हिन्दू महासभा और VHP से भी कहीं अधिक मुस्लिम-विरोधी विश्व में कोई हुआ है तो वो अम्बेडकर हैं

के विक्रम राव

डॉ. अम्बेडकर पर (17 अप्रैल 2020 को) मेरी पोस्ट : यथार्थ और मिथक पर व्यापक प्रतिक्रियाएं और टिप्पणियाँ मिलीं| एक सांसद ने लिखा : “बजाय बाबा साहेब के, कोरोना पर लिखते, वह सामयिक होता|” विगत सन्दर्भ था डॉ. अम्बेडकर की 129वीं जयंती वाला| तब मेरा सबब मात्र यही था कि राजनीतिशास्त्र के अध्येता के नाते छः दशकों से विमनस्क होकर सुनता आया था कि भारतीय संविधान के अकेले निर्माता डॉ. अम्बेडकर ही थे| मतलब “संग सहाय न दूजा|” कोई उपादान, कारण, निमित्त, संगी, सहायक कोई अन्य था ही नहीं !

आज इस पोस्ट के मार्फ़त मेरा प्रयास यह बताने का है कि सत्तर साल में 104 बार संशोधनों पर तथा दो वर्ष, ग्यारह माह, सत्रह दिन के दौरान 2473 सुधार प्रस्तावों पर 389-सदस्यीय संविधान सभा द्वारा बहस के बावजूद, भारतीय संविधान पूर्ण कदापि नहीं कहा जा सकता है| तो कैसे तार्किक होगा कि इसका शिल्पी एक अकेला ही था| पिछली पोस्ट में शोध, प्रमाण और सन्दर्भों के साथ इसी विचार का प्रतिपादन किया गया था|

इसी परिवेश (1946-2020) में संविधान के चंद निहित तत्वों और तथ्यों का विश्लेषण आवश्यक है| कारण बस यही है कि डॉ. अम्बेडकर ने स्वयं आक्रोश में राज्यसभा में (1953-54) कहा था : “मैं प्रथम व्यक्ति होऊंगा इस संविधान को फाड़ डालने में|” मन्तव्य दलितों को न्याय मिलने से था| ब्रिटिश उपनिवेशीय भारत में अम्बेडकर तीन संघटक मानते थे : हिन्दू, मुसलमान और दलित| किन्तु महात्मा गाँधी ने दलितों को हिन्दू समाज से अलग नहीं माना| उनके अनशन से (24 सितम्बर 1922) को पूना संधि के तहत दलितों को दस वर्ष तक विधान सभा और संसद में अधिक आरक्षण देने पर सहमति बनी| अम्बेडकर ने इसे गाँधी जी के दबाव का नतीजा बताया| इससे इतना जरूर हुआ कि हिन्दू समाज कटकर छोटा नहीं हुआ| किन्तु इसी लक्ष्य को अम्बेडकर पनपाते रहे| यह परिलक्षित भी है|

अम्बेडकर ने अपनी राजनीति में किसी भी दल से परहेज नहीं किया था| मसलन हर निर्वाचन की बेला पर जो भी मिला अम्बेडकर उसी के साथ हो लिये| वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के शिविर में (1939) गए| उन्होंने संघ की जाति-विहीनता की श्लाघा भी की| प्रथम लोकसभा चुनाव में भंडारा (महाराष्ट्र) से वे चुनाव लड़े थे तो उनके निर्वाचन एजेंट स्व. दत्तोपंत थेंगड़ी थे जो संघ के प्रचारक, भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक और राजग सरकार की श्रम-विरोधी अर्थनीति के आलोचक थे|अम्बेडकर ने संविधान सभा में प्रवेश हेतु नेहरू-कांग्रेस से टिकट लिया| दूसरी बार जिन्नावादी मुस्लिम लीग का तथा लोकसभा के लिए सोशलिस्ट अशोक मेहता का समर्थन लिया| इन सभी चुनावों में अम्बेडकर का बंगाल से मुस्लिम लीग का समर्थन लेकर संविधान सभा में प्रवेश करना काफी असहनीय रहा| जीवन का प्रथम चुनाव वे लड़े थे 1946 में, अविभाजित बम्बई विधान सभा से | तब नेहरु और सरदार पटेल ने उन्हें शिकस्त देने के लिए मुख्य मंत्री बालासाहेब गंगाधर खेर को निर्दिष्ट किया| अम्बेडकर एक दलित कांग्रेसी प्रतिद्वंदी नारायण सदोबा कजरोलकर से पराजित हो गए| वे अविभाजित बंगाल गए जहाँ उनकी पार्टी (शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन) के विधान मंडलीय नेता जोगेन्द्रनाथ मंडल ने उन्हें चुनाव जिताया| यह मंडल साहब प्रधान मंत्री लियाकत अली खां की काबीना में पाकिस्तान के प्रथम विधि मंत्री बने| बाद में कराची में यह देखकर कि यह सेक्युलर नहीं कट्टर इस्लामी राष्ट्र है, वे कलकत्ता लौट आये| मंडल ने हरिजन-मुस्लिम लीग की साझा सरकार के मुख्य मंत्री हुसैन शहीद सुहरावर्दी को राजीकर अम्बेडकर को बंगाल विधान मंडल से भारतीय संविधान सभा में चुनवा दिया| अम्बेडकर के नए सखा और समर्थक वही सुहरावर्दी थे जिन्होंने 14 अगस्त 1946 के दिन “डायरेक्ट एक्शन” पर दस हजार हिन्दुओं का क़त्ल कराया| तेरह हजार हिन्दू महिलाओं का बलात्कार तथा धर्म परिवर्तन कराया| नोआखली के जघन्य दंगों के वे कर्ता-धर्ता रहे| गाँधी जी को नोआखली में हिन्दुओं की रक्षा के लिए जाना पड़ा था|

त्रासदी यह हुई कि अम्बेडकर पूर्वी बंगाल की सीट से जीते थे| किन्तु पाकिस्तान बनने पर उनका निर्वाचन क्षेत्र भारत से कट गया| तब अम्बेडकर पलटकर भारत आये| संयुक्त बम्बई विधान सभा से कांग्रेस ने उन्हें चुनवाया| संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने मुख्य मंत्री बीजी खेर को निर्दिष्ट किया था कि अम्बेडकर की सहायता करें| कांग्रेस सांसद मुकुंदराव जयकर से त्यागपत्र दिलवाकर अम्बेडकर को चुना गया| वे संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष पद को बरकरार रख पाये| इसी क्रम में अम्बेडकर मुंबई उत्तर तथा भंडारा से लोकसभा चुनाव हार चुके थे| सोशलिस्ट अशोक मेहता की मदद से वे राज्य सभा पहुँच सके| परिक्रमा समाप्त हुई|

यह तथ्य अलहदा नहीं हो सकता कि अम्बेडकर को दबाने या काटने में नेहरु, पटेल, पट्टाभि सीतारमय्या आदि की भूमिका रही| केवल महात्मा गाँधी ही अम्बेडकर के प्रति हमदर्द रहे | नेहरू ने तो संविधान निर्मात्री समिति के अध्यक्ष पद पर ब्रिटिश विधिवेत्ता सर आइवोर जेनिंग्स को प्रस्तावित किया था| बापू ने जिद ठान ली थी कि नए भारत में सदियों से वंचित जनों का नेता संविधान की रचना करेगा | शायद यह हिन्दुओं द्वारा युगों के पापों का प्रायश्चित था|

अपनी छवि के अनुसार अम्बेडकर हिन्दु सवर्ण को शोषक मानते रहे| कई मायनों में विप्रवर्ग दलितों का अत्याचार भी करता रहा| मगर अम्बेडकर मुसलमानों के प्रति आक्रोशित, आशंकित और आतंकित रहे| पाकिस्तान को वे भौगोलिक बदनसीबी मानते रहे| अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक “भारत का विभाजन: पाकिस्तान” में उन्होंने विस्तार से यही लिखा भी है| उनकी राय में कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टीकरण इसका उत्तरदायी है| उनके आंकलन में मुस्लिम समस्या भौतिक नहीं, आध्यात्मिक है| मुसलमान मतांध, असहिष्णु और कट्टर मजहबी होता है| उहोने लिखा है कि मुसलमानों का एकमात्र उद्देश्य दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम बनाना रहा है| मुसलमानों के लिए हिन्दू सदैव एक काफ़िर है (‘पाकिस्तान और पार्टीशन ऑफ़ इंडिया’, पृष्ठ 294)| डॉ. अम्बेडकर ने मुसलमानों के तीन लक्षणों के सन्दर्भ में लिखा| प्रथम, मुसलमान मानववाद या मानवता को नहीं मानता| वे केवल मुस्लिम भाईचारे तक सीमित हैं ( पृष्ठ 314)| दूसरे, मुसलमान राष्ट्रवाद को नहीं मानता| वह देशभक्ति, प्रजातंत्र या सेक्युलरवादी नहीं है| तीसरे, वह बुद्धिवाद को नहीं मानता| किसी भी प्रकार के सुधारों-विशेषकर मुस्लिम महिलाओं की स्थिति, विवाह के नियम, तलाक, संपत्ति के अधिकार आदि के विषयों में बहुत पिछड़ा हुआ है|

अर्थात् हिन्दू महासभा और विश्व हिन्दू परिषद् से भी कहीं अधिक मुस्लिम-विरोधी विश्व में कोई हुआ है तो यह दलित पुरोधा डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर हैं |
इस सम्पूर्ण अम्बेडकर प्रकरण में दो त्रासदपूर्ण विवरण अत्यंत दुखद लगते हैं| पहला यही कि भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन से अम्बेडकर का पूर्णतया अछूता रहना | पिछली शताब्दी में राष्ट्रीय आन्दोलन के कर्णधार विप्रजन और अन्य सवर्ण रहे| हालाँकि जगजीवन राम तनिक संघर्ष-शील रहे| पर उनका अम्बेडकर से कोई मुकाबला नहीं हो सकता| दुखद सन्दर्भ रहा कि सन 42 के जन-संघर्ष से राजगोपालाचारी, कन्हैयालाल मुंशी, वीडी सावरकर, मोहम्मद अली जिन्ना आदि की भांति अम्बेडकर का भी अलग रहना| यदि सब साथ रहते तो ? अंग्रेज सर पर पाँव रखकर तेजी से लन्दन भाग जाते|

(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button