीय स्तर पर बड़े नेताओं के इस्तीफे और बगावत से पार्टी नेतृत्व के पेशानी पर बल पड़ गए हैं। सबसे ज्यादा मामले समाजवादी पार्टी और बीजेपी में देखने के मिल रहे हैं। प्रत्याशियों की लिस्ट जारी होने के साथ ही टिकट से वंचित रह गए नेताओं ने बगावत का बिगुल फूंक दिया है। अखिलेश ने चाचा शिवपाल यादव को तो टिकट दे दिया, पर उनके कई समर्थकों ने टिकट न मिलने से नाराज होकर पार्टी छोड़ दी है।

मुरादाबाद में समाजवादी पार्टी को दो धड़ों में बांटते हुए वरिष्ठ नेता और चार बार के लोकसभा सांसद शफीकुर रहमान बर्क ने शनिवार को ऐलान कर दिया कि उनके पोते जियाउर रहमान बर्क ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन जॉइन कर ली है। बर्क ने संभल से अपने पोते को टिकट न दिए जाने से नाराज होकर यह कदम उठाया है। यहां से समाजवादी पार्टी ने पांच बार के विधायक और कैबिनेट मंत्री इकबाल महमूद को चुनाव में उतारा है। बर्क से अलग से होने से चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

उधर आगरा में भी समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। यहां पार्टी के 3 मौजूदा विधायकों सहित 5 बड़े चेहरों ने शनिवार को निर्दलीय या लोक दल के बैनर तले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। इनमें से तीन नेता आशीष यादव, रामपाल यादव और रामवीर यादव शिवपाल यादव के नजदीकी माने जाते हैं। सीतापुर के बिस्वान सीट से विधायक रामपाल यादव ने कहा कि वह उस लोक दल के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ेंगे जहां से समाजवाद की शुरुआत हुई थी । उन्होंने कहा, ‘दो बार बिसवान से विधायक का चुनाव जीतने के बावजूद मुझे टिकट नहीं दिया गया। अखिलेश यादव अति-आत्मविश्वास दिखा रहे हैं। किसी को उनसे कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि उन्होंने अपने पिता को ही धोखा दिया है।’

यूपी में बीजेपी भी अपने नेताओं की बगावत और टूट से अछूती नहीं है। कैराना सांसद हुकुम सिंह द्वारा अपनी बेटी को कैराना के प्रत्याशी के तौर पर पेश किए जाने के अगले ही दिन पार्टी के वरिष्ठ नेता अनिल चौहान ने बीजेपी छोड़कर अपने समर्थकों के साथ आरएलडी का दामन थाम लिया। उन्हें आरएलडी से टिकट मिल भी गया। उधर पीलीभीत में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के करीबी स्वामी प्रवक्तानंद ने बरखेड़ा विधानसभा सीट से आरएलडी के प्रत्याशी के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी नेता यहां ‘खुले तौर पर कारोबारी की तरह पार्टी के टिकट बेच रहे हैं।’

इसके अलावा शनिवार को एसपी के सीनियर नेता और मुलायम के करीबी अंबिका चौधरी ने एसपी छोड़ बीएसपी का दामन थाम लिया था। बता दें कि यूपी में ऐसी सीटों की संख्या काफी ज्यादा है जहां कांटे की लड़ाई होती है और हार-जीत का फैसला बहुत कम वोटों के अंतर से होता है। कुछ सीटों पर तो 2000 से 5000 वोटों के फासले से जीत-हार तय होती हैं। ऐसे में सभी पार्टियों में हो रही यह बगावत नतीजों को बदल भी दे तो कोई हैरानी नहीं होगी।

 

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