ये क्या हो रहा है योगी जी !

गोरखपुर हादसे पर झांसापट्टी भरी, धन का धंधा अब भी भरी

प्रभात रंजन दीन
जिस सड़े हुए सिस्टम के कारण गोरखपुर और फर्रुखाबाद या किसी अन्य जिले में मासूम बच्चों की मौत की अमानुषिक घटनाएं घट रही हैं, उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार उस सिस्टम को दुरुस्त करने के बजाय उसे पाल-पोस रही है. यूपी की शासनिक-प्रशासनिक और स्वास्थ्य-व्यवस्था (सिस्टम) को समाजवादी पार्टी और बसपा की सरकारों ने सड़ाया, योगी सरकार उसे खाद-पानी दे रही है. योगी सरकार की घोषणाएं, जांचें, कार्रवाइयां और गिरफ्तारियां सब सत्ता की नौटंकियां हैं.

गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से पांच दर्जन से अधिक बच्चों की मौत के मामले में मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्र, उसकी पत्नी पूर्णिमा शुक्ला और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इंसेफ्लाइटिस विभाग के चीफ नोडल अफसर और परचेज़ कमेटी के सदस्य रहे डॉ. कफील अहमद खान को गिरफ्तार कर लिया गया है. अभियुक्त और हैं, लिहाजा गिरफ्तारियां अभी और होंगी. लेकिन इन गिरफ्तारियों से मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला नहीं रुक रहा. गोरखपुर में बच्चों का मरना लगातार जारी है. उसके बाद फर्रुखाबाद में भी 49 बच्चों के मरने की खबर सामने आ गई.

‘चौथी दुनिया’ ने पूर्व के अंक में भी आपको बताया था कि अखिलेश सरकार ने गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल समेत अन्य कई अस्पतालों में ऑक्सीजन की सप्लाई का ठेका किस तरह रिश्वत और उपकार के प्रभाव में दिया था और किस तरह सपा सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) का यूपी में कबाड़ा निकाला. पूर्वांचल के जिन जिलों में तथाकथित जापानी इंसेफ्लाइटिस या एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम बीमारी फैली है, वहां-वहां वेंटिलेटर सुविधा स्थापित करने और संचालित करने के लिए बजट मुहैया कराने और उनके रख-रखाव की जिम्मेदारी एनएचएम पर ही है. गोरखपुर हादसे के नजरिए से देखें तो एनएचएम सारी गड़बड़ियों का स्रोत है, लेकिन उस पर लोगों का ध्यान नहीं है, ‘कमाई का स्रोत’ होने के कारण सरकार भी उस तरफ से आंख मूंदे हुई है. ऊपर-ऊपर कार्रवाइयां जारी हैं और अंदर-अंदर करतूतें जारी हैं.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्र, उनकी पत्नी डॉ. पूर्णिमा शुक्ला और डॉ. कफील खान की गिरफ्तारी और अन्य छह लोगों की संभावित गिरफ्तारियां क्या बच्चों की मौतों का सिलसिला रुकने की गारंटी हैं? इसका जवाब सब जानते हैं. योगी सरकार पेड़ की सड़ी हुई जड़ में दवा डालने के बजाय पेड़ के कुछ खराब पत्तों का ‘ट्रीटमेंट’ करने का दिखावा कर रही है. जिन मूल वजहों से ऐसी घटनाएं हो रही हैं, वे वजहें अब भी यथावत हैं. एनएचएम भ्रष्टाचार की कबड्डी का मैदान बना हुआ है. सरकार अब भी वही कर रही है, जो सपा चाह रही है, या अखिलेश के संरक्षक रामगोपाल यादव चाह रहे हैं. इसका हम आगे विस्तार से खुलासा करेंगे.

फिलहाल यह बताते चलें कि गोरखपुर त्रासदी के बाद सरकार की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर में ऑक्सीजन सप्लायर फर्म पुष्पा सेल्स के संचालक, प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्र मिश्र, डॉ. पूर्णिमा शुक्ला समेत नौ लोग नामजद अभियुक्त हैं. गोरखपुर हादसे के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्य सचिव राजीव कुमार की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की थी. ‘चौथी दुनिया’ ने तभी बताया था कि जांच समिति में वह अधिकारी भी शरीक है, जिसने सपाई सरकार के संरक्षण में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को भ्रष्टाचार और सियासत का अड्डा बना कर रख दिया. ऐसे ही लोगों की करतूतों की वजह से गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज जैसा हादसा हुआ.

एनएचएम के मिशन निदेशक आलोक कुमार भी जांच समिति में शरीक थे. समाजवादी पार्टी की सरकार में मुख्य सचिव आलोक रंजन के स्टाफ अफसर रहे आलोक कुमार को एनएचएम का मिशन निदेशक इसीलिए बनाया गया था, ताकि सपा नेताओं का ‘खेल’ निर्बाध चलता रहे. ऐसी ही विवादास्पद ‘उच्च-स्तरीय’ जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर चिकित्सा शिक्षा की अपर मुख्य सचिव अनीता भटनागर जैन हटाई गईं और अन्य लोगों की गिरफ्तारियां हो रही हैं. जांच समिति ने एनएचएम के मिशन निदेशक (अब पूर्व) आलोक कुमार व अन्य संदिग्ध अफसरों की भूमिका की तरफ ध्यान ही नहीं दिया.

अब देखिए भाजपाई मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार पर सपाई प्रभाव किस तरह सिर चढ़ कर बोल रहा है. निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सरकार को रामगोपाल यादव ही चलाते रहे और अब योगी सरकार में भी रामगोपाल-प्रभाव कम नहीं हुआ है. रामगोपाल यादव ने अपने खास आईएएस अधिकारी हीरालाल की गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर पत्नी उषा गंगवार को एनएचएम में लेवल-2 का होने के बावजूद ऊपर की सीढ़ी पर पहुंचवा दिया था. आज डॉ. उषा गंगवार राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन में महाप्रबंधक के पद पर सुशोभित हैं. योगी सरकार ने अभी हाल में फरमान जारी किया था कि एक ही जनपद में लम्बे अर्से से काबिज विशेषज्ञ चिकित्साधिकारियों को अन्य जिलों में स्थानान्तरित किया जाए. लेकिन रामगोपाल-प्रभाव के कारण योगी सरकार का फरमान उन पर लागू नहीं हुआ. विचित्र किंतु सत्य यह है कि डॉ. उषा गंगवार की प्रतिनियुक्ति के अधिकतम पांच साल भी पूरे हो चुके हैं, लेकिन रामगोपाल यादव के प्रभाव के कारण योगी सरकार उनका तबादला नहीं कर रही है.

अब देखिए, योगी सरकार पर रामगोपाल-प्रभाव का दूसरा उदाहरण. मथुरा के जवाहरबाग कांड के खिलाफ तब भाजपाइयों ने खूब आग उगला था. योगी आदित्यनाथ भी उस हादसे के खिलाफ जमकर बरसे थे. लेकिन सत्ता पर आते ही योगी का बरसना सूख गया. मथुरा के जवाहरबाग-कांड के जिम्मेदार जिलाधिकारी राजेश कुमार को सपा सरकार ने उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का अपर मिशन निदेशक बना दिया था. राजेश कुमार सपा नेता प्रो. रामगोपाल यादव के खास आदमी हैं. योगी सरकार ने जवाहरबाग कांड के उसी ‘हीरो’ को संरक्षण दिया और उसे मोदी सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक ‘कौशल विकास मिशन’ का निदेशक बना कर बैठा दिया. राजेश कुमार ‘कौशल विकास मिशन’ के जरिए रामगोपाल समर्थकों की स्वयं सेवी संस्थाओं (एनजीओ) का विकास करने के मिशन में मगन हैं.

योगी सरकार पर सपाई प्रभाव का सिलसिला यहीं नहीं रुक रहा. बात अभी गोरखपुर हादसे के प्रसंग में हो रही है. गोरखपुर हादसे के बाद बनी उच्च स्तरीय जांच समिति में एनएचएम के मिशन निदेशक आलोक कुमार शामिल रहे. जब बात खुलने लगी और हादसे के छींटे आलोक कुमार पर भी आने लगे तब सरकार ने आनन-फानन आलोक कुमार को हटा कर पंकज कुमार यादव को एनएचएम का मिशन निदेशक बना दिया. सपा सरकार में खास रहे आलोक कुमार हटे तो उस पद पर सीधे-सीधे रामगोपाल यादव के खास पंकज यादव की तैनाती कर दी गई. पंकज यादव विशेष सचिव स्तर के आईएएस हैं, जबकि एनएचएम निदेशक का पद सचिव स्तर के वरिष्ठ अधिकारी के लिए निर्धारित है. सपाई प्रभाव के कारण योगी सरकार ने वह मर्यादा भी ताक पर रख दी.

रामगोपाल यादव की विशेष कृपा से 2002 बैच के आईएएस अधिकारी पंकज यादव समाजवादी पार्टी की सरकार के कार्यकाल में मैनपुरी, बलिया, बस्ती, देवरिया, आगरा, मथुरा और मेरठ के जिलाधिकारी रहे. एनएचएम का मिशन निदेशक बनाए जाने से पूर्व तक वे गृह विभाग में विशेष सचिव के पद पर तैनात थे. पंकज कुमार अकूत धन-स्रोत वाले एनएचएम में क्या करने आए हैं, यह जगजाहिर है. बांदा जनपद के मूल निवासी पंकज कुमार यादव के पिता मूलचंद यादव भी प्रमोटेड आईएएस रहे हैं जिन्हें आईएएस कैडर मिलते ही रामगोपाल की सिफारिश पर सीधे मंडलायुक्त बना दिया गया था, जबकि सर्विस-रूल्स के मुताबिक कमिश्नर बनने के पहले संदर्भित अधिकारी का कुछ वर्षों तक डीएम बनना जरूरी होता है.
सरकार खुलेआम कर रही धोखाधड़ी!

आपको ऊपर बताया कि गोरखपुर हादसे को लेकर हुई घोषणाएं, कार्रवाइयां और गिरफ्तारियां सब आम जनता के साथ धोखा हैं. जिस जड़ पर प्रहार होना चाहिए, वहां और खाद-पानी पहुंचाया जा रहा है. जहां मूल स्रोत में दीमक लगे हुए हैं, वहां जहर डालने के बजाय योगी सरकार और मिठास डाल रही है. इसी क्रम और प्रसंग में योगी सरकार के नौकरशाहों की एक और नायाब धोखाधड़ी का हम संज्ञान लेते चलें. आप जानते हैं कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई में अपर मिशन निदेशक का एक पद स्वीकृत है, जिसे प्रतिनियुक्ति के आधार पर भरे जाने का प्रावधान है. अपर मिशन निदेशक के पद पर तैनात किए जाने वाले व्यक्ति को विशेष सचिव स्तर का आईएएस अधिकारी होना चाहिए.

गोरखपुर हादसे के बाद तक मिशन निदेशक रहे आलोक कुमार ने रिटायर्ड आईएएस अफसर को अपर मिशन निदेशक के पद पर नियुक्त करने का एक विज्ञापन 12 जुलाई को जारी किया था. विज्ञापन के अनुसार आवेदन की अंतिम तारीख 27 जुलाई तय थी. प्रकाशित विज्ञापन में शर्त यह थी कि आवेदक ऐसा पूर्व आईएएस हो जो कभी जिलाधिकारी के रूप में जिला स्वास्थ्य समिति का अध्यक्ष रहा हो या स्वास्थ्य के क्षेत्र में उसका महत्वपूर्ण योगदान रहा हो. लेकिन सरकार ने ऐसे व्यक्ति को अपर मिशन निदेशक नियुक्त कर दिया, जो 31 जुलाई को रिटायर ही हुआ था. जबकि विज्ञापन में शर्त थी कि रिटायरमेंट 27 जुलाई के पहले की तारीख में हो.

सरकार को अपना ही नियम तोड़ने में कोई संकोच नहीं हुआ और प्रमोटी आईएएस निखिलचंद्र शुक्ल एनएचएम के अपर मिशन निदेशक बना दिए गए. दिलचस्प यह है कि शुक्ल रिटायरमेंट के पहले भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई में अपर मिशन निदेशक के पद पर कार्यरत थे और उनके रिटायर होते ही सरकार ने फर्जीवाड़ा करके उनका उसी जगह पुनर्वास कर दिया. प्रकाशित विज्ञापन की अंतिम तिथि 27 जुलाई की अनिवार्य शर्त को ठोकर पर रख कर निखिलचंद्र शुक्ल ने आवेदन दिया और 31 जुलाई को रिटायर होने के बाद उसी पद पर फिर से चुन लिए गए.

चयन करने वालों ने उनसे यह नहीं पूछा कि 27 जुलाई के पहले दाखिल आवेदन में उन्होंने अपने रिटायरमेंट की तारीख क्या लिखी थी? अपनी नियुक्ति के दौरान नए पद के लिए नया आवेदन दाखिल करने के लिए क्या उन्होंने सरकार से औपचारिक अनुमति ली थी? इस फर्जीवाड़े के बारे में कोई क्या पूछता, सब उसमें बराबर के लिप्त थे. अगर उन्होंने रिटायर होने के बाद आवेदन पत्र दाखिल किया तो उसे शासन में बैठे नौकरशाहों ने स्वीकार कैसे कर लिया? यह ऐसे सवाल हैं, जिनका वाजिब जवाब सरकार नहीं दे सकती. यह तो कुछ बानगियां हैं जिन्हें आपके समक्ष रखा गया. अगर पिछले तीन साल में प्रदेशभर में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में संविदा के पदों पर की गई भर्तियों की निष्पक्ष जांच हो तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे. भ्रष्टाचार की रफ्तार थमने का नाम नहीं ले रही है, जबकि घोटालों की सीबीआई जांच की वजह से मिशन की काफी बदनामी पहले ही हो चुकी है.

पहले से तैयार हो रहा था गोरखपुर हादसे का स्टेज
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक साथ 60 से अधिक बच्चों की मौत तकलीफदेह घटना रही. आपने देखा कि इस हादसे का मंच निवर्तमान सपा सरकार के समय से कैसे तैयार हो रहा था. इसके लिए मूल रूप से दोषी समाजवादी पार्टी की तत्कालीन सरकार है, योगी सरकार का दोष यह है कि वह आम लोगों के सरोकारों के प्रति कतई गंभीर नहीं है. वर्ष 2013 में समाजवादी सरकार के चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री अहमद हसन के चहेते चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण महानिदेशक डॉ.

बलजीत सिंह अरोरा ने जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से प्रभावित जिलों में इंसेफ्लाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर के निर्माण के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) को प्रस्ताव भेजा था और टर्न-की प्रॉसेस पर अहमद हसन की चहेती कंपनी ‘पुष्पा सेल्स’ को काम दे दिया था. बजाज स्कूटर बेचने वाली इस कंपनी को स्वास्थ्य से सम्बन्धित करोड़ों का काम देने का तब विरोध भी हुआ था, लेकिन अहमद हसन और डॉ. बलजीत सिंह अरोरा पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. इस कंपनी को गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कालेज में सौ वेंटिलेटर लगाने और मरीजों के इलाज में सुविधा देने के लिए टेक्नीशियन मुहैया कराने की जिम्मेदारी दी गई थी.

वर्ष 2014 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तत्कालीन निदेशक अमित कुमार घोष ने ‘पुष्पा सेल्स’ के काम की समीक्षा कराई थी और ‘पुष्पा सेल्स’ की खराब सेवाओं को आधिकारिक तौर पर उजागर किया था. सेंट्रल ऑक्सीजन यूनिट को बिजली की हाई-टेंशन लाइन के नीचे स्थापित करने और पुरानी पाइप-लाइन से ऑक्सीजन सप्लाई करने का मामला भी शासन के समक्ष लाया गया था. लेकिन सपा सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, उल्टा मंत्री अहमद हसन के खास डॉ. बलजीत सिंह अरोरा को रिटायरमेंट के बाद भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का प्रधान सलाहकार बना दिया गया. अरोरा ने ‘पुष्पा सेल्स’ पर कोई कार्रवाई नहीं होने दी. ‘पुष्पा सेल्स’ कंपनी ने जैसे-तैसे मनचाहे तरीके से इंसेफ्लाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर्स स्थापित किए और अयोग्य एवं अक्षम कर्मचारियों को भर कर जानलेवा तरीके से पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट चलाया. कंपनी जो भी बिल भेजती महानिदेशालय के जरिए एनएचएम उसका आंख बंद करके भुगतान करता जाता.

अहमद हसन ने अपनी सरकार के आखिरी महीनों में डॉ. विजय लक्ष्मी को चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग का महानिदेशक बना दिया था और सपा सरकार के आखिरी समय तक लूटपाट वाली व्यवस्था जारी रही. हाईकोर्ट ने उस दरम्यान डेंगू, मलेरिया, जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से बेतहाशा हो रही मौतों पर राज्य सरकार को कड़ी चेतावनी दी थी. जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम सहित सभी संचारी रोगों के कार्यक्रम के संचालन और नियोजन की जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ अनुभाग के पास ही है. एनएचएम के तत्कालीन निदेशक अमित कुमार घोष ने डॉ.

विजय लक्ष्मी के दबाव में एनएचएम के ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ के महाप्रबंधक डॉ. अनिल कुमार मिश्र को हटा कर डॉ. मनीराम गौतम को महाप्रबंधक बना दिया था. दिसम्बर 2015 में डॉ. विजय लक्ष्मी भी डॉ. बलजीत सिंह अरोरा की तरह ही एनएचएम में ऊंचे वेतन पर चोर-रास्ते से मिशन निदेशक के वरिष्ठ सलाहकार के गैर-सृजित पद पर काबिज हो गईं. उन्हें एनएचएम में ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ सहित कई महत्वपूर्ण अनुभागों का नोडल अधिकारी बना दिया गया था.

समाजवादी पार्टी सरकार में मुख्य सचिव आलोक रंजन के स्टाफ अफसर रहे आलोक कुमार को अप्रैल 2016 में एनएचएम का मिशन निदेशक बनाया गया. उनके आने के बाद डॉ. बलजीत सिंह अरोरा और डॉ. विजय लक्ष्मी की और तूती बोलने लगी. वर्ष 2016 के जुलाई महीने में डॉ. मनीराम गौतम के रिटायर होने के बाद डॉ. विजय लक्ष्मी ने अपने दूसरे खास व्यक्ति अस्थि रोग के सर्जन और संचारी रोग के वर्तमान संयुक्त निदेशक डॉ. एके पांडेय को एनएचएम में ‘राष्ट्रीय कार्यक्रम’ का महाप्रबंधक बनवा दिया. डॉ. पांडेय को सप्ताह के तीन दिन एनएचएम और दो दिन महानिदेशालय में काम करने का अजीबोगरीब आदेश जारी कराने में डॉ. विजय लक्ष्मी का विशेष हाथ था.

दूसरी तरफ रिटायर डॉ. मनीराम गौतम को उन्होंने इंसेफ्लाइटिस उन्मूलन में सहयोग देने के लिए गैर-सरकारी संगठन ‘पाथ’ में विशेषज्ञ के रूप में चयनित करवा दिया. मिशन निदेशक आलोक कुमार ने इस अति महत्वपूर्ण अनुभाग को बेहद हल्के से लिया. हद तो यह है कि एनएचएम के अनुश्रवण और मूल्यांकन विभाग ने डॉ. एके पांडेय को ही गोरखपुर मंडल का प्रभारी भी बनाया. डॉ. पांडेय ने गोरखपुर मंडल के जिलों में जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम से बचाव के लिए क्या-क्या कदम उठाए? पांडेय की सलाह पर नोडल अधिकारी डॉ. विजय लक्ष्मी ने क्या कार्रवाई की? उनसे सरकार ने इन सवालों का जवाब कभी नहीं मांगा. एनएचएम के मिशन निदेशक आलोक कुमार ने पॉलिटेक्निक से कम्यूटर शिक्षा प्राप्त सिफ्सा के कर्मचारी बीके जैन को मूल्यांकन और अनुश्रवण (रख-रखाव) का महानिदेशक बना कर इतने ढेर सारे बच्चों की तकलीफदेह मौत की पूरी पृष्ठभूमि रच दी थी.

इसके बावजूद महामूर्धन्य योगी सरकार ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और उन्हें ही जांच समिति का सदस्य भी बना दिया था. हादसे के लिए जो लोग दोषी हैं, वही जांच करेंगे तो पकड़ा कौन जाएगा? इन स्वाभाविक सवालों से प्रदेश सरकार को कोई वास्ता नहीं है.

बच्चों की मौत पर आज तक केवल सियासत होती रही
पूर्वांचल में हर साल हो रही सैकड़ों बच्चों की मौत पर केवल सियासत ही होती रही, इसका कोई उपाय नहीं ढूंढ़ा गया. योगी ने विपक्ष में रहते हुए इस पर खूब सियासत की, लेकिन आज जब वे खुद मुख्यमंत्री हैं तो उनके मंत्री इन मौतों पर अमानुषिक बहाने गढ़ते हैं. गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए हादसे पर स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने सरकारी लापरवाही पर पर्दा डालने के लिए बड़े ही अमानवीय लहजे में कहा था कि इस मौसम में तो बच्चे इंसेफ्लाइटिस से मरते ही रहते हैं. यह एक मंत्री का कितना बेजा बयान है.

यह बच्चों की नहीं, बल्कि सरकार के मृत होने की घोषणा है. बच्चों की मौत पर इस तरह का निर्मम बहाना सरकारों के रोगग्रस्त होने की सनद है. पूर्वांचल में दशकों से बच्चों की जान जा रही है और सरकार बेशर्मी से कहती है कि इस मौसम में बच्चे मरते ही हैं! आधिकारिक आंकड़ा है कि बारिश के मौसम में अकेले गोरखपुर बीआरडी अस्पताल में दो हजार से ढाई हजार बच्चे भर्ती होते हैं और करीब पांच सौ बच्चे मर जाते हैं. यूपी के गोरखपुर समेत पूरब के 12 जिलों के एक लाख से अधिक बच्चों की पिछले कुछ दशक में मौत हो चुकी है. वर्ष 2016 में इंसेफ्लाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या 15 फीसदी बढ़कर 514 हो गई. यह आंकड़ा सिर्फ गोरखपुर मेडिकल कॉलेज का है.

बच्चे मर रहे हैं लेकिन इसका कोई उपाय नहीं किया जा रहा है. सरकारें इसे जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम का नाम देती रहीं, लेकिन बेशर्म सरकारों को इस बात पर तनिक भी झेंप नहीं आई कि जापान ने इस बीमारी पर 1958 में ही कारगर तरीके से काबू पा लिया था पर हम अब भी लाचार हैं. पूर्वांचल में पिछले चार दशक से जापानी इंसेफ्लाइटिस से बच्चे लगातार मर रहे हैं. पूरब के जिलों के अधिकांश मरीज बच्चे गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ही भर्ती होते हैं. इस अस्पताल में न केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से बल्कि पश्चिमी बिहार और नेपाल के मरीज भी भर्ती होते हैं.

अत्यधिक दबाव के कारण मेडिकल कॉलेज को दवाइयों, डाक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन व अन्य जरूरतों के लिए काफी जद्दोहद करनी पड़ती है. इंसेफ्लाइटिस की दवाओं, चिकित्सकों, पैरामेडिकल स्टाफ, उपकरणों की खरीद, मरम्मत और उनके रखरखाव के लिए अलग से कोई बजट का प्रबंध नहीं है. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सौ बेड का इंसेफ्लाइटिस वार्ड बन जाने के बावजूद मरीजों के लिए बेड व अन्य संसाधानों की भारी कमी है. मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए आने वाले इंसेफ्लाइटिस मरीजों में आधे से अधिक अर्ध बेहोशी के शिकार होते हैं और उन्हें तुरन्त वेंटिलेटर उपलब्ध कराने की जरूरत रहती है.

इस अस्पताल में पीडियाट्रिक (बाल रोग) आईसीयू में 50 बेड उपलब्ध हैं. वार्ड संख्या 12 में कुछ वेंटिलेटर हैं. बच्चों की मौत पर मर्सिया पढ़ने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र के मंत्री तक गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीजों के इलाज के लिए धन की कमी नहीं होने देने की बातें करते हैं, लेकिन असलियत यही है कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज की तरफ से पिछले चार-पांच वर्षों के दौरान केंद्र और प्रदेश सरकार को जो भी प्रस्ताव भेजे गए, वे मंजूर नहीं हुए. इन प्रस्तावों में यह भी शामिल था कि इंसेफ्लाइटिस के मरीजों के इलाज में लगे चिकित्सकों, नर्स, वार्ड ब्वॉय और अन्य कर्मचारियों का वेतन, मरीजों की दवाइयां और उनके इलाज के काम आने वाले उपयोगी उपकरणों की मरम्मत के लिए एकमुश्त बजट आवंटित किया जाए.

यह बजट सालाना करीब 40 करोड़ आता है, लेकिन इस प्रस्ताव को न तत्कालीन अखिलेश सरकार ने सुना और न केंद्र सरकार ने. यह आधिकारिक तथ्य है कि 14 फरवरी 2016 को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक से इंसेफ्लाइटिस के इलाज के मद में 37.99 करोड़ मांगे थे. महानिदेशक ने इस पत्र को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक को भेज कर अपनी ड्युटी निभा ली और एनएचएम को भ्रष्टाचार से फुर्सत नहीं मिली.

दुखद तथ्य यह भी है कि जापानी इंसेफ्लाइटिस से जो बच्चे उबर जाते हैं उनमें से भी अधिकांश बच्चे विकलांग होकर ही वापस लौटते हैं. अनधिकृत रिपोर्ट है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के 10 जिलों में जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम बीमारी के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग हुए बच्चों की संख्या 50 हजार से कम नहीं है. जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम बीमारी में एक तिहाई बच्चे मानसिक और शारीरिक विकलांगता का शिकार हो जाते हैं. बाल आयोग ने कई बार प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि जापानी इंसेफ्लाइटिस और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम बीमारी से विकलांग हुए बच्चों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण कराए और उनके इलाज, शिक्षा और पुनर्वास के लिए ठोस काम हो, लेकिन यह काम सरकारों की रुचि के दायरे में नहीं आता, क्योंकि विकलांग बच्चों से नेताओं को वोट नहीं मिलता.

सर्वेक्षण का काम सरकार नहीं करा पाई और गैर सरकारी संस्थाओं ने भी इस सर्वेक्षण के काम में रुचि नहीं ली. विडंबना यह है कि गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज अस्पताल में इस साल मरने वाले बच्चों की तादाद तकरीबन 15 सौ पर पहुंच चुकी है. जनवरी से लेकर सितम्बर तक हर महीने सौ-डेढ़ सौ बच्चों की मौत का औसत बना हुआ था. अगस्त महीने में तो साढ़े तीन सौ बच्चों की मौत हो गई.

जांच समिति ने इन्हें पाया दोषी, बाकी ‘क्लीन’!
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेश पर मुख्य सचिव राजीव कुमार की अध्यक्षता में गठित जांच समिति हादसे की तह में जाती तो अन्य अधिकारियों की गहरी भूमिका उजागर हो पाती, लेकिन समिति ने एनएचएम के अलमबरदारों की संदेहास्पद भूमिका को अपनी जांच के दायरे में रखा ही नहीं. जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल रहे राजीव मिश्र, होम्योपैथिक चिकित्साधिकारी डॉ. पूर्णिमा शुक्ला, बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ. कफील खान, खरीदारी विभाग और अनेस्थेसिया विभाग के प्रमुख डॉ.

सतीश पांडेय, मेडिकल कालेज के चीफ फार्मासिस्ट गजानन जायसवाल, ऑक्सीजन सप्लायर फर्म पुष्पा सेल्स के प्रबंध निदेशक (एमडी) मनीष भंडारी के साथ-साथ अकाउंट क्लर्क उदय प्रताप शर्मा, सहायक क्लर्क संजय कुमार त्र‍िपाठी और सुधीर कुमार पांडेय के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 409 (लोकसेवक द्वारा आपराधिक कार्य में शामिल होने), 308 (गैर इरादतन हत्या), 120-बी (आपराधिक साजिश करने) के अलावा भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 8, आईटी एक्ट-2000 की धारा 66 और इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट की धारा 15 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया और गिरफ्तारियां हो रही हैं.

जांच रिपोर्ट में पुष्पा सेल्स के एमडी मनीष भंडारी को लिक्विड ऑक्सीजन की आपूर्ति का दायित्व पूरा नहीं करने, तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ. राजीव मिश्र को घूस के लालच में 2016-17 का ढाई करोड़ रुपए लैप्स कराने और घूस के लिए भुगतान रोकने व ऑक्सीजन की कमी होने पर बगैर किसी को सूचना दिए गायब हो जाने, अनेस्थेसिया विभाग के प्रमुख डॉ. सतीश पांडेय को ऑक्सीजन बाधित होने पर बच्चों की जान बचाने के बजाय विभाग और मुख्यालय छोड़कर चले जाने, बाल रोग विभाग के प्रमुख डॉ. कफील खान को अपनी पत्नी के अवैध नर्सिंग होम को अनुचित लाभ पहुंचाने, प्राइवेट प्रैक्टिस करने और बीआरडी के ऑक्सीजन सिलिंडरों को अपने नर्सिंग होम में इस्तेमाल करने, डॉ. पूर्णिमा शुक्ला को अपने पति राजीव मिश्र के भ्रष्ट आचरणों में योगदान देने और लेखा विभाग से कमीशन वसूलने, चीफ फार्मासिस्ट गजानंद जायसवाल को डॉ. पूर्णिमा शुक्ला के साथ साठगांठ कर फर्मों से कमीशन वसूलने, अकाउंट क्लर्क उदय प्रताप शर्मा, सहायक क्लर्क संजय त्रिपाठी और सुधीर पांडेय को प्र‍िंसिपल राजीव मिश्र के कुकृत्यों में लिप्त रहने का दोषी करार दिया गया है.

फर्रुखाबाद में 49 बच्चों की मौत पर सरकार बोल रही झूठ पर झूठ
गोरखपुर में बच्चों की धड़ाधड़ हो रही मौत पर प्रदेश सदमे में है, ऐसे ही समय फर्रुखाबाद में भी 49 बच्चों की मौत की खबर से सनसनी फैल गई. फर्रुखाबाद के जिलाधिकारी रवींद्र कुमार ने प्राथमिक जांच में पाया कि राम मनोहर लोहिया जिला अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं होने के कारण बच्चों की मौत हुई. डीएम ने फौरन जिले के सीएमओ डॉ. उमाकांत और सीएमएस डॉ. अखिलेश अग्रवाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी और कार्रवाई शुरू कर दी.

डीएम के त्वरित एक्शन से योगी सरकार को गुस्सा आ गया. सरकार ने जिलाधिकारी का तत्काल तबादला कर दिया और जनता के समक्ष झूठ परोसने में लग गई. सरकार ने सीएमओ और सीएमएस के खिलाफ दर्ज कराई गई एफआईआर पर कार्रवाई भी रोक दी. घिसा-पिटा सरकारी डायलॉग सामने आया कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई. सरकार ने अपने ही अधिकारी को बेसाख्ता झूठा करार दिया और खुद को सच्चाई का प्रतीक मानने की खुशफहमी पाल ली.

तथ्य यह है कि फर्रुखाबाद के राम मनोहर लोहिया जिला अस्पताल में 20 जुलाई से 21 अगस्त के बीच 49 बच्चों की मौत हुई. नाराज डीएम रवींद्र कुमार ने इस पर मजिस्ट्रेट से जांच का आदेश दे दिया. जिले के सीएमओ और सीएमएस ने जिला अस्पताल में मरने वाले बच्चों के बारे में गलत और भ्रामक तथ्य जिलाधिकारी के समक्ष पेश किए. जबकि मरने वाले बच्चों की मां और रिश्तेदारों ने बताया कि डॉक्टरों ने जरूरत पड़ने पर बच्चों को ऑक्सीजन की पाइप नहीं लगाई और कोई दवा नहीं दी. साफ है कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण हुई. ऑक्सीजन की कमी के बारे में जिलाधिकारी को भी अंधेरे में रखा गया. वास्तविक स्थिति का पता लगते ही जिलाधिकारी ने सीएमओ, सीएमएस और अस्पताल में नवजात शिशु देखभाल यूनिट के इंचार्ज डॉ. कैलाश के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश जारी कर दिया.

योगी सरकार ने त्वरित एक्शन लेने वाले जिलाधिकारी की प्रशंसा करने की नैतिक जिम्मेदारी निभाने के बजाय डीएम को झूठा साबित करने की हरकतें करनी शुरू कर दीं. सरकार की सींघ इसमें फंसी कि डीएम ने खुद कैसे मान लिया कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई. बौखलाई सरकार ने डीएम को झूठा ठहराया और अपना नियोजित झूठ परोसने के लिए दो वरिष्ठ आईएएस अफसरों को लगाया. सूचना विभाग के प्रमुख सचिव अवनीश अवस्थी और स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव प्रशांत त्रिवेदी ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर सरकारी झूठ प्रसारित किया. इस झूठ में जिलाधिकारी पर यह भी कीचड़ उछाला गया कि डीएम की सीएमओ से नहीं पटती थी, इसलिए बदला लेने के लिए ऐसा किया गया. सरकार ऐसे घटिया स्तर पर उतर आई है.

साभार: चौथी दुनिया

 

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