सोनिया के बोल से नहीं मिल रहे कांग्रेस के क़दम, क्या कांग्रेस ने खुद द‍िया बीजेपी को मौका?

नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में तमाम मुद्दों के साथ ही विरोधियों द्वारा कांग्रेस की प्रो-मुस्लिम छवि हार का कारण बनी. खुद पार्टी की हार के कारणों की जांच करने वाली एंटोनी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ये बात कही. इस बात को अब सोनिया गांधी ने दोहरा दिया. इस बीच कांग्रेस और अब उसके अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की छवि सुधार की तमाम कोशिशें भी कीं और दिशानिर्देश भी जारी किए. हालांक‍ि कई ऐसे क़दम और मौके रहे जिन्होंने बीजेपी को कांग्रेस की वैसी छवि गढ़ने का मौका दिया, जो आज खुद सोनिया को चुभ रही है.

1. बिहार के कांग्रेस संगठन के पिछले एक दशक की बात करें तो मुस्लिम नेताओं को खासी तरजीह मिलती रही. केंद्र में मंत्री बनने की बात हो तो पार्टी ने शकील अहमद को चुना. शकीलुज़मान अंसारी को ही बाद में केंद्र में ओबीसी कमीशन का भी चेयरमैन बनाया गया. इससे पहले महबूब अली कैसर को राज्य की बागडोर मिली. राहुल राज में भी जब बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी बागी हुए तो भी पार्टी ने कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर क़ौकब क़ादरी को ज़िम्मेदारी सौंपी.

2.बात अगर यूपी की करें तो 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ किया और मुस्लिमों का मत एकतरफा पाने की कोशिश की थी. ध्रुवीकरण की लड़ाई में सपा-कांग्रेस ने भले ही बीएसपी को मुस्लिम वोटों की चोट दी हो, लेकिन उसकी इस कोशिश ने हिंदू मतों को बीजेपी के पक्ष में लामबंद कर दिया. नतीजा कांग्रेस इतिहास में सबसे कम 7 सीटों पर सिमट गयी. एक वक़्त यूपी के प्रभारी रहे महासचिव दिग्विजय सिंह के तमाम बयान भला कैसे भुलाये जा सकते हैं, जिनको बीजेपी ने मुस्लिम तुष्टिकरण से जोड़ा. बाटला हाउस एनकाउंटर पर सवाल हो या उसके बाद आजमगढ़ की यात्रा. साथ ही एक और बड़े नेता सलमान खुर्शीद ने बटला कांड पर सोनिया की आंखों से आंसू निकलने तक का दावा किया गया. 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण का दांव तक चल दिया था. इसके अलावा लोकसभा चुनाव में सहारनपुर से पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी इमरान मसूद का पीएम मोदी के टुकड़े टुकड़े कर देने वाला बयान भला कौन भूल सकता है. आज इमरान भले ही 2017 का विधानसभा चुनाव हार गए हों, लेकिन पश्चिमी यूपी में राहुल की पसंद का हिस्सा हैं.

3. साथ ही खुद देश के पीएम रहते डॉक्टर मनमोहन सिंह ने संसाधनों पर पहला हक़ मुस्लिमों का बताते हुए बयान दिया. इसको लपकने में बीजेपी ने ज़रा भी देर नहीं की.

4. होली-दिवाली पर कांग्रेस में ज़्यादातर ख़ामोशी रहती रही, सिर्फ दशहरे पर सोनिया, राहुल और मनमोहन की तिकड़ी रामलीला मैदान पर नजर आती थी. पीएम रहते मनमोहन और पार्टी अध्यक्ष रहते सोनिया दोनों अलग अलग इफ्तार पार्टी देना नहीं भूलते थे. जबकि, हिंदू त्योहारों पर ऐसे आयोजन नहीं होते थे. कांग्रेसी कार्यकर्ता तो आजतक राहुल को राखी बांधती प्रियंका की तस्वीर देखने को बेताब हैं, लेकिन उनका इंतजार आजतक जारी है.

5. हाल ही ही जानकारी आयी कि झारखंड कांग्रेस के विधायक दल के नेता और पार्टी विधायक आलमगीर आलम ने अपने इलाके में मुस्लिम जिलाध्यक्ष के 10 के 10 ब्लॉक प्रमुख मुस्लिम बना रखे थे. ये पड़ताल में एक तस्वीर ऐसी सामने आयी जो पार्टी की नीतियों पर सवाल खड़ा करती है. ऐसे कई मसले हैं, जो भले ही राष्ट्रीय स्तर पर जगह ना बना पाएं, लेकिन इनसे ज़मीन पर खुद ही बीजेपी को मौका मि‍ल रहा है क‍ि वो कांग्रेस की वैसी ब्रांडिंग कर सकें, जिस पर सोनिया ऐतराज कर रही हैं.

6. अब राहुल युग की शुरुआत की बात करें तो बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष क़ौकब क़ादरी हैं, तो यूपी में हाल में बसपा से निकाले गए नसीमुद्दीन सिद्दीकी की दिल्ली में ज़ोर शोर से पार्टी में जॉइनिंग कराई गई. खुद प्रभारी महासचिव ग़ुलाम नबी आजाद और राजबब्बर नसीमुद्दीन को समर्थकों के साथ पार्टी मुख्यालय लाये. बाद में राहुल के साथ उनका फोटो सेशन भी हुआ. जबकि, पार्टी के भीतर तमाम नेताओं ने इस पर सवाल उठाया कि नसीमुद्दीन बसपा में सिर्फ माया के मैनेजर की हैसियत से थे, उनकी गिनती कभी जनाधार वाले नेताओं में नहीं हुई. खुद कभी लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं जीते. बसपा ने निकाल दिया, बीजेपी उनको लेती नहीं, सपा ने बसपा से भविष्य के गठजोड़ के मद्देनजर एंट्री दी नहीं, तो कांग्रेस ने उनको ठिकाना दे दिया. अब कहा जा रहा है कि उनको केंद्रीय यूपी में पार्टी बड़ी ज़िम्मेदारी देगी. इतना ही नहीं अभी यूपी के दो सीटों पर हो रहे लोकसभा चुनाव में पार्टी ने सीएम योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्व की प्रयोगशाला यानी गोरखपुर से डॉ. सुनीता करीम को टिकट देकर सबको चौंका दिया. नाम ना लिखने की शर्त पर यूपी कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि एक तरफ राहुल खुद मंदिर मंदिर जा रहे हैं और दूसरी तरफ यूपी में पार्टी उलटे क़दम उठा रही है.

हालांक‍ि ऐसा नहीं है कि 2014 से सबक लेते हुए कांग्रेस ने अपनी रणनीति नहीं बदली. खुद राहुल ने केदारनाथ यात्रा से मंदिर दर्शन अभियान शुरू किया. यह गुजरात से लेकर कर्नाटक तक जारी है. होली पर पार्टी का मीडिया विभाग मिलन समारोह भी रखता है. गुजरात चुनाव में राहुल खुद को रुद्राक्ष पहनने वाला जनेऊधारी हिन्दू बताते हैं. श‍िव का भक्‍त बताते हैं. इसीलिए कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव का पर्चा भी भोले के दिन यानी सोमवार को भरते हैं. सोनिया ने पिछले कुछ सालों से फाइव स्टार होटल में होने वाली इफ्तार पार्टी को रद्द कर दिया है, उसकी जगह अब वो गरीबों में कम्बल, खाना और ज़रूरत की चीज़ें बंटवाती हैं. कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को निर्देश हैं कि अगर वो हिन्दू हैं तो बेशक दूसरे धर्म के त्योहारों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें, लेकिन अपने त्योहारों को सबसे ऊपर रखें.

ऐसे में साफ़ है कि‍ कांग्रेस अपनी इमेज तोड़ना चाहती है, इसलिए वो क़दम भी उठा रही है. पार्टी को इस दिशा में अभी और क़दम उठाने हैं, निरंतरता बरक़रार रखनी होगी और साथ ही बीच में यूपी जैसे क़दमों से बचना होगा वरना बात वही होगी दो कदम आगे तो दो कदम पीछे यानी आखिर में वहीं के वहीं.

 

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