व्लादिमीर लेनिन का पुतला लगाया ही क्यों गया था

SUSHOBHIT SAKTAWAT @sushobhit.saktawat

जब व्लादिमीर लेनिन का पुतला गिराया गया तब जाकर मुल्क को मालूम हुआ कि वहां पर लेनिन का कोई पुतला भी था! और तब, यार लोगों ने ठहरकर पूछा, एक मिनट, यू मीन, लेनिन का पुतला? और वो भी इंडिया में? क्यूं भला? लेनिन ने इंडिया के लिए क्या किया, जो इंडिया में लेनिन का पुतला बनाया गया? या फिर, लेनिन की पूंछ पकड़कर घूमने वालों ने ही इंडिया के लिए क्या कर दिया? कहीं से आवाज़ आती है, एक बड़ी विदेशी विभूति थी साहब? तिस पर फिर प्रतिप्रश्न कि एक व्लादिमीर लेनिन बहादुर ही विभूति थे क्या? सुकरात की मूर्ति तो मुझको भारत में कहीं दिखी नहीं। रूसो और वोल्तेयर की नहीं दिखी। इमर्सन, थोरो, रस्किन, तॉल्सतॉय की प्रतिमा मुझको कहीं नज़र नहीं आईं। इमैन्युअल कांट कहां पर है? स्पिनोज़ा साहब का बुत कहीं दिखाई क्यों नहीं दे रहा, मेरी आंखें तो दुरुस्त हैं? देकार्ते का पुतला हार-फूलों के नीचे दब गया है क्या? अभी-अभी शौपेनऑवर की जन्म-जयंती थी, कहीं से कोई ख़बर नहीं मिली कि उनका प्रतिमा-पूजन किया गया हो। लेनिन में ही ऐसे कौन-से सुरख़ाब के पर लगे थे, जो उसका पुतला हिंदुस्तान की सरज़मीं पर बरामद हुआ?

चाइना में तो गांधी की स्टेच्यू नहीं है। नॉर्थ कोरिया में लोकमान्य तिलक के नाम की एक सड़क ही दिखला दो। रशिया में नेताजी सुभाषचंद्र बोस की प्रतिमा? भूल जाइए, कोई चांस नहीं। लेकिन हिंदुस्तान में और कुछ मिले ना मिले, लेनिन का पुतला आपको ज़रूर मिल जाएगा। क्यूं भला? लेनिन का पुतला मिला है तो व्लादिमीर लेनिन की किताब भी कहीं न कहीं होगी। हुक़ूमत का तख़्तापलट कैसे किया जाए? रक्तक्रांति कैसे हो? “अपहीवल” के सौ तरीक़े, “ओवरहॉल” की सत्रह सौ छत्तीस विधियां, “स्टेटस-को” के उन्मूलन के चार बुनियादी सूत्र, ये सब आपको कहीं न कहीं मिल जाएंगे। रेड रिवोल्यूशन का ब्लूप्रिंट! अचरज नहीं होना चाहिए अगर कम्युनिस्टों के घरों, दफ्तरों, बस्तों की छानबीन इसके बाद शुरू हो जाए और उसमें से राजद्रोहियों से उनके दोस्ताना ख़तो-किताबत बरामद हों।

लेनिन का पुतला। हम्म। सौ साल पहले रूस में बोल्वेशिक क्रांति क्या इसीलिए की गई थी कि चौराहों पर लेनिन के पुतले खड़े किए जाएं? क्या अवाम को यही बोलकर लड़ाई में साथ लिया गया था कि साहब हमारे लीडरान के पुतले प्रतिदिन आपका अभिवादन करेंगे? बोल्वेशिक क्रांति के बाद क्रांतिकारियों ने मॉस्को में ज़ार निकोलस द्वितीय की प्रतिमा ध्वस्त की थी और अवाम से कहा था- आज से राजशाही का अंत होता है, अब आपकी हुक़ूमत चलेगी। पीपुल्स रिवोल्यूशन? पीपुल्स रिपब्लिक? पीपुल्स रिपब्लिक, क्या ख़ाक़, ज़ार का पुतला तोड़ा और लेनिन का पुतला खड़ा कर दिया। ज़ार राजा था, व्लादिमीर लेनिन ख़ुदा बन गया। लेनिन मरा तो उसकी लाश को सम्भालकर रखे हुए हैं। शवपूजक, बुतपरस्त, व्यक्तिकेंद्रित विचारधारा। क्या इसीलिए आपने सौ साल पहले जनविप्लव किया था कि लेनिन की लाश को ईजिप्त की ममियों की तरह सम्भालकर रखें?

डेमोक्रेसी को ये लोग नक़ली रिपब्लिक कहते हैं। फ़र्ज़ी लोकशाही। डेमोक्रेसी में क्या होता है? अवाम ख़ुद हुक़ूमत नहीं चलाती, लेकिन अवाम वोट देती है और अपना एक नुमाइंदा चुन लेती है, वह हुक़ूमत चलाता है। एक परोक्ष और प्रतिनिधि शासनतंत्र होता है। इसको वो लोग नक़ली रिपब्लिक कहते हैं। और असली रिपब्लिक क्या है? कम्युनिस्ट पार्टी असली रिपब्लिक है। चुनाव की क्या ज़रूरत है? कम्युनिस्ट पार्टी के चार पुतले किसी एक पुतले को चुन लेंगे, वह राज करेगा। यह लोकशाही है? एक अली बाबा और चालीस चोर? पोलित ब्यूरो के छंटे छंटाए छह छिछोरे? कमिस्सारों की फ़ौज, जो पुतले को सैल्यूट करेगी? सघन ब्यूरोक्रेसी? ज़ीरो ट्रांसपैरेसी? ज़ीरो फ्रीडम ऑफ़ स्पीच? हुक़ूमत जब चाहे किसी को भी उठा लेगी, फिर उसका अता-पता नहीं मिलेगा। पार्टी लाइन यानी पत्थर की लक़ीर। पार्टी का मैनिफ़ैस्टो ही आसमानी किताब। उससे इधर-उधर आप नहीं हो सकते। तानाशाही राजव्यवस्था?

ये कम्युनिस्टों की असली रिपब्लिक की परिभाषा है, डेमोक्रेसी को ये लोग नक़ली रिपब्लिक बताते हैं! सर्वहारा अधिनायकत्व का मुलम्मा। कि साहब अवाम का राज होगा। डिक्टेटरशिप ऑफ़ प्रोलिटेरियट। लेकिन होती है अफ़सरशाही की हुक़ूमत। पार्टी का परचम फहराता है। नवसामंतों का अधिनायकत्व। डिक्टेटरशिप ऑफ़ पेटी-बुर्जुआ। ये इनकी पीपुल्स रिवोल्यूशन है? अगर अवाम की नुमाइंदगी का दावा है, अगर ख़ुद को असली रिपब्लिक कहकर कॉलर चढ़ाने का बांकपन है, तो याद रख लीजिए कि अवाम की ही जयकार होगी, लीडरान के पुतले नहीं पूजे जाएंगे। लेनिन का पुतला गिरा, इससे बड़ा अचरज तो यह है कि लेनिन का पुतला वहां पर मौजूद था! क्यों भाई? व्लादिमीर लेनिन का पुतला वहां पर क्यों था, असल सवाल तो यही है। पहले इसका जवाब दीजिए। बाक़ी बातें बाद में की जाएंगी। जैसा कि फ़ैज़ ने कहा था- “जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के क़ाबे से / सब बुत उठवाए जाएंगे / हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम / मसनद पे बिठाए जाएंगे / सब ताज उछाले जाएंगे / सब तख़्त गिराए जाएंगे / हम देखेंगे!”

(सुशोभित सक्तावत के फेसबुक पेज से साभार, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
 

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