यूपी की सियासत में बड़े भूचाल के संकेत…‘मुलायम’ मिस्ट्री जवाब मांगती है

लखनऊ। समाजवादी पार्टी में एक दौर था जब नारा दिया गया था ‘कायम रहे मुलायम’। तब समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो रहे मुलायम सिंह यादव दावा भी किया करते थे कि एक बार जो बात कह दी तो कह दी, पीछे हटने का सवाल नहीं। अपनी मजबूती को दिखाते हुए वो बाबरी कांड के दौरान कारसेवकों पर गोलियां चलवाने के अपने फैसले को भी सही ठहराते रहे हैं और उसे देशहित में लिया गया फैसला बताते हैं, लेकिन यही मुलायम आजकल कन्फ्यूज़ में दिखाई दे रहे हैं। वो एक बात पर 24 घंटे भी नहीं कायम रह पा रहे हैं, आनन-फानन में फैसले लेकर चंद घंटों में ही बदल जा रहे हैं। जब से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर उनकी कुर्सी पर खतरा मंड़राने लगा तभी से उनकी स्थिति ऐसी ही है और जब वो राष्ट्रीय अध्यक्ष से समाजवादी पार्टी के संरक्षक बन गए हैं तो भी यही हाल है।

मुलायम सिंह यादव ने सबसे ताजा पलटी मारी है अपने उस बयान पर जो उन्होंने इसी हफ्ते की शुरूआत में यानी 29 जनवरी को कही थी। यूपी चुनाव के लिए अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने समझौता करते हुए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन कर लिया तो उन्होंने इस गठबंधन को गैरजरूरी बताया था और इस पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि वो इस गठबंधन के लिए प्रचार नहीं करेंगे, लेकिन अपनी इस बात पर 4 दिन भी कायम नहीं रह पाए। बेटे अखिलेश यादव के लिए वो एक बार फिर पलट गए। अब उन्होंने कहा है कि बेटे अखिलेश के साथ कोई मतभेद नहीं है, वो यूपी चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन के सभी उम्मीदवारों को अपना आशीर्वाद देंगे।

29 जनवरी को जिस दिन कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक मंच पर आए थे,साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और फिर साथ में सड़क की तारें हटाते हुए रोड शो भी किया था,  उसी दिन मुलायम सिंह यादव भी मीडिया के सामने आए थे और कह दिया था कि वो गठबंधन के खिलाफ हैं, इसलिए यूपी चुनाव में उनका प्रचार नहीं करेंगे। उनका विरोध सिर्फ इतना ही नहीं था, मुलायम ने अखिलेश यादव के नए दोस्त राहुल गांधी की पार्टी को भी खूब कोसा था। अब मुलायम का कहना है कि अखिलेश से मतभेद कैसा? पूछा गया कि यूपी चुनाव में अखिलेश के गठबंधन को आशीर्वाद देंगे तो उनका जवाब था कि ‘हां, सबको’। वैसे अखिलेश यादव ने उसी दिन इस बात को साफ कर दिया था कि मुलायम का आशीर्वाद गठबंधन के साथ है।

हाल के दिनों में ऐसा पहली बार नहीं है जब मुलायम अपनी बात से पलटे हैं। पिछले दो महीनों में ऐसा कई बार और बार-बार हुआ है जब मुलायम के बोल और विचार बदलते दिखे हैं। मुलायम ने पहली बार जब सिर्फ रामगोपाल यादव को पार्टी से बाहर निकाला था तो उस फैसले पर भी वो ज्यादा दिन कायम नहीं रह सके। संसद का शीत सत्र शुरू होते ही समस्या आई कि रामगोपाल राज्यसभा में किसका प्रतिनिधित्व करेंगे तो उसी दौरान मुलायम ने उन्हें पार्टी में वापस ले लिया और सभी पद भी दे दिए। बाद में उन्होंने फिर से रामगोपाल और साथ में अखिलेश यादव को भी 6 साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया, लेकिन 24 घंटे से भी कम वक्त में वो बदल गए और दोनों की पार्टी में वापसी हो गई।

अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने और नहीं करने को लेकर भी वो कई बार बयान बदल चुके हैं। जब समाजवादी पार्टी में चुनाव चिन्ह साइकिल को लेकर झगड़ा चलता रहा तो मुलायम ये कहते रहे कि साइकिल पर उनका हक है, लेकिन चुनाव आयोग में चुनाव चिन्ह पर दावे के लिए कोई कागजात ही नहीं पेश किए। उनकी तरफ से सिर्फ एक हलफनामा भेजा गया था, सिर्फ उनका, जबकि भाई शिवपाल समेत दर्जन भर से ज्यादा विधायक सार्वजनिक तौर पर उनके साथ खड़े थे। अब मुलायम के साथ हर हाल में खड़े रहने का दावा करने वाले शिवपाल यादव ने कह दिया था कि 11 मार्च के बाद वो नई पार्टी बनाएंगे, ऐसे में मुलायम को उनके साथ खड़ा होना चाहिए था, लेकिन पहले ना कहने के बाद वो गठबंधन के प्रचार के लिए भी तैयार हो गए।

सवाल उठ रहे हैं कि मुलायम के मन में इतना कन्फ्यूज़ क्यों है? वो बेटे के फैसले से सहमत नहीं हैं ये मानने की तो कई वजहें हैं। मुलायम का पूरा आंदोलन ही कांग्रेस और बीजेपी के विरोध पर खड़ा हुआ है और अब वही कांग्रेस यूपी में ही साझीदार बन गई है, केंद्र होता तो और बात थी कि चलो मजबूरी है। मुलायम का मन कांग्रेस का साथ देने के लिए मान नहीं रहा है, लेकिन चुनावी सर्वे बता रहे हैं कि इस गठबंधन को भारी समर्थन है और ये बहुमत के करीब दिखाया जा रहा है। संभवत: इससे मुलायम को भी लग रहा है कि संभवत: बेटे का यूपी चुनाव में कांग्रेस के साथ जाने का फैसला सही है। मुलायम की दुविधा साफ नजर आती है। शायद वो हां औ ना में इसीलिए उलझाए रखना चाहते हैं कि अगर किसी वजह से ये गठबंधन सत्ता से दूर रह गया तो मुलायम आगे ये कह सकेंगे कि उन्होंने तो पहले ही ऐसे गठबंधन को गलत बताया था, ये तो अखिलेश की जिद थी जिसकी वजह से वो चुप रह गए।

 

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