राजनीतिक रूप से मूर्ख बनने से पहले आर्थिक रूप से शिक्षित बनो
RAVISH KUMAR @RavishKaPage
नोटः पहले नोट नीचे लिखता था, अब ऊपर क्योंकि पोस्ट कुछ भी हो, कमेंट कुछ भी करने वाले लोग सुधर नहीं रहे हैं। आई टी सेल की नौकरी चालू हो गई है। बैंकिंग सीरीज़, नौकरी, सरकारी कर्मचारियों के वेतन, छुट्टी, परीक्षाओं में धांधली के सवाल के वक्त वे कहीं गुम हो गए थे। अब फिर से आने लगे हैं। ऐसे लोगों की परवाह न करें। हिन्दी में लिखी इन सूचनाओं को करोड़ों लोगों तक पहुंचा दें। आई टी सेल वाले आ जाइये। बस रिश्तेदारों को मत बताइयेगा कि आप आई टी सेल में काम करते हैं। शादी भी नहीं होगी। अगुआ भाग जाएगा। जो दूसरों को गाली देता है, वो उसकी बेटी को कितनी गाली देगा। ऐसे लफंदर पार्टी मुख्यालय में हीरो हो सकते हैं समाज में नहीं। अब आगे लेख पढ़ें।
38 विलफुल डिफॉल्टर के 500 करोड़ रुपये का ए पी ए write off कर दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि बैंक ने अपने मुनाफे से एन पी ए के खाते में पैसा डाला और एन पी ए के खाते में नुकसान कम दिखने लगा। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि जिसने लोन लिया था, उसे माफ कर दिया गया। बिजनेस स्टैंडर्ड ने यह ख़बर 6 नंबर के पन्ने पर कहीं कोने में छापी है जबकि पहले पन्ने पर पहली ख़बर बैंकों के एन पी ए पर ही है। एन पी ए मतलब नॉन प्रोफिट असेट यानी जो लोन लिया गया है वो चुकाया नहीं गया। हम यह कभी नहीं जान पाएंगे कि एक तरह की माफी का आधार क्या रहा होगा। राजनीतिक पसंद या कुछ और।
पिछले तीन साल में 21 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको में से 11 बैंकों को भारतीय रिज़र्व बैंक ने prompt corrective measures (PCA) के तहत रखा है। यह एक किस्म की निगरानी व्यवस्था है। बिजनेस स्टैंडर्ड की ख़बर है कि 5 और बैंक इस निगरानी के तहत आने के कगार पर खड़े हैं क्योंकि इनका एन पी ए कुल लोन का 6 प्रतिशत से भी ज़्यादा हो गया है। जब दो साल तक बैंकों के पास कैश की उपलब्धता कम हो जाए, अपनी संपत्ति पर रिटर्न कम होने लगे और एन पी ए बढ़ जाता है तब उन्हें पीएसी के तहत रखा जाता है।
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