हाईकोर्ट का अहम सुझाव, सरकारी स्कूलों में पद भरने में देरी करने वाले अफसरों पर लगे जुर्माना

इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा है कि सूबे के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के अध्यापकों एवं स्टाफ के स्वीकृत पदों का कम्प्यूटराइज्ड डाटा उपलब्ध है या नहीं? यदि नहीं तो कितने समय में यह डाटा तैयार कर लिया जायेगा. यही नहीं कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा है कि कितने अध्यापक और स्टाफ इस शिक्षा सत्र में सेवानिवृत्त यानी रिटायर होने जा रहे हैं. कोर्ट ने पूछा है कि धारा 25 के तहत अध्यापक या स्टाफ का पद खाली होते ही खुद ही खाली पदों को भरने का सिस्टम बनाया जा सकता है, ताकि पद खाली होने पर भर्ती विज्ञापन की अधिकारियों से अनुमति लेने की जरूरत न पड़े.

कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत सत्र शुरू होते ही अध्यापकों की जरूरत पूरी करने में बाधा पहुंचाने वाले अधिकारियों के खिलाफ क्या अर्थदंड लगाया जाना चाहिए ताकि स्टाफ और शिक्षक की कमी के चलते बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो. कोर्ट ने इस बारे में यूपी सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए सिर्फ तीन दिनों की मोहलत दी है. अगली सुनवाई की तारीख नौ जुलाई को प्रमुख सचिव और बीएसए से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है और सूबे के एडवोकेट जनरल को सरकार का पक्ष रखने के लिए कहा है.

यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी.केसरवानी ने प्रबंध समिति नागेश्वर प्रसाद पी.एम.वी.स्कूल देवरिया की याचिका पर दिया है. याची का कहना है कि अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 के तहत बच्चों को शिक्षा पाने का अधिकार है. संस्था प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूल की कक्षा चलाती है. केवल चार अध्यापक ही है. अतिरिक्त पदों पर भर्ती विज्ञापन निकालने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जिससे पढ़ाई प्रभावित हो रही है. कोर्ट ने कहा कि छात्र संख्या के आधार पर स्टाफ और अध्यापक होने चाहिए ताकि सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ न पड़े. कोर्ट ने कम्प्यूटराइज्ड डाटा तैयार करने पर भी जोर दिया है.

 

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