यूपी में ‘टर्निंग प्वाइंट’ सबित होने वाले ये मामले, जिनके बाद इन्हे भी गंवानी पड़ी अपनी कुर्सी

साल था 2011, सरकार थी बसपा। उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को उस समय तगड़ा झटका लगा, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बांदा के बहुचर्चित बलात्कार कांड का स्वतः संज्ञान लेते हुए पीड़ित युवती शीलू निषाद को तत्काल जेल से रिहा करने और उसे सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए। 

शीलू कांड 2011 – साल था 2011, सरकार थी बसपा। उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार को उस समय तगड़ा झटका लगा, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बांदा के बहुचर्चित बलात्कार कांड का स्वतः संज्ञान लेते हुए पीड़ित युवती शीलू निषाद को तत्काल जेल से रिहा करने और उसे सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए।

इस मामले के बाद लड़की को जेल से रिहा कर दिया गया था। कोर्ट में अवकाश होने के बावजूद न्यायमूर्ति इम्तियाज़ मुर्तज़ा और न्यायमूर्ति सतीश अग्रवाल की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई के लिए बैठी।

कोर्ट ने पीड़ित युवती की रिहाई के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया। अदालत ने शीलू के परिवार को भी सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश दिए।

इस बीच सरकार ने अतर्रा थाने के प्रभारी जब्बार खाँ को निलंबित कर दिया गया है. यह पूरा मामला इसी थाने के अंतर्गत चल रहा हैं। पीड़ित परिवार ने हाईकोर्ट को तार भेज कर फ़रियाद की थी कि ज़िला पुलिस शीलू पर बलात्कार का मुक़दमा वापस लेने का दबाव डाल रही है. याद दिला दें कि युवती शीलू निषाद का आरोप है कि बहुजन समाज पार्टी विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी के घर पर 12 दिसंबर की रात उसके साथ विधायक और उसके साथियों ने बलात्कार किया।

जब वह अपनी जान बचाकर भागी तो उसके ऊपर चोरी का फ़र्जी मुक़दमा क़ायम कर 15 दिसंबर को उसे जेल भेज दिया गया।इस मामले के बाद साल 2012 में मायावती की सरकार का शंसनकाल समाप्त हो गया और अखिलेश यादव ने इसके आगे का मोर्चा संभाला।

2014 बदायूं कांड :-

2014 में यूपी के बदायूं जिले में दो चचेरी बहनों के रेप और मर्डर के मामले ने अखिलेश सरकार को आलोचनाओं के घेरे में खड़ा कर दिया था. पुलिसिया कार्रवाई को लेकर ढेर सारे सवाल खड़े किए गए थे. मामला इतना उछला था कि तत्कालीन संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून तक ने इस मामले पर चिंता जाहिर की थी.

इस मामले के बाद अखिलेश को भी अपनी कुर्सी गवानी पड़ी।

2020 हाथरस कांड :-

उत्तर प्रदेश के हाथरस में बीते दिनों जिस युवती का रेप हुआ, उसने मंगलवार सुबह दम तोड़ दिया। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान दलित युवती की जान चली गई। बताया जा रहा है कि 14 सितंबर की सुबह लड़की अपनी मां के साथ पशुओं का चारा लेने खेतों पर गई थी। तभी गांव के कुछ युवक आए और उसे अपनी हवस का शिकार बनाया। पूरे देश में हाथरस कांड को लेकर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है.

इस कांड से सियासी माहौल बहुत गर्म है. विपक्ष सत्ता पक्ष पर पूरी तरह हावी है. यहाँ तक कि 2 अक्टूबर तक मीडिया कर्मियों को भी पीड़ित परिवार से मिलने नहीं दिया गया उनके साथ अभद्र व्यवहार के साथ साथ धक्का मुक्की भी की गयी. जिसको लेकर मीडिया जगत में भी मौजूदा योगी सरकार के खिलाफ भारी आक्रोश है.

हाथरस गैंगरेप मामले में पूरे देश को झंझोर कर रख दिया है। ऐसे में उत्तर प्रदेश पुलिस ने अपनी तरफ से एक बड़ा बयान दिया है। यूपी पुलिस के एडीजी लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार ने अपने बयान पर कहा कि,हाथरस मामले में मृतक लड़की से दुष्कर्म नहीं हुआ था।

उन्होंने अपने बयान में कहा कि, मामले को अनावश्यक तूल देकर माहौल खराब करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बता दें कि हाथरस कांड को लेकर यूपी सरकार पूरी तरह बैकफुट पर आ गई है। इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बुधवार को चर्चा की थी जिसके बाद प्रदेश सरकार ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया जो कि मामले की जांच कर रही है।

इस पूरे मामले में प्रशासन ने जिस तरह संवेदनहीनता बरती उससे पूरी सरकार सवालों के घेरे में आ गई है। पहले तो पीड़िता को समय पर इलाज नहीं मिला और फिर जिस तरह परिजनों के विरोध के बावजूद पुलिसकर्मियों ने शव का अंतिम संस्कार कर दिया उससे प्रशासन की मंशा पर भी सवाल उठे।

 

अब बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या सपा-बसपा शासन काल में हुए इन घटनाओं के तख्ता पलट को देखते हुए अगामी विधानसभा चुनाव में सरकार का भी जाना तय माना जाए।

 

 

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