यूपी फर्जी मुठभेड़ेंः बेलगाम कौन है पुलिस या सियासत!

उर्मिलेश उर्मिल

देश का सबसे बड़ा प्रदेश-यूपी इस वक्त अच्छे नहीं, बुरे और बहुत बुरे कारण से अखबारों की सुर्खियों में है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा में गत 4 फरवरी को एक पुलिस दारोगा ने एक स्थानीय जिम-ट्रेनर जितेंद्र यादव को गोली मार दी। वह इस वक्त स्थानीय अस्पताल में जीवन और मौत के बीच झूल रहा है। पहले तो पुलिस ने इसे बड़ी पुलिस-मुठभेड़ के रूप में दर्ज करना चाहा लेकिन जितेंद्र पर एक भी आपराधिक केस नहीं लंबित था। वह एक प्रोफेशनल जिम ट्रेनर है, इसलिये उत्तर प्रदेश पुलिस के लिये इसे मुठभेड़ साबित करना कठिन हो गया। तब एसएसपी ने उक्त दारोगा के खिलाफ कार्रवाई की और मान लिया कि यह मुठभेड़ फर्जी है।

इस मामले में चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आश्वासन दिया गया है। लेकिन इस घटना से पहले भी यूपी में मुठभेड़ों का सिलसिला जारी है। हाल के सुमित और अब जितेंद्र मुठभेड़ कांड से बीते सात महीने के दौरान उत्तर प्रदेश में हो रही फर्जी मुठभेड़ों की असलियत सामने आ गई है।  कुछ महीने पहले इसी नोएडा में सुमित नामक एक ऐसे युवक को पुलिस ने मार गिराया, जिस पर कोई मामला दर्ज नहीं था, जबकि मुठभेड़ के बाद पुलिस ने उसे दुर्दांत अपराधी बताया था। असल कहानी बाद में सामने आई कि पुलिस उसी इलााके के सुमित नामक किसी आपराधिक चरित्र को मारने या पकड़ने गई थी पर उसी नाम के दूसरे सुमित को पकड़कर उसने मार डाला। यह मामला मानवाधिकार आयोग में लंबित है। स्वयं उत्तर प्रदेश शासन के अपने रिकार्ड के मुताबिक मार्च, 2017 के तीसरे सप्ताह से अब तक राज्य में तीन दर्जन अपराधी-अभियुक्त कथित पुलिस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं।

कुल मुठभेडें चार सौ से कुछ अधिक हैं। सबसे दिलचस्प और चौंकाने वाली बात है कि मारे गये कथित अपराधियों या अभियुक्तों में 95 फीसदी से ज्यादा दलित-ओबीसी या अल्पसंख्यक समुदाय के हैं। इन मुठभेड़ों और अन्य मामलों को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नेे राज्य की योगी सरकार को अब तक 9 बार नोटिस भेजा है। लेकिन आयोग के ऐसे कदमों से बेखौफ राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस द्वारा की जा रही इन फर्जी मुठभेड़ो को जायज ठहराया है। उन्होंने शपथग्रहण के कुछ ही समय बाद उत्तर प्रदेश पुलिस को एक तरह से मुठभेड़ मे जुटने का संकेत दिया था। उन्होंने 18 नवम्बर को एक बयान में फिर कहा कि उत्तर प्रदेश में अपराधी या तो जेल जायेंगे या मारे जायेंगे! सवाल है, क्या किसी लोकतंत्र में अपराध-नियंत्रण या कानून व्यवस्था ठीक करने का जरिया मुठभेड़ हत्याएं हो सकती हैं?

भारत का सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कई बार साफ-साफ कह चुका है कि लोकतंत्र और कानून के राज में राज्य-मशीनरी सहित किसी भी व्यक्ति या एजेंसी को किसी की हत्या करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। मणिपुर मुठभेड़ कांड में कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक रहा, जिसकी रोशनी में अभी भी जांच चल रही है। भारत जैसे गैर-बराबरी, असमान विकास और तरह-तरह के दमन-उत्पीड़न से भरे समाज में कानून-व्यवस्था को संबोधित करने का नजरिया किसी निरंकुश या तानाशाही शासन का नजरिया नहीं हो सकता।  इसी दृष्टि से सुप्रीम कोर्ट या मानवाधिकार आयोग ने मुठभेड़ के तरीके को हमेशा नामंजूर किया और इसे लोकतांत्रिक शासन के लिये कलंक बताया। पर अचरज की बात है कि उत्तर प्रदेश की निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री स्वयं ही मुठभेड़ हत्याओं को जायज बता रहे हैं। ऐसे में तय करना कठिन नहीं कि यूपी में पुलिस बेलगाम है या स्वयं सिय़ासत !

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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