यूपी में लोकायुक्त की नियुक्ति से CJ बाहर, विधानसभा में संशोधन बिल पास

cm-in-vsतहलका एक्सप्रेस प्रतिनिधि
लखनऊ। यूपी सरकार ने विधानसभा में गुरुवार को लोकायुक्त और उप लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2015 पास करा लिया। इस बिल को अब मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेजा जाएगा। विधेयक में संशोधन कर लोकायुक्त चयन में इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस (सीजे) की भूमिका खत्म कर दी गई है। बिल को मंजूरी मिलने के बाद सीएम, नेता विपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष मिलकर एक रिटायर्ड जस्टिस का नाम चुनेंगे और फिर उस जस्टिस के साथ मिलकर लोकायुक्त का चयन किया जाएगा।
अब तक जो लोकायुक्त और उप लोकायुक्त बिल था, उसमें लोकायुक्त का चयन तीन सदस्यों की कमिटी करती थी। इस कमिटी में सीएम, नेता विपक्ष और इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस हुआ करते थे। तीनों मिलकर नामों के एक पैनल में से किसी एक रिटायर्ड जस्टिस का चयन बतौर लोकायुक्त करते थे। इसके बाद चुने हुए नाम को मंजूरी के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाता था। राज्यपाल की मुहर लगने के बाद लोकायुक्त की नियुक्ति की जाती थी। वहीं, उप लोकायुक्त के चयन के लिए कमिटी में सीएम, नेता विपक्ष और लोकायुक्त हुआ करते थे।
संशोधन बिल क्यों पास कराया
अखिलेश यादव की सरकार ने नया बिल इस वजह से पास कराया, क्योंकि नए लोकायुक्त के नाम को लेकर सरकार और राज्यपाल के बीच रस्साकसी चल रही थी। सीएम अखिलेश और नेता विपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या ने मिलकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रहे रवींद्र सिंह का नाम प्रस्तावित कर राज्यपाल को भेजा था। राज्यपाल राम नाईक ने प्रस्तावित नाम की फाइल ये कहकर लौटा दी थी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की सहमति से नाम नहीं तय हुआ है। इसके बाद तीन बार और रवींद्र सिंह का नाम सीएम की ओर से राज्यपाल को भेजा गया, लेकिन इन तीनों बार भी राज्यपाल ने फाइल लौटा दी। चौथी बार तो राज्यपाल ने फाइल पर ये नोटिंग भी कर दी कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस भी रवींद्र सिंह के नाम पर राजी नहीं हैं।
रवींद्र सिंह के नाम पर चीफ जस्टिस इसलिए राजी नहीं थे
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने रवींद्र सिंह को लोकायुक्त बनाए जाने पर अपनी स्वीकृति नहीं दी थी। चीफ जस्टिस का कहना था कि जस्टिस रवींद्र सिंह को कई बार सपा के नेता और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ सार्वजनिक मंच साझा करते देखा गया है। ऐसे में उन्हें लोकायुक्त बनाने को जस्टिस चंद्रचूड़ ने सही नहीं माना था। उनकी इसी राय को राज्यपाल ने चौथी बार रवींद्र सिंह का नाम ठुकराते वक्त फाइल पर नोटिंग भी कर दी थी।
nk-mehrotraमौजूदा लोकायुक्त से जुड़ा विवाद
जस्टिस रवींद्र सिंह के नाम को लेकर यूपी सरकार और राज्यपाल के बीच खींचतान के साथ ही मौजूदा लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा को लेकर भी विवाद हुआ। जस्टिस मेहरोत्रा का कार्यकाल साल 2012 में ही खत्म होना था, लेकिन यूपी सरकार ने उनका कार्यकाल दो साल के लिए बढ़ा दिया था। उनका कार्यकाल बढ़ाने के लिए अध्यादेश जारी किया गया था। जिसे तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी ने मंजूरी दी थी। बीते दो महीने से सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि यूपी में नए लोकायुक्त की नियुक्ति की जाए। इसके बाद सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस रवींद्र सिंह को लोकायुक्त बनाने की तैयारी की। वहीं, उनके नाम को मंजूरी न मिलने के बाद मौजूदा लोकायुक्त जस्टिस मेहरोत्रा ने कहा था कि नए लोकायुक्त की नियुक्ति तक वही इस पद पर बने रहने के हकदार हैं। इस बीच, तमाम लोगों ने जस्टिस मेहरोत्रा पर भी सपा सरकार के करीबी होने का आरोप लगाया।
 

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